ऑफ़बीट
‘वो मुझे गलत तरीके से घूरता था, जब मैं स्कूल जाती थी’
सहारनपुर। अब ज्योति (काल्पनिक नाम) घर पर थी। जिस खिड़की पर शीशा टिकाकर वो स्कूल जाने के लिए चोटी बनाया करती थी। आज उसी खिड़की से वो स्कूल जाती उन तमाम लड़कियों को देख रही थी, जिनके साथ बैठकर कभी वो स्कूल की बेंच पर अपना टिफिन बांटा करती थी। ज्योति और उसके स्कूल के बीच में एक डर था, जो उसे पढ़ने से रोक रहा था।
सहारनपुर की सड़कें तीन साल से उन कदमों को तरस रही हैं। तीन साल से वो बस्ता वैसा का वैसा ही पड़ा है, तीन साल से स्कूल की उन दीवारों ने ज्योति को नहीं देखा। ज्योति किसी छुट्टी पर नहीं गई थी, न ही किसी गरीबी जैसे दंश को लेकर मजबूर थी। ज्योति के पैरों में पायल के बजाय पड़ोस में रहने वाले एक शोहदे की हवस से भरी जंजीरें थीं, जो तीन साल से उसके पैरों को स्कूल जाने से रोक रहीं थी।
Saharanpur: Minor girl says she stopped going to school 3 years ago because of repeated eve-teasing by a man who works in the neighbourhood. Father says, 'I wanted to educate her but was scared for her. He threatens to kill me. So I've filed a police complaint'. Accused arrested pic.twitter.com/YW3vy0Ia5A
— ANI UP (@ANINewsUP) August 30, 2018
ये कहानी सिर्फ सहारनपुर की ज्योति की हो सकती है लेकिन ये हाल देश की उन तमाम बच्चियों का है जो महिला सम्मान से वंचित कुछ लोगों की छेड़खानी का शिकार होकर स्कूल जाना छोड़ देती हैं। ज्योति अभी 18 साल की नहीं हुई थी लेकिन उसे पता था कि सड़क पर उसे घूरती निगाहें उससे क्या झीनना चाहती हैं। ज्योति जब भी घर से निकलती थी उसका सामना पड़ोस में काम करने वाले एक शख्स की वहशी निगाह, वीभत्स चाह, हरकतों और छेड़खानी से होता था। ज्योति के नाज़ुक कंधे पहले से ही बस्ते का बोझ उठाए थे तो ज़ाहिर सी बात है कि वो इन गैर सामाजिक तत्वों का बोझ नहीं उठा पाई।
इस तरह की छेड़खानी हर साल हजारों बच्चियों को अपना शिकार बनाती है और तब तक कुरेदती है जब तक वो अपना स्कूल या दफ्तर छोड़ नहीं देती। आपको जानकर हैरानी हो सकती है कि भारतीय मानव संसाधन विकास मंत्रालय की वर्ष 2018 की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 62.1 लाख बच्चे स्कूल नहीं जाते। इन स्कूल न जाने वाले बच्चों में से 20 फीसदी बच्चे ऐसे हैं जो बाल विवाह, स्कूल और आसपास के माहौल में सुरक्षा का अभाव, लड़कियों की शिक्षा में परिवार की रुचि का अभाव और घरेलू कामकाज में हाथ बंटाने का शिकार हैं। इन आंकड़ों में लड़कियों की संख्या लड़कों से काफी अधिक है।
ज्योति भी इन आंकड़ों का ही अदद एक हिस्सा थी। बार-बार हर बार ज्योति की निगाहें किताबों में दर्ज ‘महिला सशक्तिकरण’ के उन तमाम विषयों के बजाय उस पड़ोसी से बचने का रास्ता ढूंढ़ती थीं। ज्योति को टूटने का डर नहीं था, न ही उसे हारने का डर था, उसे बस अपने स्कूल के छूट जाने का डर था। शायद इसीलिए वो चुप थी। लेकिन कुछ समय के लिए ही सही स्वच्छंदता से लबरेज़ वो पड़ोसी जीत गया। ज़रा सोचिए क्या बीत रही होगी ज्योति पर, जब उसने अपने पापा को बताया कि महज़ स्कूल जाने के लिए उनकी औलाद को क्या झेलना पड़ रहा है?
