Monsoon Session Of Parliament 2018
तीन तलाक बिल : कांग्रेस समर्थन देने को तैयार, मोदी सरकार के सामने रखी ये शर्त

तीन तलाक के मुद्दे पर कांग्रेस मोदी सरकार को समर्थन देने के लिए तैयार है लेकिन उससे पहले कांग्रेस ने केंद्र के आगे कुछ शर्तें रखी हैं। अखिल भारतीय महिला कांग्रेस की अध्यक्ष सुष्मिता देव ने कहा कि अगर सरकार तीन तलाक विरोधी विधेयक में महिला के लिए गुजारा भत्ता का प्रावधान करती है तो कांग्रेस इस विधेयक का समर्थन जरूर करेगी। दरअसल, पीएम मोदी लगातार तीन तलाक के मुद्दे पर कांग्रेस द्वारा समर्थन नहीं दिए जाने को लेकर निशाना साधते रहे हैं।
सुष्मिता देव ने कहा कि हम तीन तलाक विरोधी विधेयक के खिलाफ में कभी नहीं थे। लेकिन विधेयक का मौजूदा स्वरूप मुस्लिम महिलाओं को नुकसान पहुंचाने वाला है। इसमें पीड़ित महिला के लिए गुजारा भत्ता का प्रावधान होना चाहिए।
उन्होंने कहा कि महिला के गुजारा भत्ता के लिए मैंने लोकसभा में संशोधन पेश किया था लेकिन वह पारित नहीं हो सका। अगर यह संशोधन स्वीकार कर लिया जाता है तो हम इस विधेयक का बिल्कुल समर्थन करेंगे।‘‘
कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा,‘‘विधेयक का मकसद यही है कि मुस्लिम महिला को न्याय मिले और तीन तलाक पर अंकुश लगे। लेकिन पति जेल चला जाएगा तो महिला की जीविका का क्या होगा। इस पहलू पर हमें ध्यान देना होगा।‘‘
गौरतलब है कि एक बार में तीन तलाक के खिलाफ लाया गया ‘मुस्लिम महिला विवाह संरक्षण विधेयक’ लोकसभा में पारित हो चुका है और फिलहाल राज्यसभा में लंबित है। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने गत 16 जुलाई को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर महिला आरक्षण विधेयक को संसद में पारित किए जाने के लिए सहयोग करने को कहा था।
उसके बाद कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने गांधी को पत्र लिखकर कहा था कि कांग्रेस महिला आरक्षण ही नहीं, बल्कि तीन तलाक, हलाला और राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग संबन्धी विधेयकों पर भी सरकार का साथ दें।
Monsoon Session Of Parliament 2018
लोकसभा में पारित हुआ दिवालिया संहिता संशोधन विधेयक

नई दिल्ली। दिवाला और दिवालियापन संहिता (आईबीसी), 2016 में घरेलू खरीदारों को वित्तीय लेनदारों के रूप में स्वीकारने के लिए लाए गए संशोधन को लोकसभा में मंगलवार को पारित कर दिया गया, जबकि विपक्षी सदस्यों ने आरोप लगाया कि यह बदलाव केवल एक उद्योग की मदद के लिए किया गया है।
वित्त मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि दिवाला और दिवालियापन संहिता (दूसरा संशोधन) विधेयक का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि सभी मामलों के परिसमापन के बजाए उनका समाधान किया जाए। उन्होंने कहा कि दिवालियापन कानून समिति ने 26 मार्च को अपनी रिपोर्ट जमा की और समिति की हर सिफारिश को संशोधन में स्वीकार कर लिया गया है।
इस विधेयक को इस साल की शुरुआत में सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश की जगह लेने के लिए लाया गया है, जिसे गोयल ने 23 जुलाई को पेश किया था।
लोकसभा में विधेयक पर चर्चा के दौरान गोयल ने अपने जवाब में कहा, हम चाहते थे कि लाभ (समिति की सिफारिशों के) को तुरंत समाधान प्रक्रिया में शामिल किया जाए। मुझे लगता है कि सरकार का ध्यान समाधान पर होना चाहिए, तरलता पर नहीं। तरलता हमारा अंतिम विकल्प होना चाहिए। और प्रक्रिया में देरी से नौकरियों के नुकसान की संभावना अधिक है।
उन्होंने अध्यादेश लाने की आवश्यकता को भी घर खरीदारों के हितों की रक्षा से जोड़ा, जो अब वित्तीय लेनदारों के रूप में माने जाएंगे। उन्होंने कहा, घर खरीदारों के हितों की रक्षा करना सरकार की जिम्मेदारी है और यही कारण है कि अध्यादेश लाया गया। हालांकि कोई भी प्रावधान पूर्व प्रभाव से लागू नहीं किया गया है, इसलिए किसी को भी व्यक्ति विशेष या उद्योग को लाभ पहुंचाने के लिए इसे लाने का कोई सवाल नहीं है।
उन्होंने कहा कि पूर्व सरकारों के दौरान, बड़े कर्जदारों ने वापस भुगतान करने की चिंता नहीं की थी, क्योंकि ऐसा माहौल बनाया गया था कि उन्हें लगता था कि कर्ज वसूलने की जिम्मेदारी बैंकों की ही है, न कि कर्ज चुकाने की जिम्मेदारी उनकी है।
उन्होंने कहा, हमने उस स्थिति को बदल दिया है। अब, बड़े कर्जदारों द्वारा बैंकों से लिए गए कर्ज चुकाए जा रहे हैं। उन्होंने कहा कि पहले की प्रक्रिया के दौरान समाधान की लागत बहुत अधिक थी, जिसे अब कम किया गया है।
उन्होंने कहा, इससे पहले, वसूली की लागत नौ फीसदी थी और इसमें सात से आठ साल लगते थे। उसके बाद भी वसूली की प्रक्रिया अटक जाती थी। आईबीसी के तहत, वसूली की लागत को एक फीसदी से भी कम कर दिया गया है और औसत वसूली 55 फीसदी रही है, जबकि कुछ मामलों में 100 फीसदी तक वसूली की गई है।
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