नेशनल
इस नेता की रैली में भीड़ देखकर कांप गई थीं इंदिरा, फिर उठाया था ये कदम!
नई दिल्ली। उत्तराखंड के चुनावी इतिहास में 1982 के उपचुनाव जैसा चुनाव कभी नहीं हुआ। 1982 के इस उपचुनाव ने पूर्व प्रधानमन्त्री इंदिरा गाँधी के होश उड़ा दिए थे।
इंदिरा गाँधी का सामना कांग्रेस से बगावत करने वाले तत्कालीन गढ़वाल सांसद हेमवती नंदन बहुगुणा से था। बहुगुणा ने 1982 में पार्टी और संसद की सदस्यता दोनों ही छोड़ दी थी।
वैसे तो उस उपचुनाव में बहुगुणा के सामने बतौर कांग्रेस उम्मीदवार चंद्रमोहन सिंह नेगी खड़े थे लेकिन प्रतिष्ठा इंदिरागांधी की दांव पर लगी थी।
दरअसल, कांग्रेस छोड़कर निर्दलीय ताल ठोक रहे हेमवती नंदन बहुगुणा के समर्थन में पूरा पहाड़ ही चुनाव में खड़ा हो गया था। दून के ऐतिहासिक परेड ग्राउंड में बहुगुणा की चुनावी सभा हुई, तो इस कदर जनसैलाब उमड़ पड़ा कि पांव रखने के लिए जमीन तक नहीं बची। प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने जो फीडबैक दिया, उसने उन्हें चौंका दिया था।
कहा तो ये भी जाता है कि बहुगुणा का भाषण सुनने के लिए इंदिरा गोपनीय ढंग से दून पहुंची थीं। परेड ग्राउंड के एक स्थान पर उनका हेलीकाप्टर उतरा था और वहीं से उन्होंने बहुगुणा का पूरा भाषण सुना था।
इंदिरा गाँधी के साथ सत्ता की ताकत थी तो बहुगुणा के पास था जन समर्थन। दोनों के बीच बेहद ही दिलचस्प जंग हुई जिसमें हेमवती नंदन बहुगुणा को जीत हासिल हुई।
आपको बता दें, की बहुगुणा की दून रैली का ऐसा प्रभाव पड़ा कि इंदिरा गाँधी ने चुनाव में वहां एक रैली तक नहीं की। इस उपचुनाव में गढ़वाल के अन्य जिलों में बहुगुणा का प्रदर्शन शानदार रहा, लेकिन देहरादून के भीतर कांग्रेस से उन्हें कड़ी टक्कर मिली थी।
रिपोर्ट-मानसी शुक्ला
उत्तर प्रदेश
जो हुकूमत जिंदगी की हिफ़ाज़त न कर पाये उसे सत्ता में बने रहने का कोई हक़ नहीं, मुख्तार की मौत पर बोले अखिलेश
लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने मुख्तार अंसारी की मौत पर सवाल उठाए हैं। साथ ही उन्होंने इस मामले पर योगी सरकार को भी जमकर घेरा है। उन्होंने मामले की सर्वोच्च न्यायालय के जज की निगरानी में जांच किए जाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि यूपी इस समय सरकारी अराजकता के सबसे बुरे दौर में है। यह यूपी की कानून-व्यवस्था का शून्यकाल है।
सोशल मीडिया साइट एक्स पर अखिलेश ने लिखा कि हर हाल में और हर स्थान पर किसी के जीवन की रक्षा करना सरकार का सबसे पहला दायित्व और कर्तव्य होता है। सरकारों पर निम्नलिखित हालातों में से किसी भी हालात में, किसी बंधक या क़ैदी की मृत्यु होना, न्यायिक प्रक्रिया से लोगों का विश्वास उठा देगा।
अपनी पोस्ट में अखिलेश ने कई वजहें भी गिनाई।उन्होंने लिखा- थाने में बंद रहने के दौरान ,जेल के अंदर आपसी झगड़े में ,जेल के अंदर बीमार होने पर ,न्यायालय ले जाते समय ,अस्पताल ले जाते समय ,अस्पताल में इलाज के दौरान ,झूठी मुठभेड़ दिखाकर ,झूठी आत्महत्या दिखाकर ,किसी दुर्घटना में हताहत दिखाकर ऐसे सभी संदिग्ध मामलों में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की निगरानी में जाँच होनी चाहिए। सरकार न्यायिक प्रक्रिया को दरकिनार कर जिस तरह दूसरे रास्ते अपनाती है वो पूरी तरह ग़ैर क़ानूनी हैं।
सपा प्रमुख ने कहा कि जो हुकूमत जिंदगी की हिफ़ाज़त न कर पाये उसे सत्ता में बने रहने का कोई हक़ नहीं। उप्र ‘सरकारी अराजकता’ के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। ये यूपी में ‘क़ानून-व्यवस्था का शून्यकाल है।
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