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मात्र 84 रुपए का भरें ये फार्म, सरकार भेजेगी आपके बैंक अकाउंट में 24 हजार रुपए
अटल पेंशन योजना (एपीवाई), भारत के नागरिकों के लिए असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों पर केंद्रित एक पेंशन योजना है। एपीवाई के तहत, 60 साल की उम्र में 1,000/- या 2,000/- या 3000/- या 4000 या 5000/- प्रति माह रुपये की न्यूनतम पेंशन की गारंटी ग्राहकों द्वारा योगदान के आधार पर दिया जाएगा। भारत का कोई भी नागरिक एपीवाई योजना शामिल हो सकता हैं।
इस योजना में आपको सिर्फ एक बार 84 रुपए देकर 24000 रुपए सालाना पा सकता हैं। इस योजना में आवेदक की न्यूनतम आयु 18 वर्ष और अधिकतम 40 वर्ष होना ज़रूरी है। इस योजना का लाभ उठने के लिए आपके पास आवेदक का बैंक में बचत खाता और आधार कार्ड होना भी जरूरी है।
इस योजना से जुड़कर आवेदक को कम से कम बीस साल रुपए जमा करना होगा। इस योजना में सरकार ने अलग-अलग ब्रैकेट बना रखे है, जिसमें 42 रुपए प्रतिमाह की किस्त से लेकर 1454 रुपए प्रतिमाह का प्लान लिया जा सकता है।
बता दें, 18 की उम्र पूरा कर चुके आवेदक हर महीने 84 रुपए 60 की उम्र तक जमा करता हैं, तो सरकार उसको सालाना 24 हजार रुपए तब तक देगी, जब तक वह जिन्दा रहेगा। इस योजना से अब तक 1 करोड़ से भी ज्यादा लोग जुड़ चुके हैं।
एपीवाई (अटल पेंशन योजना ) खाता खोलने के लिए प्रक्रिया –
बैंक शाखा/पोस्ट ऑफिस जहां व्यक्ति का बचत बैंक है को संपर्क करें या यदि खाता नही है तो नया बचत खाता खोलें।
बैंक/डाकघर बचत बैंक खाता संख्या उपलब्ध करायें और बैंक कर्मचारियों की मदद से एपीवाई पंजीकरण फार्म भरें।
आधार/मोबाइल नंबर उपलब्ध कराएं। यह अनिवार्य नहीं है, लेकिन योगदान के बारे में संचार की सुविधा हेतु प्रदान की जा सकती है।
मासिक/तिमाही/छमाही योगदान के हस्तांतरण के लिए बचत बैंक खाता/डाकघर बचत बैंक खाते में आवश्यक राशि रखना सुनिश्चित करें।
महत्वपूर्ण तथ्य –
यह एपीवाई खाते में नामांकन विवरण प्रदान करना अनिवार्य है। यदि ग्राहक विवाहित है तो पति या पत्नी डिफ़ॉल्ट नामित होंगें।
अविवाहित ग्राहक नामित के रूप में किसी भी अन्य व्यक्ति को मनोनीत कर सकते हैं। पर शादी के बाद उन्हें पति या पत्नी की जानकारी प्रदान करनी होगी। पति या पत्नी और नामित के आधार की जानकारी प्रदान की जा सकती है।
एक ग्राहक केवल एक एपीवाई खाता खोल सकते हैं और यह अद्वितीय है। एकाधिक खातों की अनुमति नहीं है।
एक ग्राहक एक वर्ष के के दौरान एक बार पेंशन राशि को बढ़ाने या घटाने के लिए विकल्प चुन सकते हैं।
एपीवाई ग्राहकों को पीआरएएन की सक्रियता, खाते में शेष राशि, योगदान क्रेडिट आदि के बारे में एसएमएस अलर्ट के माध्यम से समय-समय पर जानकारी सूचित कर दी जायेगी। ग्राहक को साल में एक बार खाते का भौतिक विवरण भी दिया जाएगा।
एपीवाई का सालाना भौतिक विवरण भी ग्राहकों के लिए प्रदान किया जाएगा।
योगदान आवास/स्थान के परिवर्तन के मामले में भी ऑटो डेबिट के माध्यम से बिना रूकावट के प्रेषित किया जा सकता है।
योजना केवल भारतीय नागरिक के लिए ही है।
ग्राहक अप्रैल के महीने के दौरान एक वर्ष में एक बार ऑटो डेबिट सुविधा के मोड (मासिक/तिमाही/छमाही) को बदल सकते हैं।
अटल पेंशन योजना के बारे में अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए इस लिंक पर https://goo.gl/6hXTZ6 जा कर क्लिक करें।
नेशनल
दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!
सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ
लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।
26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।
इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।
इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।
इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान
असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।
दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।
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