आध्यात्म
गुरू पूर्णिमा स्पेशल: जानिए क्यों इस बार दो दिन मनाई जाएगी गुरू पूर्णिमा?
नई दिल्ली। भारतीय परंपरा में गुरू की पूजा टीचर्स-डे के दिन नहीं बल्कि गुरू पूर्णिमा के दिन होती है। इस दिन हर कोई अपने आदरणीय गुरूओं से मिलने और संपर्क साधने में जुट जाता है। गुरूओं की पूजा के इतर इस दिन का महत्व हिंदू आस्था के दृष्टिकोण से भी बहुत अधिक है। इस बार गुरुपूर्णिमा गुरुवार की रात 10:21 बजे से शुरू होगी और अगले दिन यानी शुक्रवार तक चलेगी। लेकिन अगले दिन चंद्रग्रहण के कारण सूतक लगने की वजह से गुरुवार को भी गुरु पूर्णिमा मनाई जाएगी।
28 जुलाई को समाप्त होगा सूतक:
चंद्रग्रहण का सूतक 27 जुलाई को दोपहर 2.54 बजे से शुरू होगा, जो 28 जुलाई को सूर्योदय के साथ ही समाप्त होगा। ऐसे में गुरुपूर्णिमा के चलते मंदिरों में होने वाले रात्रि जागरण, भजन संध्या व विशेष पूजा-आर्चना जैसे रात्रिकालीन कार्यक्रम गुरुवार रात में ही किए जाएंगे।
सूतक लगने से पहले तक मना सकते हैं गुरुपूर्णिमा:
वहीं शुक्रवार को सूतक लगने से पहले तक लोग गुरुपूर्णिमा मना सकते हैं क्योंकि सूतक लगते ही मंदिरों के पट बंद हो जाएंगे व जलपान, भोजन बंद रहता है। शुक्रवार को रात्रिकालीन मंदिरों में होने वाला जागरण, भंडारा, पूजा-पाठ वर्जित होने के कारण के कारण गुरु पूर्णिमा एक दिन पहले भी मनाना कोई दोष नहीं माना जा सकता।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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