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आध्यात्म

जगद्गुरु कृपालु परिषत् द्वारा निर्धन लोगों में दैनिक वस्‍तुएं वितरित

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वृन्‍दावन(उप्र)। आज 13 नवम्‍बर 2014 को जगद्गुरु कृपालु परिषत्- श्‍यामा श्‍याम धाम द्वारा वृन्‍दावन के 1100 निर्धन एवं अभावग्रस्‍त लोगों को दैनिक आवश्‍यकता की निम्‍नलिखित वस्‍तुयें बैग, कम्‍बल, चादर, मच्‍छरदानी, जैकेट, तौलिया, मंकी कैप दान स्‍वरूप वितरित की गईं। इस अवसर पर दान-दक्षिणा भी दी गई। सम्‍पूर्ण कार्यक्रम राधे गोविन्‍द, गोविन्‍द राधे के मधुर संकीर्तन के मध्‍य सम्‍पन्‍न हुआ।

यह वितरण कार्यक्रम जगद्गुरु कृपालु परिषत् की अध्‍यक्षाओं सुश्री डॉ. विशाखा त्रिपाठी जी, सुश्री डॉ. श्‍यामा त्रिपाठी जी एवं सुश्री कृष्‍णा त्रिपाठी जी के नेतृत्‍व में सम्‍पन्‍न हुआ। इससे पहले 12 नवम्बर को जगद्गुरु कृपालु परिषत्-श्यामा श्याम धाम द्वारा विशाल साधु भोज का आयोजन किया गया, जिसमें 7000 साधुओं को आमंत्रित किया गया। भोज में पधारे साधुओं का आदर-सत्कार सहित भव्य स्वागत किया गया। निर्मल एवं सुगंधित जल से उनके चरणों का प्रक्षालन करने के उपरान्त उन्हें विशाल मण्डप में आयोजित भोज के लिये ससम्मान ले जाया गया।

जो साधु-संत चलने में असमर्थ थे, उन्हें व्हील चेयर पर बिठाकर कार्यक्रम स्थल तक ले जाया गया। साधुओं को सम्मानपूर्वक भोजन करवाया गया एवं दक्षिणा स्वरूप नगद धनराशि प्रदान की गई। साधुओं को दैनिक आवश्यकता की वस्तुयें भी प्रदान की गई। दिनांक 14 नवम्बर 2014 को प्रेम मंदिर प्रांगण में विधवा भोज का आयोजन किया गया है, जिसमें चार हजार विधवायें आमंत्रित हैं।

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आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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