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भारत की वो 8 जगह जहां रंगों से नहीं अलग तरीके से खेली जाती है होली

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नई दिल्ली। होली रंगो का त्यौहार होता है। सभी लोग इस त्यौहार में एक दूसरे को रंग लगाते है साथ ही साथ गले मिलकर अपना अपना प्रेम एक दूसरे के प्रति ज़ाहिर करते है। लेकिन क्या आप सब जानते है की कई ऐसी भी जगह है जहाँ होली रंगो से नहीं खेली जाती।

अलग अलग जगहों की अलग अलग परंपरा की वजह से होली को लोग अपने अपने तरीके से मनाते है। आइयें जानते है अलग अलग जगहों में इस त्यौहार को मानाने का तरीका

1- गोवा का शिमगोत्सव

गोवा में पुर्तगालियों के शासन से प्रभावित है होली की परंपरा। गोवा के निवासी होली को कोंकणी में शिमगो या शिमगोत्सव कहते हैं। होली के दिन पंजिम से जलूस निकाला जाता है जो मंजिल पर जाकर सांस्कृतिक कार्यक्रम में बदल जाता है।

2 – फाग के गीतों से सजी होली

छत्तीसगढ़ में इस पर्व पर लोक गीतों की परंपरा है। वसंत के आते ही छत्तीसगढ़ की गली-गली में नगाड़े की थाप के साथ राधा-कृष्ण के प्रेम प्रसंग भरे गीत जन-जन के मुंह से बरबस फूटने लगते हैं। फाग के गीत होली के दिन सुबह से देर शाम तक गूंजते हैं। लड़कियां शादी के बाद पहली होली अपने मायके में ही मनाती हैं।

3- कुमाऊं की खड़ी होली

उत्तराखंड के कुमाऊं की गीत बैठकी में शास्त्रीय संगीत की गोष्ठियां आयोजित की जाती हैं। शाम के समय कुमाऊं के घर-घर में बैठक होली की सुरीली महफिलें जमने लगती हैं। इस रंग में सिर्फ अबीर-गुलाल का टीका ही नहीं होता, बल्कि बैठकी होली और खड़ी होली गायन की शास्त्रीय परंपरा भी शामिल होती है।

4-  पहाड़ों में मक्खन की होली

दयारा बुग्याल में प्रसिद्ध अंढूड़ी उत्सव में मक्खन की होली खेल कर प्रकृति की पूजा की जाती है। इस खास तरह के उत्सव में भाग लेने वाले पर्यटक मखमली बुग्यालों में मक्खन की होली खेलने आते हैं। मक्खन की होली खेलने के कारण अंढूड़ी उत्सव को ‘बटर फेस्टिवल’ के रूप में भी जाना जाता है।

5 –  जीवनसाथी को ढूंढ़ते हैं युवा

भगोरिया मध्य प्रदेश के मालवा अंचल के आदिवासी इलाकों में होली का उत्सव बेहद धूमधाम से मनाया जाता है। भगोरिया हाट-बाजारों में भील समाज के युवक-युवती बेहद सज-धज कर अपने भावी जीवनसाथी को ढूंढऩे आते हैं। एक-दूसरे को पान खिलाना या गाल पर गुलाबी रंग लगाना हां समझी जाती है। इसके बाद लड़का-लड़की विवाह कर लेते हैं।

6 –  श्री आनंदपुर साहिब में होला मोहल्ला

सिक्खों के पवित्र धर्मस्थान श्री आनंदपुर साहिब में होली के अगले दिन से लगने वाले मेले को होला मोहल्ला कहते हैं। होला मोहल्ला का उत्सव आनंदपुर साहिब में छह दिन तक चलता है। इस अवसर पर मस्त घोड़ों पर सवार निहंग, हाथ में निशान साहब उठाए तलवारों के करतब दिखा कर साहस, पौरुष और उल्लास का प्रदर्शन करते हैं। पंज प्यारे जुलूस का नेतृत्व करते हुए रंगों की बरसात करते हैं। कहते हैं कि गुरु गोविंद सिंह ने स्वयं इस मेले की शुरुआत की थी।