अब एक बार सोचिए क्या बीती होगी उस बाप पर जिसे पता चला होगा कि उसकी बच्ची को परीक्षा में अव्वल आने, क्लास में मॉनीटर बनने के बजाय किन-किन चीज़ों से मुकाबला करना पड़ रहा है। ज्योति के पापा ने अपने स्तर से आवाज़ उठाई, विरोध भी जताया लेकिन उन्हें सामना करना पड़ा जान से मारने की धमकियों का। ज्योति के पापा डरते नहीं थे, न ही वो कमज़ोर थे। बस उन्हें जीना था ताकि ज्योति पढ़ सके।
लेकिन हां, शायद वो डरते थे। वो डरते थे ज्योति के लिए। उन्होंने ज्योति को स्कूल न भेजने का फैसला किया और शामिल कर दिया ज्योति को मानव संसाधन विकास मंत्रालय के उसी आंकड़ें में। जैसे ही ज्योति स्कूल जाती लड़कियों को देखने भर के लिए खिड़की पर पहुंचती घरेलू कामकाज उसे पीछे खींच लेते थे और वो खिड़की एक बार फिर सूनी हो जाती।
सूरज ढलता है, अंधेरा होता है, सावन में बारिश की झरि भी लगती है लेकिन सूरज की किरणें अपना रास्ता बदलने के बजाय नया रास्ता ढूंढ़ ही लेती हैं। ज्योति के पापा ने जान से मारने, ज्योति को तहस-नहस कर देने वाली धमकियों से और डरने के बजाय आखिर तीन साल बाद एक पुलिस कंप्लेंट दर्ज कराई। जीत बड़ी कठोर हृदय की होती है, हिम्मत की आखिरी घूंट पर मिलती है। लेकिन सत्य से बड़ा प्रेम करती है, उसी को मिलती है।
अब ज्योति आज़ाद है क्योंकि वो शोहदा, वो शख्स जो दिखने में चाहे जैसा हो लेकिन जिसकी सूरत से ज्योति नफ़रत करती है, अब वो सलाखों के पीछे है। अब ज्योति स्कूल जा पाएगी, उसका बस्ता एक बार फिर रोज़ उन किताबों से मिलेगा जिनके पन्ने कोने से मुड़े हैं, वो सड़क एक बार फिर उन जूतों की गवाह बनेगी जो ज्योति को स्कूल ले कर जाएंगे।
लेकिन सवाल सिर्फ यही है कि जब ज्योति बड़ी होगी और किसी सरकारी नौकरी के लिए उसकी पढ़ाई में छूटे उन तीन सालों का हिसाब मांगा जाएगा तो वो हिसाब कैसे देगी? कौन लौटाएगा ज्योति के गर्त में गए वो तीन साल? ज्योति जैसी देश की तमाम लड़कियां आपसे ये सवाल पूछ रही हैं।
ऑफ़बीट
कल है रंगों का त्यौहार, जानिए होली पर क्यों पहना जाता है सफेद कपड़ा
फाल्गुन माह के शुरू होते ही होली के त्यौहार को मनाने की प्लानिंग शुरुआत हो जाती है। होली का त्यौहार ही एक ऐसा त्यौहार है जो खुद के साथ – साथ दूसरों के भी जीवन में रंग भरने का मौका देता है। होली का त्यौहार आने में अब कुछ ही दिन बचे हैं इस वर्ष खेलने वाली होली यानि धुलेंडी का त्यौहार 25 मार्च को होगा। तो चलिए जानते हैं होली के दिन किस रंग के कपड़े पहले से मिलेगा मान सम्मान और प्रत्येक क्षेत्र में सफलता।
अक्सर देखा जाता है कि होली के दिन लोग सफेद कपड़े पहनकर होली खेलने के लिए निकलते हैं। शायद ही कोई ऐसा होगा जिसने इस बात पर गौर किया हो कि होली के दिन आखिर क्यों लोग सफेद कपड़े ही पहनते हैं। वैसे होली पर सफेद रंग के कपड़े पहनने के कई कारण होते हैं। तो चलिए आज इसी बात को जानने की कोशिश करते हैं कि आखिर क्यों सफेद रंग को ही होली जैसे रंगों भरे त्योहार के लिए चुना गया है।
