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ये हैं भारत के सर्वाधिक क्वालिफाइड मुख्यमंत्री, जानें किसने की कितनी पढ़ाई
भारतीय राजनेताओं की छवि सोचते ही हमारे मन में एक अनपढ़ और अपराधी प्रवृति वाले व्यक्ति की छवि सामने आती है। हमारे यहां भारत में नेताओं की शैक्षिणिक योग्यता सदा बहस का मुद्दा रही है। अगर अपने ध्यान दिया होगा तो अपने पाया होगा कि हमारे अधिकतर नेता अनक्वालिफाइड होते हैं। जहां एक ओर नेताओं की शैक्षिणिक दक्षता सदा चिंता का विषय बनी रही है वहीं दूसरी ओर देश में ऐसे कई राजनेता भी हैं जिनके पास अनेकों उपलब्धियां हैं साथ ही वे बहुत ज्यादा क्वालिफाइड भी हैं। आपको ये बात जानकार हैरानी हुई होगी, लेकिन ये सच है कि इस लिस्ट में हमारे पास डॉक्टर, इंजीनियर तथा एलएलबी डिग्री धारक नेता भी मौजूद हैं। तो चलिए जानते हैं वे कौन से नेता हैं जिनके पास हैं इस तरह की बड़ी डिग्रियां –
रमन सिंह – छत्तीसगढ़ के निर्वाचित मुख्यमंत्री रमन सिंह राजनेता होने के साथ-साथ पेशे से एक डॉक्टर भी हैं। इनका नाम देश के सर्वाधिक पढ़े-लिखे मुख्यमंत्रियों की सूची में शामिल है। ये पेशे से आयुर्वेदिक डॉक्टर हैं।
शिवराज सिंह चौहान – मध्यप्रदेश के सीएम शिवराज सिंह चौहान अपनी लीडरशिप स्किल की वजह से चर्चा में रहते हैं। ये भी उन नेताओं की सूची में अपनी जगह बनाये हुए हैं, जो सर्वाधिक पढ़े-लिखे माने जाते हैं। सीएम चौहान फिलॉस्फी में गोल्ड मेडलिस्ट भी हैं तथा पेशे से वे एक एग्रीकल्चर लिस्ट हैं।
ममता बनर्जी – पश्चिम बंगाल की सीएम ममता बनर्जी भी काफी पढ़ी-लिखी राजनेत्री हैं। इनके पास अनेकों अकेडमिक डिग्रियां हैं। ये हिस्ट्री से स्नातक हैं। इन्होने एलएलबी के साथ ही इस्लामिक स्टडीज में एमए भी किया हुआ है। इन्होने कलिंग इंडस्ट्रीयल इंस्टीट्यूट ऑफ इंडस्ट्रीयल टेक्क्रोलॉजी से डी-एलएलआईटी की डिग्री भी प्राप्त की है।
नीतिश कुमार- चार दफा बिहार के सीएम बन चुके नीतिश कुमार पेशे से एक इलेक्ट्रिकल इंजीनियर हैं। ये देश में अब तक के सबसे अच्छे तथा माने हुए वक्ता हैं।
मुकुल संगमा- मेघालय के सीएम पद पर रह चुके मुकुल संगमा पेशे से एक डॉक्टर हैं। इनके पास एमबीबीएस की भी डिग्री है। राजनीति में आने से पूर्व ये पब्लिक हेल्थ ऑफिसर भी रह चुके हैं। ये इंडियन नेशनल कांग्रेस से संबंध रखते हैं।
देवेंद्र फडणवीस – यदि बात करें महाराष्ट्र के सीएम देवेन्द्र फणनवीस की तो शिक्षा के संबंध में देवेन्द्र काफी होशियार हैं। एलएलबी के अतिरिक्त इनके पास दो पोस्ट ग्रेजुएशन डिप्लोमा भी हैं। एक बिजनेस मैनेजमेंट में तथा दूसरा प्रोजेक्ट मैनेजमेंट में, जिसे इन्होने बर्लिन से पूरा किया था।
अरविंद केजरीवाल- देशभर के टीवी मीडिया के सुर्खियों में रहने वाले दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल राजनीति में आने से पूर्व इंडियन रेवेन्यू सर्विस ऑफिसर के तौर पर कार्यरत थे। आपको जानकर हैरानी होगी कि वे आईआईटी खडग़पुर के एक्स स्टूडेंट भी रह चुके हैं। इसके अतिरिक्त ये आरटीआई एक्टिविस्ट भी हैं।
रघुवर दास और सिद्धारमैया- झारखंड तथा कर्नाटक के मुख्यमंत्री के पास बराबर डिग्री हैं। राजनीति में आने से पूर्व दोनों साइंस की डिग्री प्राप्त कर चुके हैं। इसके अतिरिक्त दोनों ने ही लॉ प्रैक्टिस किया हुआ है। आपको बता दें रघुबर दास बीजेपी से है तथा सिद्धारमैया इंडियन नेशनल कांग्रेस से संबंधित हैं।
वसुंधरा राजे- राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे मध्यप्रदेश में स्थित ग्वालियर के राजघराने सिंधिया परिवार की बेटी तथा हेमंत राजे की वाइफ हैं। अर्थशास्त्र में स्नातक करने के पश्चात इन्होने मुंबई यूनिवर्सिटी से राजनीति विज्ञान की डिग्री प्राप्त की। आपको बता दें कि ये राजस्थान की प्रथम महिला सीएम हैं।
इसके अतिरिक्त गुजरात के मुख्यमंत्री विजय रूपाणी तथा असम के मुख्यमंत्री सर्बनंद सोनोवाल दोनों ने ही आर्ट से स्नातक किया हुआ है एवं लॉ प्रेक्टिस की है। ये दोनों नेता बीजेपी से संबंध रखते हैं।
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दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!
सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ
लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।
26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।
इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।
इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।
इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान
असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।
दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।
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