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नेशनल

‘डेक्कन क्वीन’ के 88 साल पूरे पर इठलाना अभी भी कम नहीं हुआ

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देश की पहली डीलक्‍स ट्रेन ‘डेक्कन क्वीन’ आज 88 साल की हो गई है। #DeccanQueens89thBirthday जन्मदिन मुबारक ‘डेक्कन क्वीन’। 01 जून, 1930 को महाराष्ट्र के दो प्रमुख शहरों के बीच भारतीय रेल की अग्रणी ‘डेक्कन क्वीन’ रेल सेवा शुरू हुई थी, जो ग्रेट इंडियन पेनिनसूला (जीआईपी) रेलवे की प्रमुख ऐतिहासिक उपलब्धि थी। इस क्षेत्र के दो महत्वपूर्ण शहरों में सेवा प्रदान करने के लिए यह पहली डीलक्स रेलगाड़ी शुरू की गई थी और ‘दक्खन की रानी’ के तौर पर प्रसिद्ध पुणे शहर के नाम पर इसका नाम रखा गया था।

‘डेक्कन क्वीन’ अंग्रेजों के लिए शुरू की गई ट्रेन थी। 88 साल बीतने के बाद आज भी यह मुंबईकरों की पसंदीदा है। इसे सबसे पहले अंग्रेजों के लिए पुणे से मुंबई के लिए चलाया गया था। लेकिन, 1943 में भारतीयों को भी इस ट्रेन से सफर करने की अनुमति मिली। हफ्ते में एक दिन चलने वाली ये ट्रेन लोगों की बढ़ती डिमांड की वजह से अब प्रतिदिन चलती है। आधुनिक सुविधाओं से लैस डेक्‍कन क्‍वीन ट्रेन की कई विशेषताएं हैं।

शुरू में रेलगाड़ी में 7 डिब्बों के दो रैक थे। प्रत्येक को लाल रंग के सजावटी सांचों में सिल्‍वर रंग और अन्य पर नीले रंग के सांचों में सुनहरे रंग की रेखा उकेरी गई थी। डिब्बों के मूल रैक की नीचे की फ्रेम का निर्माण इंग्लैंड में, जबकि डिब्बों का ढांचा जीआईपी रेलवे के माटुंगा कारखाने में निर्मित किया गया था।

शुरूआत में ‘डेक्कन क्वीन’ में केवल प्रथम और द्वितीय श्रेणी थी। प्रथम श्रेणी को 01 जनवरी, 1949 को बंद कर दिया गया और द्वितीय श्रेणी की डिजाइन दोबारा तैयार कर इसे प्रथम श्रेणी में परिवर्तित किया गया। इसके बाद जून 1955 में इस रेल गाड़ी में पहली बार तृतीय श्रेणी उपलब्ध करायी गई। इसे अप्रैल, 1974 से द्वितीय श्रेणी के तौर पर दोबारा डिजाइन किया गया था।

वर्ष 1966 में मूल रैकों के डिब्बों के स्थान पर इंटीग्रल कोच फैक्ट्री, पैरांबुर द्वारा निर्मित टेलीस्कोप रोधी स्टील के ढांचे वाले डिब्बे लगाए गए। इन डिब्बों में अधिक आराम के लिए इसकी डिजाइन और आंतरिक साज-सज्जा में सुधार किए गए। रैक में डिब्बों की संख्या भी 7 से बढ़ाकर 12 कर दी गई। वर्तमान में इसमें अब 17 डिब्बे हैं।

उत्तर प्रदेश

जो हुकूमत जिंदगी की हिफ़ाज़त न कर पाये उसे सत्ता में बने रहने का कोई हक़ नहीं, मुख्तार की मौत पर बोले अखिलेश

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लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने मुख्तार अंसारी की मौत पर सवाल उठाए हैं। साथ ही उन्होंने इस मामले पर योगी सरकार को भी जमकर घेरा है। उन्होंने मामले की सर्वोच्च न्यायालय के जज की निगरानी में जांच किए जाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि यूपी इस समय सरकारी अराजकता के सबसे बुरे दौर में है। यह यूपी की कानून-व्यवस्था का शून्यकाल है।

सोशल मीडिया साइट एक्स पर अखिलेश ने लिखा कि  हर हाल में और हर स्थान पर किसी के जीवन की रक्षा करना सरकार का सबसे पहला दायित्व और कर्तव्य होता है। सरकारों पर निम्नलिखित हालातों में से किसी भी हालात में, किसी बंधक या क़ैदी की मृत्यु होना, न्यायिक प्रक्रिया से लोगों का विश्वास उठा देगा।

अपनी पोस्ट में अखिलेश ने कई वजहें भी गिनाई।उन्होंने लिखा- थाने में बंद रहने के दौरान ,जेल के अंदर आपसी झगड़े में ,⁠जेल के अंदर बीमार होने पर ,न्यायालय ले जाते समय ,⁠अस्पताल ले जाते समय ,⁠अस्पताल में इलाज के दौरान ,⁠झूठी मुठभेड़ दिखाकर ,⁠झूठी आत्महत्या दिखाकर ,⁠किसी दुर्घटना में हताहत दिखाकर ऐसे सभी संदिग्ध मामलों में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की निगरानी में जाँच होनी चाहिए। सरकार न्यायिक प्रक्रिया को दरकिनार कर जिस तरह दूसरे रास्ते अपनाती है वो पूरी तरह ग़ैर क़ानूनी हैं।

सपा प्रमुख ने कहा कि जो हुकूमत जिंदगी की हिफ़ाज़त न कर पाये उसे सत्ता में बने रहने का कोई हक़ नहीं।  उप्र ‘सरकारी अराजकता’ के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। ये यूपी में ‘क़ानून-व्यवस्था का शून्यकाल है।

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