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आध्यात्म

तीर्थराज को प्रणाम कर जगद्गुरु अधोक्षजानंद ने किया जगन्नाथ पुरी के लिए प्रस्थान!

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लखनऊ। पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी अधोक्षजानंद देव तीर्थ के कुम्भ मेला शिविर से गुरुवार को धर्म ध्वजा उतार ली गयी। इसके बाद तीर्थराज को प्रणाम कर जगद्गुरु शंकराचार्य जगन्नाथ पुरी, उड़ीसा प्रस्थान कर गये।

कुम्भ के समापन के बाद शंकराचार्य स्वामी अधोक्षजानंद देव तीर्थ ने आज सुबह संगम में स्नान कर प्रयाग के लगभग सभी तीर्थों का दर्शन किया। इसके बाद विधि विधान के साथ उनके शिविर में विगत 50 दिन से फहर रही धर्म ध्वजा को उतारा गया।

इस मौके पर श्री निर्मोही अनी अखाड़ा के श्रीमहंत राजेंद्र दास, निर्वाणी अनी अखाड़ा के श्रीमहंत धर्मदास, दिगंबर अनी अखाड़ा के श्रीमहंत हिटलर दास बाबा और चित्रकूट के श्रीमहंत रामजी दास समेत कई संत महात्मा मौजूद रहे।

स्वामी अधोक्षजानंद का कुम्भ शिविर मेला क्षेत्र के सेक्टर 13 में तुलसी मार्ग पर लगा था। प्रदेश के जेल मंत्री जय कुमार सिंह जैकी द्वारा धर्म ध्वजा रोहण के साथ 14 जनवरी से शिविर प्रारम्भ हुआ था। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के अध्यक्ष प्रो0 राम शंकर कठेरिया ने शिविर में सपत्नीक आकर स्वयं दंडी संन्यासियों को भोजन कराकर भंडारा का शुभारम्भ किया था, जो महाशिवरात्रि के पर्व तक जारी रहा।

शंकराचार्य के शिविर में करीब 50 दिन तक कई धार्मिक, सांस्कृतिक और सामाजिक अनुष्ठान सम्पन्न हुए। इस दौरान दो दिन का विशेष नेत्र शिविर भी चला, जिसमें कोलकाता से आये प्रसिद्ध नेत्र विशेषज्ञों करीब पांच हजार रोगियों का परीक्षण कर तीन हजार लोगों को निःशुल्क चश्मा वितरण किया।

शिविर में अमेरिका से आये योग गुरु आचार्य अरुण कुमार का भी विशेष अभ्यास शिविर चला। मकर संक्रांति से लेकर महाशिवरात्रि तक यज्ञ का भी आयोजन हुआ, जिसमें वरिष्ठ कांग्रेस नेता और पूर्व केंद्रीय मंत्री सुवोध कांत सहाय समेत देश के विभिन्न राज्यों के मंत्रियों, राजनेताओं और अन्य श्रद्धालुओं ने आहुतियां डालीं। यूएसए की प्रसिद्ध अप्रवासी भारतीय श्रीमती इंद्रा बैन इंद्रबदन ठाकर इस यज्ञ की मुख्य यजमान रहीं।

महाशिवरात्रि के अवसर पर पूरे दिन और देर रात तक भगवान चंद्रमौलेश्वर और राजराजेश्वरी त्रिपुर सुन्दरी की आराधना चली। देश भर से आये भक्तों ने काशी के वैदिक विद्वानों के सानिध्य में विधि विधान से महादेव की आठों प्रहर की पूजा की।

इस दौरान भगवान चंद्रमौलेश्वर और राजराजेश्वरी त्रिपुर सुन्दरी की कमल पुष्पों से सहस्रार्चन का अनुष्ठान भी सम्पन्न हुआ था। मंगलवार को भोर में यज्ञ की पूर्णाहुति हुई थी।

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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