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शिवसेना के अनुसार 2019 में भाजपा की हो जाएगी नो़टबंदी, लगेगा झटका

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मुंबई। शिवसेना ने गुरुवार को भविष्यवाणी की कि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) को 2019 लोकसभा चुनाव में ‘नोटबंदी जैसा झटका’ लगेगा। पार्टी ने कहा कि ‘लगभग सभी राज्यों में चुनावी हवा विपक्षी गठबंधन के पक्ष में बह रही है और पिछले डेढ़ साल से लोगों ने अपना मन बना लिया है कि वे भाजपा को एक तगड़ा झटका देंगे।’

शिवसेना ने कहा, कांग्रेस, बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के उत्तर प्रदेश में गठबंधन से दिल्ली जाने वाले मार्ग पर एक बड़ी बाधा आ गई है। ऐसी ही खबरें बिहार से भी हैं जहां कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल अन्य दलों के साथ मिलकर गठबंधन बना रहे हैं। केंद्र में सत्ता परिवर्तन के मजबूत संकेत दिखाई दे रहे हैं।

पार्टी ने कहा कि राजनीतिक पंडित पहले से ही अनुमान जता रहे हैं कि अगले संसदीय चुनाव में उत्तर प्रदेश का गणित 2014 के मुकाबले पलट सकता है। 2014 में भाजपा ने 80 लोकसभा सीटों में से 71 पर कब्जा जमाया था। शिवसेना ने पार्टी के मुखपत्र ‘दोपहर का सामना’ के संपादकीय में कहा, अब से ‘जुमलों’ का गुलदस्ता मुरझा जाएगा। अंतिम रास्ता जाति विभाजन और ध्रुवीकरण करने का होगा।

संपादकीय में कहा गया है कि ‘प्रत्येक राज्य में भाजपा से मोहभंग होना इसका सबूत है और जहां लोग पिछले वादों को लेकर जवाब मांग रहे हों तो उसका सही विकल्प उन्हें जाति की राजनीति में उलझाने का होता है।’ पार्टी ने कहा कि सत्ताधारियों ने इसे भांप लिया है और इसी पर उन्होंने अपना चुनावी अभियान शुरू कर दिया है। शिवसेना ने कहा कि सामान्य परिस्थितियों में इस तरह की जल्दबाजी कभी नहीं देखी गई, जब सरकार और उसके प्रमुख चुनाव से लगभग एक साल पहले पूरे लाव लश्कर के साथ मैदान में उतर आए हों।

शिवसेना ने चेतावनी दी, अब जनता को लगने लगा है कि लोकतंत्र को मजबूत करने के लिए प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्रियों को नैतिक आधार पर चुनाव अभियान क्षेत्र से दूर रहना चाहिए। लोगों ने आपको काम करने के लिए चुना है न कि पार्टी के कर्तव्यों को पूरा करने के लिए। जिन लोगों ने धोखा महसूस किया है, उन्हें बहुत अच्छे से पता है कि नोटबंदी के बम के समान सबक कैसे सिखाया जाए। संपादकीय में कहा गया कि महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश, बिहार, गुजरात और राजस्थान सहित देश के सभी हिस्सों में अशांति बढ़ रही है।

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दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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