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बीजेपी ने ढूंढ निकाली सपा-बसपा महागठबंधन की काट, इस फॉर्मूले से करेगी यूपी फतह!

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लखनऊ। आम चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) को उत्तर प्रदेश में पटखनी देने के लिए समाजवादी पार्टी (सपा) और बहुजन समाज पार्टी (बसपा) ने 25 साल पुरानी दुश्मनी को भूलाकर गठबंधन किया है। उपचुनाव में मिली जीत से उत्साहित सपा और बसपा जहां इस बार अपनी प्रचंड जीत का दावा कर रही है वहीं बीजेपी ने अब इस गठबंधन की काट ढूंढ निकाली है।

मिली जानाकारी के मुताबिक दलितों के दिल में जगह बनाने के लिए बीजेपी सूबे के हर शहर में खिचड़ी भोज का आयोजन करने जा रही है। मंगलवार से बीजेपी दलित बस्तियों में खिचड़ी भोज की शुरुआत करने जा रही है और ये कार्यक्रम  25 फरवरी तक जारी चलेगा।

सूबे की सियासत में दलित समुदाय किंगमेकर की भूमिका में है। सूबे का 21 फीसदी दलित मतदाता प्रदेश से लेकर देश की सत्ता का फैसला करने में अहम भूमिका निभाता रहा है। बता दें कि 2014 के लोकसभा और 2017 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी इन दलित मतों में सेंधमारी करके ही देश और प्रदेश की सत्ता पर विराजमान हुई थी।

ऐसे में 2019  आते ही सभी दलों ने इस समुदाय को साधने की कोशिशें तेज कर दी हैं। इसी रणनीति के तहत बीजेपी सूबे के अलग-अलग मंडलों में खिचड़ी भोज के जरिए दलितों वोट को अपने पक्ष में करने की रणनीति बनाई है। बीजेपी अपने सभी 1471 तहसील मंडलों में आयोजन कर रही है। बीजेपी अनुसूचित मोर्चा के द्वारा ही खिचड़ी भोज दी जा रही है, जिसमें बीजेपी की ओर से दलित समुदाय के साथ-साथ सभी वर्गों को भी बुलाया गया है।

गौरतलब है कि उत्तर प्रदेश की कुल 80 लोकसभा सीटों में से 17 सीटें अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित हैं। 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने सभी 17 आरक्षित सीटों पर जीत दर्ज की थी। इसी तरह 2017 के  विधानसभा चुनाव में भी बीजेपी कामयाब रही। प्रदेश में कुल 403 विधानसभा सीटों में से 86 सीटें आरक्षित हैं, जिसमें से बीजेपी 76 सीटें जीतने में सफल रही थी।

2019 के लोकसभा चुनाव के लिए सपा-बसपा के साथ आने के बाद बीजेपी की मुश्किलें थोड़ी बढ़ती नजर आ रही हैं, साथ ही दलितों का एक बड़ा समूह बीजेपी से नाराज है, उनका आरोप है कि जबसे बीजेपी सत्ता में आई है दलितों पर उत्पीड़न के मामले काफी बढ़ गए हैं। अब देखना यह होगा कि बीजेपी के इस नए मास्टर प्लान से पार्टी को क्या फायदा होता है।

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दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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