नेशनल
इमरजेंसी के दौरान जबरन होती थी लोगों की नसबंदी, पूरा सच जानकर कांप जाएगी आपकी रुह
नई दिल्ली। आज से 43 साल पहले इंदिरा गांधी ने इमरजेंसी की घोषणा कर सभी देशवासियों को चौंका दिया था। भारतीय राजनीति में सक्रिय राजनेता आज भी इमरजेंसी की उन कड़वी यादों को अपने भाषण में बयां करते हैं। इमरजेंसी के दौरान न सिर्फ लोगों को जेल में ठूस दिया गया बल्कि शारीरिक रुप से प्रताड़ित भी किया गया।
आज हम आपको इमरजेंसी के दौर की एक ऐसी बात बताने जा रहे हैं जिसे जानकर आप भी कांप उठेंगे। आपको जानकर हैरानी होगी कि आपातकाल के दौरान संजय गांधी ने भारत में नसबंदी की अभियान चलाया था। सभी सरकारी मशीनरियों को इस काम के लिए लगा दिया गया था। सभी आधिकारियों को यह कड़ी चेतावनी दे दी गई थी कि अगर महीने के लक्ष्य पूरे नहीं होंगे तो निलंबन और कड़ा जुर्माना लगेगा।
नसबंदी की प्रगति रिपोर्ट मुख्यमंत्री के सचिव को भेजी जाती थी। जानकारों के मुताबिक संजय गांधी के इस अभियान में करीब 62 लाख लोगों की नसबंदी हुई थी। कहा जाता है कि आपातकाल के दौर में लोगों के साथ बहुत बुरा बर्ताव किया जाता था। इमरजेंसी के दौरान गांवों में लोगों को घेर कर जबरन नसबंदी की जाती थी।
इस दौरान गलत ऑपरेशन से लगभग 2000 लोगों की अपनी जान तक गंवावी पड़ी। आपको जानकर हैरानी होगी कि 1933 में हिटलर ने भी जर्मनी में नसबंदी अभियान शुरु किया था लेकिन संजय गांधी पर नसबंदी का जूनून इतना सवार था कि वह हिटलर 15 गुना ज्यादा आगे निकल गए। इमरजेंसी के दौर के कई किस्से अक्सर सुनने को मिलते हैं लेकिन जो उस समय लोगों पर बीती इसका अंदाजा शायद ही आज कोई लगा सकता है।
उत्तर प्रदेश
जो हुकूमत जिंदगी की हिफ़ाज़त न कर पाये उसे सत्ता में बने रहने का कोई हक़ नहीं, मुख्तार की मौत पर बोले अखिलेश
लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने मुख्तार अंसारी की मौत पर सवाल उठाए हैं। साथ ही उन्होंने इस मामले पर योगी सरकार को भी जमकर घेरा है। उन्होंने मामले की सर्वोच्च न्यायालय के जज की निगरानी में जांच किए जाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि यूपी इस समय सरकारी अराजकता के सबसे बुरे दौर में है। यह यूपी की कानून-व्यवस्था का शून्यकाल है।
सोशल मीडिया साइट एक्स पर अखिलेश ने लिखा कि हर हाल में और हर स्थान पर किसी के जीवन की रक्षा करना सरकार का सबसे पहला दायित्व और कर्तव्य होता है। सरकारों पर निम्नलिखित हालातों में से किसी भी हालात में, किसी बंधक या क़ैदी की मृत्यु होना, न्यायिक प्रक्रिया से लोगों का विश्वास उठा देगा।
अपनी पोस्ट में अखिलेश ने कई वजहें भी गिनाई।उन्होंने लिखा- थाने में बंद रहने के दौरान ,जेल के अंदर आपसी झगड़े में ,जेल के अंदर बीमार होने पर ,न्यायालय ले जाते समय ,अस्पताल ले जाते समय ,अस्पताल में इलाज के दौरान ,झूठी मुठभेड़ दिखाकर ,झूठी आत्महत्या दिखाकर ,किसी दुर्घटना में हताहत दिखाकर ऐसे सभी संदिग्ध मामलों में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की निगरानी में जाँच होनी चाहिए। सरकार न्यायिक प्रक्रिया को दरकिनार कर जिस तरह दूसरे रास्ते अपनाती है वो पूरी तरह ग़ैर क़ानूनी हैं।
सपा प्रमुख ने कहा कि जो हुकूमत जिंदगी की हिफ़ाज़त न कर पाये उसे सत्ता में बने रहने का कोई हक़ नहीं। उप्र ‘सरकारी अराजकता’ के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। ये यूपी में ‘क़ानून-व्यवस्था का शून्यकाल है।
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