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विश्व कप : आस्ट्रेलिया को पाकिस्तान से सावधान रहने की जरूरत

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एडिलेड | आस्ट्रेलियाई टीम शुक्रवार को जब एडिलेड ओवल के अपने घरेलू मैदान पर पाकिस्तान के खिलाफ आईसीसी विश्व कप-2015 का तीसरा क्वार्टर फाइनल मैच खेलने उतरेगी तो उसे आत्मविश्वास से अधिक सावधान रहने की जरूरत होगी। पाकिस्तान ने ग्रुप चरण में शुरुआती दो मैच हारने के बाद जिस तेजी से अपने प्रदर्शन में सुधार किया और अगले चारों मैच जीतने में सफल रहा, उसे देखते हुए शुक्रवार के मैच के बारे में कोई भी संभावना व्यक्त करना बेहद मुश्किल है।

चार बार की चैम्पियन आस्ट्रेलिया को संभावित विजेता के तौर पर देखा जा रहा है और घरेलू मैदान पर प्रशंसकों को उनसे काफी उम्मीद भी होगी। आस्ट्रेलिया ग्रुप चरण में चार मैच जीतकर पूल-ए में दूसरे स्थान के साथ क्वार्टर फाइनल में पहुंचा है। इस दौरान उसे न्यूजीलैंड के हाथों बेहद नजदीकी हार झेलनी पड़ी, जबकि बांग्लादेश के खिलाफ बारिश के कारण रद्द रहे मैच में उसे अंक बांटने पड़े थे। दूसरी ओर पाकिस्तान की टीम ने भारत और वेस्टइंडीज के हाथों हारने के बाद जबरदस्त वापसी करते हुए बाकी के अपने चारों मैच जीते। इस दौरान उसने दक्षिण अफ्रीका को बेहद दबाव वाले मैच में मात देने में सफलता हासिल की।

पाकिस्तान के लिए हालांकि आस्ट्रेलिया गेंदबाजी आक्रमण के आगे टिकने की चुनौती रहेगी, क्योंकि अब तक पाकिस्तान की ओर से सिर्फ एक बल्लेबाज शतक बनाने में सफल रहे हैं। पिछले दो मैचों में हालांकि जीत के नायक बनकर उभरे विकेटकीपर/बल्लेबाज सरफराज अहमद ने सलामी बल्लेबाज की एक जगह जरूर स्थिर कर दी है। कप्तान मिस्बाह भी निरंतर प्रदर्शन करने में सफल रहे हैं। पाकिस्तान को इस अहम मैच में अपने दिग्गज एवं सर्वाधिक अनुभवी बल्लेबाज शाहिद अफरीदी से इस मैच में जरूर कुछ ज्यादा अपेक्षाएं होंगी। गौरतलब है कि मिस्बाह और अफरीदी इस विश्व कप के बाद अंतर्राष्ट्रीय एकदिवसीय से संन्यास ले लेंगे। मिस्बाह ने कहा, “जी हां, वे (आस्ट्रेलिया) खिताब के प्रबल दावेदार हैं, लेकिन ऐसा कोई सख्त नियम नहीं है कि प्रबल दावेदार हमेशा जीतते हैं। सबकुछ दिन विशेष पर निर्भर करता है। हमें जीत की पूरी उम्मीद है तथा हम सकारात्मक होकर उतरेंगे।”

दूसरी ओर आस्ट्रेलिया की बल्लेबाजी की बात करें तो वह बेहद गहरी नजर आती है और नौवें, 10वें क्रम के बल्लेबाज में भी ठीक-ठाक बल्लेबाजी करने की क्षमता है। पाकिस्तान की गेंदबाज पिछले कुछ मैच में अपनी लय हासिल कर चुके हैं, लेकिन आस्ट्रेलिया के खिलाफ मैच में उन्हें चोटिल मोहम्मद इरफान की कमी जरूर खलेगी। क्लार्क ने मैच की पूर्व संध्या पर संवददाता सम्मेलन में कहा, “कल के मैच में तेज गेंदबाजी की भूमिका अहम होगी, खासकर यदि कल भी पिच पर आज के जैसी घास रहती है तो। लेकिन दोनों ही टीमों में कई उम्दा तेज गेंदबाज हैं, इसलिए हमें अच्छा खेलना होगा। ”

टीमें (संभावित) : 

आस्ट्रेलिया : डेविड वार्नर, एरॉन फिंच, स्टीवन स्मिथ, माइकल क्लार्क (कप्तान), शेन वाटसन, ग्लेन मैक्सवेल, जेम्स फॉल्कनर, ब्रैड हेडिन (विकेटकीपर), मिशेल स्टार्क, मिशेल जानसन, जोश हैजलवुड/मिशेल मार्श।

पाकिस्तान : सरफराज अहमद (विकेटकीपर), अहमद शहजाद, हरीश सोहैल, मिस्बाह उल हक (कप्तान), उमर अकमल, शोएब मकसूद, शाहिद अफरीदी, वहाब रियाज, राहत अली, सोहैल खान, एहसान आदिल।

 

नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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