7 –  मणिपुर में यशांग

रंगों का त्योहार मणिपुर में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है जिसे स्थानीय रूप से ‘याओसांग’ नाम दिया गया है और इसे पांच दिनों के लिए मनाया जाता है। इस त्योहार पर पारंपरिक नृत्य ‘थाबल चोंगबा’ किया जाता है, जिसमें युवा लड़के-लड़कियां हाथ पकड़कर नृत्य करते हैं। पारंपरिक वेशभूषा में घर-घर जाते हैं, और पैसे की मांग करते हैं। इससे वे उत्सव मनाते हैं।

8 –  मणिपुर में यशांग

रंगों का त्योहार मणिपुर में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है जिसे स्थानीय रूप से ‘याओसांग’ नाम दिया गया है और इसे पांच दिनों के लिए मनाया जाता है। इस त्योहार पर पारंपरिक नृत्य ‘थाबल चोंगबा’ किया जाता है, जिसमें युवा लड़के-लड़कियां हाथ पकड़कर नृत्य करते हैं। पारंपरिक वेशभूषा में घर-घर जाते हैं, और पैसे की मांग करते हैं। इससे वे उत्सव मनाते हैं।

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मालिक के साथ पीते पीते कुत्ता भी बना गया शराबी, कराया गया नशा मुक्त

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alcoholic dog coco in britain

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लंदन। शराब की लत से परेशान लोगों को तो आपने देखा होगा, लेकिन क्या आपने कभी शराबी कुत्ते को देखा है? कैनाइन अल्कोहल विदड्राल यानि किसी पालतू जानवर की नशे की लत छुडाने के दुर्लभ मामले में ब्रिटेन के एक कुत्ते को नशा मुक्त कराया गया है। शराब की लत के लिए इलाज कराने वाला वह पहला कुत्ता बन गया है।

कुत्ते को शराब की ऐसी लत लगी कि उसका मालिक भी परेशान हो गया। मालिक के साथ ही कुत्ते को भी शराब की लत लग गई थी। न्यूजवीक की रिपोर्ट के मुताबिक, इलाज के बाद अब दो वर्षीय लैब्राडोर नस्ल के कोको को प्लायमाउथ, डेवोन में वुडसाइड एनिमल रेस्क्यू ट्रस्ट को सौंप दिया गया है।

अचानक पड़ने लगे दौरे

न्यूजवीक के अनुसार कि कोको नाम के 2 साल के लेब्राडॉर को एक अन्य कुत्ते के साथ एनिमल रेस्क्यू ट्रस्ट को सौंप दिया गया था। एनिमल वेलफेयर चैरिटी के फेसबुक पेज के अनुसार, लाख कोशिशें करने के बाद दूसरे कुत्ते को नहीं बचाया जा सका।

दोनों कुत्तों को ट्रस्ट को उस वक्त सौंपा गया, जब उन्हें दौरे पड़ने लगे। हालांकि, कोको अब पूरी तरह से ठीक होने वाला है। पोस्ट में बताया गया कि कोको गंभीर रूप से बीमार हो रहा था और उसे 24 घंटे देखभाल की जरूरत पड़ती थी।

कोको को दौरे पड़ने लगे। ऐसे में उसे पूरे चार हफ्तों तक बेहोश रखा गया, ताकि उसे बार-बार दौरे ना पड़ें और उसे जल्दी से ठीक किया जा सके।

कोको की हालत में हो रहा सुधार

अब कोको पहले से काफी हद तक ठीक हो चुका है और एक नॉर्मल कुत्ते की तरह बिहेव कर रहा है। सेंक्चुरी के मैनेजर ने बताया कि कोको अब अच्छी तरह से रिकवर कर रहा है।

 

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