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दर्शक नहीं समझ सके “लीला” की पहेली…..

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फिल्म का नाम : एक पहेली लीला

प्रमुख कलाकार : सनी लियोनी, जय भानुशाली, राहुल देव, रजनीश दुग्गल, मोहित अहलावत और जस अरोड़ा

निर्देशक : बॉबी खान

प्रोड्यूसर : भूषण कुमार

संगीतकार: मीत ब्रदर्स, अमाल मलिक, डॉ जियूस, टोनी कक्कड़, उजैर जसवाल

स्टार : 1.5

अवधिः 144 मिनट

सनी लियोनी स्टारर फिल्म ‘एक पहेली लीला’ सिनेमाघरों में रिलीज हो चुकी है। कहानी पुनर्जन्म पर आधारित है जो समझ के परे है। हालांकि, अगर आप इस तरह की घटनाओं पर भरोसा करते हैं तो इस फिल्म को देखने का रिस्क ले सकते है। वैसे तो पुनर्जन्म पर पहले भी कई फिल्में आ चुकी हैं, और ज्यामदातर बॉक्सो ऑपिफस पर मुंह के बल गिरी, लेकिन ‘…लीला’ में जिसका पुनर्जन्म हुआ है, उसे, खासकर करण (जय भानुशाली) को यह तक पता नहीं होता कि वह किसका पुनर्जन्म है और वह किसलिए दोबारा दुनिया में आया है। डायरेक्टर बॉबी खान ने जो कहानी दर्शकों के सामने पेश की है, उसमें कम से कम लीला की पहेली जैसा तो कुछ भी नहीं है। और डॉयरेक्टहर बॉबी खान बुरी तरह फेल होते नजर आये है।

कथाभूमि पर गौर न करें कहानी लंदन से जोधपुर, जैसेलमेर शहरों तक तो आती ही है, समय के हिसाब से सदियों पीछे भी चली जाती है। प्रेम, पुनर्जन्म, पॉपुलर म्यूजिक, फैशन, फोटोग्राफी, स्टेज परफॉरमेंस जैसी चुनी हुई घटनाओं और प्रसंगों के साथ फिल्म तैयार कर ली गई है। तर्क, कंटीन्यूटी और कथाविस्तार की बारीकियों में जाने पर उलझ जाने का खतरा रहेगा। कहानी एक साथ वर्तमान और अतीत में घूमती है। अतीत की लीला और वर्तमान की मीरा सनी लियोनी हैं। बाकी पुनर्जन्म में आए किरदारों के चेहरे बदल गए हैं। चेहरा वही रखा जाता तो क्लाइमैक्स का विस्मय खत्म हो जाता।
अगर बॉबी खान की ‘एक पहेली-लीला’ को किसी फिल्म के बजाय वीडियो म्यूजिक संकलन के तौर पर देखा जाए तो यह मधुर, रंगीन और आकर्षक है। सनी लियोन के संवाद में काफी दिक्केत थी। ‘पता’ को ‘पाता’ बोलने जैसी गलतियां अनेक शब्दों में सुनाई पड़ती हैं। फिल्म में लीला की पहेली जैसा कुछ नहीं है दर्शकों को बोर करती है कहानी। बॉबी खान डायरेक्शन में बुरी तरह फेल रहे हैं। उन्होंने आज के जमाने के एक कुंवर रणवीर सिंह को पेश किया है, जो अंग्रेजी, फ्रेंच सहित कई भाषाएं बोल सकता है यह बात आपको हसने पर मजबूर कर देगी। उसके पास करोड़ों-अरबों की संपत्ति है, लेकिन आज भी सवारी घोड़े पर करता है। है हसने बाली बात। इसके अलावा, रणवीर मीरा को अपनी लाइब्रेरी दिखाता है, जिसमें अंग्रेजी किताबों का भंडार है। वह कहता है कि ये सभी किताबें उसके स्वर्गीय पिताजी पढ़ा करते थे। आश्चेर्य की बात है कि लाइब्रेरी में 2008 में आई ‘फाइनल वार्निंग’ जैसी बुक्स हैं। अब सवाल उठता है कि कई सालों पहले मर चुका इंसान 2008 की किताब कैसे पढ़ सकता है। वैसे, ये तो सिर्फ उदाहरण हैं, ऐसी ही कई बातें हैं, जो बॉबी खान के निर्देशन पर सवालिया निशान छोड़ती हैं और दर्शकों को निराश करते है।

नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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