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मुख्य समाचार

रामपाल समर्थकों से आश्रम खाली करने को कहा

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चंडीगढ़| विवादित संत रामपाल को गिरफ्तार न कर पाने के मामले में पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय से फटकार मिलने के बाद हरियाणा सरकार ने रामपाल के समर्थकों को बरवाला स्थित सतलोक आश्रम खाली करने का आदेश दिया है। हिसार के उपायुक्त एम. एल. कौैशिक ने सोमवार को कहा, “क्योंकि बाबा रामपाल के खिलाफ पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने गैर जमानती वारंट जारी किया है, इसीलिए बाबारामपाल के अनुयायियों और भक्तों को जल्द से जल्द आश्रम खाली करने के लिए कहा गया है।

उन्होंने कहा, “उच्च न्यायालय ने पुलिस को बाबा रामपाल की गिरफ्तारी के आदेश दिए हैं, और उन्हें जल्द से जल्द न्यायालय के समक्ष पेश करने के लिए कहा है।”
रामपाल के अनुयायियों को कानून के क्रियान्वन में किसी प्रकार की बाधा पैदा न करने की चेतावनी देते हुए उपायुक्त ने कहा कि जो भी रामपाल समर्थक शांतिपूर्वक आश्रम से बाहर आएंगे उन्हें रेलवे स्टेशन और बस अड्डा तक पहुंचाने की व्यव्स्था की जाएगी। यहां से 210 किलोमीटर की दूरी पर स्थित रामपाल के आश्रम के बाहर सैकड़ों महिलाओं और बच्चों समेत तकरीबन हजार से भी ज्यादा समर्थक पिछले 15 दिनों से भी ज्यादा समय से डेरा डाले हुए हैं। वे पुलिस को रामपाल को गिरफ्तार करने के लिए आश्रम के अंदर नहीं जाने दे रहे हैं।

रामपाल गिरफ्तारी से बचने की कोशिश कर रहे हैं, और वह गैर जमानती वारंट जारी होने से पहले अदालत के सामने भी पेश नहीं हुए। उच्च न्यायालय ने पांच नवंबर को रामपाल के खिलाफ गैर जमानती वारंट जारी किया था।  अपने वकील द्वारा अदालत में दिए गए चिकित्सकीय प्रमाण पत्र के आधार पर रामपाल सोमवार को भी न्यायालय में पेश नहीं हुए।

सोमवार को उच्च न्यायालय ने हरियाणा सरकार और पुलिस को रामपाल की गिरफ्तारी न करने के मामले में कड़ी फटकार लगाई और उन्हें जल्द से जल्द अदालत में पेश करने को कहा। आश्रम के बाहर रविवार सुबह से ही तनाव व्याप्त है क्योंकि सैकड़ों पुलिसकर्मियों ने परिसर को चारों ओर से घेर लिया था। आश्रम परिसर के बाहर मौजूद समर्थक पुलिस को अंदर नहीं जाने दे रहे हैं। रामपाल पर हत्या, भीड़ को उकसाने एवं अदालत की अवमानना का आरोप है। यह तीसरा मौका है जब रामपाल अदालत के सामने पेश नहीं हुए हैं।

नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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