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स्मृति पर टिप्पणी को लेकर शरद यादव ने खेद जताया

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नई दिल्ली। जनता दल (यूनाइटेड) के अध्यक्ष शरद यादव ने केंद्रीय मानव संधान विकास मंत्री स्मृति ईरानी के बारे में की गई अपनी टिप्पणी पर विवाद के बाद बुधवार को राज्यसभा में इस पर खेद जताया। राज्यसभा में सदन के नेता अरुण जेटली ने यह मुद्दा उठाया। उन्होंने शरद यादव से अखबारों में छपे अपने बयान पर सफाई देने के लिए कहा। उनकी टिप्पणी को हालांकि सदन की कार्यवाही से हटा दिया गया।

जेटली ने कहा, “एक चर्चा के दौरान, मीडिया में सदन की कार्यवाही के हिस्से के रूप में एक बयान प्रकाशित हुआ है, जिसके लिए शरद यादव को उत्तरदायी ठहराया गया है। बयान में एक महिला सदस्य से कहा गया है कि मैं जानता हूं कि आप किस प्रकार की व्यक्ति हैं। वह महिला केंद्र मानव संसाधन विकास मंत्री भी हैं।” उन्होंने कहा, “यद्यपि इस बयान को राज्यसभा की कार्यवाही में शामिल नहीं किया गया है, लेकिन यह पूरी मीडिया में पहुंच गया है और इससे बहुत गलत संदेश जा रहा है। शरद जी अपने बयान पर सफाई दें, ताकि यह धारणा व्याप्त न रहे।”

जेटली के बयान पर प्रतिक्रिया देते हुए शरद यादव ने अपने बयान पर खेद जताया और कहा कि वह जिस संस्कृति से आते हैं वह मातृवंशीय है। उन्होंने कहा कि मैं अपने बयान पर खेद जताता हूं। मेरी संस्कृति मातृवंशीय पृष्ठभूमि वाली है। मैं गोंड संस्कृति से आता हूं। जनता दल (यूनाइटेड) के नेता ने कहा कि वह महिला सदस्यों का सम्मान करते हैं। उन्होंने कहा, “हमारी वाणिज्य मंत्री निर्मला सीतरमण मुझे लगता है कि वह सबसे अच्छी मंत्री हैं और स्मृति जी…मैं उनका बहुत सम्मान करता हूं। जब उनकी डिग्री पर सवाल उठाए गए थे तो मैं पहला व्यक्ति था जिसने कहा था कि मैं राजनीति विज्ञान का इंजीनियर हूं और मेरे पास कोई डिग्री नहीं है। सबसे पहले उनका बचाव मैंने ही किया था। जो भी प्रकाशित किया गया है वह मेरा उद्देश्य नहीं था, मैं उनका सम्मान करता हूं।”

उल्लेखनीय है कि बीमा विधेयक पर चर्चा करते हुए शरद यादव ने महिलाओं के रंगरूप पर टिप्पणी की थी। इस मुद्दे को बाद में राज्यसभा सदस्य स्मृति ईरानी ने सदन में उठाते हुए कहा था कि सदस्यों के महिलाओं के रंगरूप पर टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। संसद में कई अन्य महिला सांसदों ने भी शरद यादव की टिप्पणी को अनुचित बताया था।

नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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