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सियासी छुट्टियों में आराम फरमाता यूपी

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बचपन में एक चुटकुला सुना था, बच्चा दुकानदार से कहता है कि मुझे वह वाला कैलेंडर दीजिए जिसमें सबसे ज्यादा छुट्टियां हों। शायद यह चुटकुला हमारे नेताओं के लिए सूत्रवाक्य बन गया है तभी तो देश-प्रदेश में सियासी छुट्टियों की बाढ़ सी आ गई है। इन छुट्टियों को सियासी कहना इसलिए कहना उचित है क्योंकि जिन महापुरुषों या महान विभूतियों के नाम पर इन्हें घोषित किया जाता है उनकी जन्मतिथि या पुण्यतिथि तो सालोंसाल से होती रही हैं लेकिन इससे पहले कभी इस मौके पर छुट्टी घोषित करने की याद किसी को नहीं आई। राजनीतिक नफा-नुकसान का गुणाभाग इन छुट्टियों के पीछे वजह है।

यूपी में सत्तारूढ़ दल समाजवादी पार्टी की बात करें तो वह इस प्रतियोगिता में सबसे बाजी मारती नजर आती है। मौजूदा सपा सरकार इसके पहले भी सियासी फायदे वाले कई अन्य सार्वजनिक अवकाशों की घोषणा कर चुकी है। इनमें किसान नेता व पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह व अति पिछड़ों के नेता व बिहार के मुख्यमंत्री रहे जननायक कर्पूरी ठाकुर की जयंती और गरीब नवाज ख्वाजा मुईनुददीन चिश्ती के उर्स पर छुट्टियां की गईं। और तो और यह भी भूल गए कि एक समय पर अंबेडकर परिनिर्वाण दिवस की छुट्टी खुद ही रद्द कर दी थी लेकिन जब सियासी रोटियां सेंकने की बारी आई तो अब इसे बहाल कर दिया गया। उसके बाद रही सही कसर महाराणा प्रताप की जयंती पर भी सार्वजनिक अवकाश का ऐलान कर पूरी कर दी गई। इसके पीछे क्षत्रियों को अपनी ओर आकर्षित करने को प्रमुख वजह बताया जा रहा है। ये भी चर्चा है कि ग्राम्य विकास राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) अरविंद कुमार सिंह गोप को भी सपा ने प्रदेश महासचिव बनाकर क्षत्रियों को जोड़ने की पहल की है। बताया जाता है कि गोप ने ही महाराणा प्रताप की जयंती पर सार्वजनिक अवकाश घोषित करने की मांग की पैरवी की थी।

इन सियासी छुट्टियों का असर सरकारी कामकाज से लेकर स्कूली बच्चों तक पर पड़ रहा है। सरकारी कामकाज की स्पीड वैसे भी किसी परिचय की मोहताज नहीं है, उसके साथ ही छात्रों के भविष्य से भी खिलवाड़ किया जा रहा है। सीबीएसई के आदेशानुसार एक शैक्षिक सत्र में 240 दिन स्कूल खुलने चाहिए वहीं यूपी बोर्ड के अनुसार 280 दिन पढ़ाई होनी चाहिए। स्कूलों में छुट्टियों का गणित समझा जाए तो यूपी में कुल मिलाकर 210 दिन छुट्टियां होती है। इनमें रविवार. गर्मियों की दो महीने की छुट्टियां और सर्दियों में एक महीने की छुट्टी शामिल है। इस हिसाब से देखा जाए तो स्कूल सिर्फ 155 दिन ही खुलते हैं। इतने पर भी इस साल कर्पूरी ठाकुर जयंती, चंद्रशेखर जयंती, महाराणा प्रताप जयंती, अम्बेडकर परिनिर्वाण दिवस की छुट्टियां भी जोड़ दी गई हैं। ऐसे में लगातार अवकाश पड़ने के चलते कोर्स पूरा करवाना जहां शिक्षकों के लिए मुश्किल है वहीं बच्चों पर भी एक साथ पढ़ाई का ज्यादा भार पड़ता है।

सरकारी छुट्टियों के मामले में वैसे भी यूपी सबसे आगे है। यहां 38 छुट्टियां मिलती हैं, जबकि दिल्ली में 18, राजस्थान में 16, उत्तराखंड में 18, बिहार में 21 और मध्य प्रदेश में 17 छुट्टियां दी जाती हैं। यूपी में छुट्टियों का ये हाल तब है जब इन पर रोक लगाने के लिए इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ में जनहित याचिका तक दायर की जा चुकी है। ये याचिका आईजी सिविल डिफेंस के पद पर तैनात अमिताभ ठाकुर ने दाखिल की है। उनका कहना है कि इतनी बड़ी संख्या में छुट्टियां काम प्रभावित करती हैं। साथ ही उन्हें अचानक घोषित कर दिया जाता है, जिसकी वजह से भी मुश्किलें बढ़ जाती हैं।

अगर छुट्टियों का यही हाल रहा तो प्रदेश की तरक्की की उम्मीद करना बेमानी साबित होगा। ऐसे में मानसिकता बदलने की जरूरत है। महापुरुषों को याद ही करना है तो उन्हें कार्यालय व स्कूल में मौजूद रहकर भी नमन किया जा सकता है। छुट्टियां घोषित करने के लिए सिर्फ सियासी फायदा न देखा जाए वरना उत्तर प्रदेश को उत्तम प्रदेश बनाने की बात सिर्फ कोरी बयानबाजी ही रहेगी।

नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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