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सिर्फ 10 दिनों के भीतर किसानों के कर्ज माफ करेगी कांग्रेस, मंदसौर रैली में राहुल गांधी का वादा

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कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश के मंदसौर #Mandsaur के पिपलियामंडी में ‘किसान समृद्धि श्रद्धांजलि सभा’ में कहाकि, “मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनते ही 10 दिनों के भीतर किसानों के कर्ज माफ किए जाएंगे। जिन लोगों ने मंदसौर में किसानों पर गोली चलाई है, उन पर मामले दर्ज कर उनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी।”

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित भाजपा की राज्य सरकारों पर तीखा हमला बोलते हुए कहा कि इन सरकारों के दिलों में किसानों के लिए कोई जगह नहीं है। राहुल ने कहा, “केंद्र और राज्य में बैठी भाजपा की मौजूदा सरकारों के लिए देश के 15 उद्योगपतियों का तो महत्व है, मगर करोड़ों किसानों का उनके लिए कोई महत्व नहीं है। इन उद्योगपतियों का ढाई लाख करोड़ रुपए का कर्ज माफ कर दिया गया, मगर किसानों का एक पैसा नहीं।”

इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश के मंदसौर में किसानों पर पुलिस गोलीबारी की पहली बरसी के मौके पर बुधवार को यहां मृतक किसानों को श्रद्धांजलि दी।

आज छह जून है, ठीक आज ही के दिन वर्ष 2017 में मंदसौर में पुलिस बल ने किसानों पर गोलीबारी कर दी, जिसमें करीब छह किसानों की मौत हो गई। इस मंदसौर रैली में देशभर से किसान और किसानों के बड़े—बड़े पेरौकार यहां पहुंच रहे हैं। मध्य प्रदेश सरकार ने इस गहमागहमी को देखते हुए सुरक्षा के पुख्ता बंदोबस्त किए हैं।

निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी दोपहर चार्टर्ड प्लेन से मंदसौर हवाईपट्टी पर उतरे, जहां उनका प्रदेशाध्यक्ष कमलनाथ, प्रचार अभियान समिति के अध्यक्ष ज्योतिरादित्य सिंधिया ने स्वागत किया। उसके बाद वहां मौजूद कांग्रेसी और किसान नेताओं ने उनका स्वागत किया। वह वहां से हेलीकॉप्टर के जरिए सभा स्थल पिपलियामंडी पहुंचेंगे।

किसान नेता डॉ. सुनीलम ने बताया, “मंदसौर में गोलीकांड की पहली बरसी पर बड़ी संख्या में देशभर से किसान नेता यहां पहुंच रहे हैं।”

पिपालियामंडी में आयोजित इस सभा में कांग्रेस के प्रमुख नेता कमलनाथ, ज्योतिरादित्य सिंधिया, कांतिलाल भूरिया, दिग्विजय सिंह सहित बड़ी संख्या में कार्यकर्ता उपस्थित रहेंगे।

देश के कई राज्यों में ‘गांव बंद’ आंदोलन आज का आज छठा दिन है। कई इलाकों में दूध और सब्जियों की आपूर्ति प्रभावित है। वहीं कई स्थानों पर सब्जियों की बिक्री सुरक्षा बलों की मौजूदगी में हो रही है। मंदसौर घटना के एक साल पूरे होने पर किसानों ने 10 दिवसीय गांव बंद आंदोलन का आयोजन किया है। इस आंदोलन में किसान गांव से सामान न तो शहर ले जा रहे हैं और न ही शहर से सामान खरीदकर गांव ला रहे हैं। (इनपुट आईएएनएस)

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पहले फेज के वोटर ने बिगाड़ा मोदी का मूड

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। लोकसभा चुनाव 2024 का पहला चरण बीत गया। सात चरण में हो रहे चुनावों का ये सबसे बड़ा और पोलिटिकल पार्टीज के लिए लिटमस टेस्ट वाला चरण था। उत्तर प्रदेश की 8 सीटें वो थी जिन पर 2019 में भाजपा का पसीना छूट गया था।

जिस दिन अयोध्या में मर्यादा पुरषोत्तम राम के भव्य राम मंदिर में प्रभु राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई और उसे देख जिस तरह का जन-ज्वार उठा उससे गदगद होकर प्रधानमंत्री पीएम मोदी ने भाजपा और सहयोगी दलों के लिए 18वीं लोकसभा के लिए टारगेट सेट कर दिया 400 सीटों का और नारा दे दिया ‘अबकी बार 400 पार’। दरअसल ये 400 का टारगेट मोदी ने यूं ही नहीं सेट कर दिया। इसके पीछे कहीं न कहीं बीजेपी का कान्फिडन्स और विपक्ष को मानसिक दवाब में घेरने की रणनीति नजर आती है।

शुरुआत में जिस तरह से इंडि गठबंधन बिखरा बिखरा दिखाई दे रहा था उसे देखकर बीजेपी का ये टारगेट कठिन भी नजर नहीं आ रहा था लेकिन जैसे जैसे कयामत की रात यानि मतदान की तारीख पास आती गई विपक्षियों को भी अपने अस्तित्व पर संकट नजर आने लगा और फिर मरता क्या न करता के मुहावरे पर अमल करते हुए सभी एक हो ही गए। दूसरी तरफ बीजेपी को 2014 और 2019 की तरह मोदी मैजिक और राम के नाम पर भरोसा था और उधर उसके वोटर के मन में अबकी बार 400 पार इतना गहरा बैठ गया था कि लगता है उसका वोटर भी घर में बैठ गया और जो मतदान प्रतिशत 2019 में करीब 69 प्रतिशत था वो करीब 60 प्रतिशत पर आकर टिक गया। यानि 9 फीसदी वोटर गर्मी में ac की हवा खा रहा था।

फिर क्या था इन्हीं 9 प्रतिशत मतदाताओं ने सत्तारूढ़ दल यानि मोदी के माथे पर चिंता की सिलवटें ला दी, लेकिन ऐसा नहीं है ये सिलवटें सिर्फ मोदी के माथे पर ही आईं हों ये लकीरें विपक्षी गठबंधन के नेताओं के माथे पर भी थीं और हो भी क्यूँ नहीं क्योंकि evm खुलने के पहले कोई नहीं जानता कि जो वोटर घर में बैठा था वो आखिर कौन था। क्या वो सरकार से नाराज वो व्यक्ति था जिसे विपक्ष मतदान केंद्र तक लाने में सफल नहीं हो पाया या फिर ये वो आदमी था जिसे ये लग रहा था मैं वोट दूँ या न दूँ क्या फरक पड़ता है आएगा तो मोदी ही।

दरअसल उदासीनता की वजह को भी जानना जरूरी है-

2014 में बदलाव की लहर थी जनता भ्रष्टाचार की कहानियाँ सुनकर ऊब चुकी थी
2014 में मोदी पूरे देश के सामने गुजरात मॉडल लेकर आ रहे थे जिसे सोशल मीडिया के धुरंधरों ने हर फोन तक बखूबी पहुंचाया
2014 में मोदी ने जिस तरह देश को अपनी सभाओं से मथ के रख दिया उसका भी जनता पर काफी असर पड़ा
2019 में पुलवामा कांड ने राष्ट्रवाद को जगाया और 2014 में 282 सीट वाली बीजेपी 303 के आँकड़े पर पहुँच गई
लेकिन 2024 में न तो 2014 जैसे एंटी इन्कमबंसी जैसी लहर है और न 2019 जैसा राष्ट्रवाद जैसा

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