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महागठबंधन को अभी से सताने लगा है हार का डर, इस मुद्दे पर कर रहा है मोदी सरकार का विरोध

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नई दिल्ली। अधिकतर राजनीतिक पार्टियों ने शनिवार को विधि आयोग से कहा कि वे लोकसभा और राज्य विधानसभा के चुनाव एकसाथ करवाने के प्रस्ताव का विरोध करते हैं। विरोधी पार्टियों ने इसके साथ ही कहा कि यह संविधान के विरुद्ध है और यह क्षेत्रीय हितों को कमजोर कर देगा।

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तृणमूल कांग्रेस, माकपा, आईयूएमएल ने इस प्रस्ताव का विरोध किया। भाजपा की करीबी माने जाने वाली अन्ना द्रमुक और भाजपा की सहयोगी गोवा फॉरवर्ड पार्टी ने भी इस प्रस्ताव का विरोध किया। अन्ना द्रमुक ने कहा कि वह 2019 में एकसाथ चुनाव कराने का विरोध करेगा लेकिन अगर इस मुद्दे पर सहमति बनी तो वह 2024 में एकसाथ चुनाव करवाने पर विचार कर सकता है।

भाजपा की सहयोगी शिरोमणी अकाली दल ने प्रस्ताव का समर्थन किया। विधि आयोग के साथ इस संबंध में देश के मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और क्षेत्रीय पार्टियों की दो दिवसीय बैठक यहां आयोजित की गई।

तृणमूल कांग्रेस के सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा, संविधान के बुनियादी ढांचे को बदला नहीं जा सकता। हम एक साथ चुनाव कराने के विचार के खिलाफ हैं, क्योंकि यह संविधान के खिलाफ है। ऐसा नहीं किया जाना चाहिए।

उन्होंने कहा, मान लीजिए कि 2019 में केंद्र और सभी राज्यों में एक साथ चुनाव होते हैं। अगर केंद्र में एक गठबंधन की सरकार बनती है और वह बहुमत खो देती है तो केंद्र के साथ-साथ सभी राज्यों में फिर से चुनाव कराने होंगे।

बनर्जी ने कहा, यह अव्यावहारिक, असंभव और संविधान के प्रतिकूल है। लोकतंत्र और सरकार को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। वित्तीय मुद्दा कम महत्व का है, पहली प्राथमिकता संविधान और लोकतंत्र है। संविधान को बरकरार रखा जाना चाहिए।

अन्ना द्रमुक के नेता एम थंबीदुरई ने कहा, 2019 में एक साथ चुनाव कराना संभव नहीं है। गुजरात, पंजाब, हिमाचल, तमिलनाडु और अन्य राज्य ने पांच साल के लिए सरकार को वोट दिया है, इन्हें अपना कार्यकाल पूरा करने दीजिए।

भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) सचिव अतुल कुमार अंजान ने यहां बैठक में हिस्सा लेने के बाद संवाददाताओं से कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की एक साथ चुनाव कराने की परिकल्पना संविधान की मूल भावना के खिलाफ है।

अंजान ने कहा, संसद इस मुद्दे पर चर्चा के लिए उपयुक्त मंच है। संविधान में किसी तरह के परिवर्तन के लिए संसद में चर्चा होनी चाहिए। इसके साथ ही उन्होंने कहा कि विधि आयोग को एक राष्ट्र एक चुनाव कराने की परिकल्पना पर परामर्श करने का अधिकार नहीं है।

उन्होंने कहा कि विधि आयोग कानून मंत्रालय को कानून में बदलाव के लिए सुझाव दे सकता है, लेकिन संसद से बाहर किसी भी अथॉरिटी को यह अधिकार नहीं है कि वह संविधान की समीक्षा करे।

गोवा में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की अगुवाई वाली सरकार में शामिल गोवा फॉरवार्ड पार्टी (जीएफपी) के अध्यक्ष विजय सरदेसाई ने संवाददाताओं से कहा, प्रस्ताव पूरी तरह अव्यावहारिक है। यह कारगर नहीं होगा।

उन्होंने कहा कि अगर प्रस्ताव को अमल में लाया गया तो क्षेत्रीय मसले ठंडे बस्ते में चले जाएंगे। शहर एवं ग्राम नियोजन और कृषि मंत्री विजय सरदेसाई ने कहा, सुझाव अच्छा है, लेकिन इससे क्षेत्रीय मुद्दे कमजोर पड़ जाएंगे।

अगर एक साथ चुनाव हुए तो हमारे जैसे क्षेत्रीय दल और मसलों की अहमियत कम हो जाएगी। यही कारण है कि हम इसका विरोध कर रहे हैं। यह क्षेत्रीय भावना के खिलाफ है।

कांग्रेस ने कहा है कि वह आयोग के समक्ष अपना विचार रखेगी। पार्टी नेता आर.पी.एन. सिंह ने कहा, हम सभी विपक्षी पार्टियों के साथ चर्चा कर रहे है और हम इसपर संयुक्त निर्णय लेंगे। हम इसे खारिज नहीं कर रहे हैं। हम विपक्षी नेताओं से चर्चा करेंगे और खुद के सुझाव के साथ आगे आएंगे।

आयोग ने ‘एक साथ चुनाव : संवैधानिक और कानूनी परिप्रेक्ष्य’ नामक एक मसौदा तैयार किया है और इसे अंतिम रूप देने और सरकार के पास भेजने से पहले इसपर राजनीतिक दलों, संविधान विशेषज्ञों, नौकरशाहों, शिक्षाविदों और अन्य लोगों सहित सभी हितधारकों से इस पर सुझाव मांगे हैं। चुनाव आयोग ने पहले ही कह दिया है कि वह एक साथ चुनाव करवाने में सक्षम है, बशर्ते कानूनी रूपरेखा और लॉजिटिक्स दुरुस्त हो।

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दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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