मन के साथ तन को उजला करने का त्यौहार है होली
होलिका दहन जो कि रंग खेलने वाली होली के दिन पहले मनाई जाती है। इस दिन उबटन इत्यादि लगाकर होलिका में प्रवाहित करने का प्रावधान है। यह इसलिए होता है कि होली में मन से बुरे विचारों को निकालकर और शरीर से मैल रूपी बुरी चीजों को निकाल दिया जाए। इस दिन लोगों के मन के साथ तन भी उजला हो जाता है और यदि इसके साथ दूसरे दिन सफेद वस्त्र धारण करके होली खेली जाए तो उसमें पड़ने वाला रंग सकारात्मक और रंग-बिरंगा ही दिखेगा। इसलिए भी होली के दिन सफेद रंग के कपड़े पहनकर होली खेलना शुभ माना जाता है।
सफेद रंग है भाईचारे और सुख-समृद्धि का प्रतीक
सफेद रंग हमें लड़ाई-झगड़े भूलकर अपनों को फिर से गले लगाना सिखाता है। सफेद रंग को शांति, सुख-समृद्धि का प्रतीक मानते हैं। यह रंग हमारे दिमाग को शांत रखता है। लोग होली के दिन सफेद रंग पहनकर प्यार, भाईचारे और मानवता को दर्शाते हैं। इस दिन सफेद रंग पहनने से मन शांत रहता है। जिन लोगों को बात-बात में क्रोध आ जाता है उन्हें विशेषकर इस दिन सफेद रंग के कपड़े पहनने चाहिए।
अच्छाई की जीत मनाने के लिए सफेद रंग पहनना शुभ
सफेद रंग निष्पक्षता और अच्छाई का प्रतीक होता है। रंग वाली होली खेलने से एक दिन पहले होलिका दहन किया जाता है और होलिका दहन की कहानी हम सभी अच्छी तरह जानते हैं। ऐसे में त्योहार को बुराई पर अच्छाई की जीत का उत्सव भी कहा जाता है। इसलिए इस दिन भी य़दि सफेद कपड़े पहनकर होलिका जलाई जाए तो समाज में आपके स्वभाव को पसंद किया जाता है।
ग्रहों की नकारात्मकता को कम करने से सफेद रंग कारगर
होली के आठ दिन पहले से ही होलाष्टक लग जाता है। इस दौरान सभी मांगलिक और शुभ कार्य बंद हो जाते हैं क्योंकि इस समय वातावरण में ग्रहों में नकारात्मकता बढ़ी हुई होती है। जिसको कम करने के लिए यदि सफेद रंग के वस्त्रों का प्रयोग किया जाए तो ग्रहों का नकारात्मक असर कम करने में मदद मिलती है और बिगड़े काम भी बनते हैं।
सफेद रंग देता है सूर्य की गर्मी से निजात
होली का त्योहार उस समय आता है जब ठंडक जा रही होती है और मौसम में थोड़ी गर्माहट की शुरुआत हो जाती है। सूर्य की धूप तेज होने लगती है। लोग तेज धूप की वजह से पहले ही परेशान होते है । ऐसे में सफेद रंग हमें ठंडक पहुंचाता है। इसे पहनकर आप कड़कती धूप में आसानी से बाहर निकल सकते हैं।
घुल-मिलकर रहना सिखाता है सफेद रंग
सफेद एक ऐसा रंग है जिस पर हर कलर खिलकर आता है। अब रंगों के इस त्योहार में सफेद से बेहतर और क्या हो सकता है। यह रंग हमें भी दूसरों के साथ घुल-मिलकर रहना सिखाता है। युवाओं को भी सफेद रंग काफी पसंद आता है। यह आपको एक क्लासी लुक भी देता है। जिससे लोगों के बीच आपका प्रभाव बढ़ता है। सफेद रंग पहनने से यश और कीर्ति भी बढ़ती है।
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