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प्रधानमंत्री के फैसले से चीनी उद्योग के चेहरे पर आई मुस्कान
केंद्र सरकार ने गन्ना पेराई सत्र-2017-18 (अक्टूबर-सितंबर) के लिए गन्ना उत्पादकों को 5.5 रुपए प्रति कुंतल की दर से भुगतान करने का फैसला किया है। इस फैसले से नकदी के संकट से गुजर रही चीनी मिलों को गन्ना बकाया चुकाने में मदद मिलेगी। इस वक्त चीनी मिलों पर करीब 20 हजार करोड़ रुपए का भुगतान बकाया है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की केंद्रीय मंत्रिमंडलीय समिति (सीसीईए) की बैठक में बुधवार को गन्ना पेराई सत्र-2017-18 (अक्टूबर-सितंबर) के लिए गन्ना उत्पादकों को 5.5 रुपए प्रति कुंतल की दर से भुगतान करने का फैसला किया गया। नकदी के संकट से जूझ रही मिलों को राहत देने की दिशा में उठाए गए सरकार के इस कदम का चीनी उद्योग संगठनों ने स्वागत किया है। यह उत्पादन अनुदान पूर्व की भांति गन्ने के लाभकारी मूल्य (एफआरपी) के हिस्से के रूप में प्रदान किया जाएगा, जिसका मकसद चीनी मिलों को किसानों को गन्ने बकाये के भुगतान में वित्तीय सहायता प्रदान करना है।
केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने मंत्रिमंडल के फैसले की जानकारी मीडिया को देते हुए कहा, “इस साल गन्ने की बंपर पैदावार है। गन्ने की लागत कम करते हुए सरकार ने 5.5 रुपए प्रति कुंतल की दर से पेराई किए जाने वाले गन्ने पर मिलों को आर्थिक सहायता प्रदान करने का फैसला किया है।”
सीसीईए के फैसले के मुताबिक, वित्तीय सहायता मिलों की तरह सरकार द्वारा सीधे गन्ना उत्पादकों को भुगतान किया जाएगा और इसका समायोजन गन्ने के एफआरपी में किया जाएगा। फैसले के अनुसार वित्तीय सहायता उन्हीं मिलों को प्रदान की जाएगी, जो सरकार द्वारा निर्धारित योग्यता शर्ते पूरी करेंगी।
पिछले सप्ताह खाद्यमंत्री राम विलास पासवान, परिवहन मंत्री नितिन गडकरी, पेट्रोलियम मंत्री धर्मेद्र प्रधान समेत मंत्री समूह की एक बैठक में चीनी मिलों को सहायता प्रदान करने और किसानों के बकाये का भुगतान करने के उपायों पर विचार-विमर्श के बाद गन्ने पर उत्पादन अनुदान प्रदान करने की सिफारिश की गई थी।
सरकार की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि देश में इस साल चीनी का उत्पादन खपत से ज्यादा होने के कारण घरेलू बाजार में चीनी की कीमतों में भारी गिरावट आई है। चीनी के दाम में गिरावट के कारण चीनी मिलें नकदी संकट से जूझ रही हैं और किसानों का बकाया 19,000 करोड़ रुपए से ज्यादा हो गया है। लिहाजा, चीनी कीमतों में स्थिरता लाने और नकदी की स्थिति में सुधार लाने के लिए सरकार ने पिछले तीन महीनों में कई कदम उठाए हैं।
सरकार ने किसानों के हितों को ध्यान में रखते हुए चीनी पर आयात शुल्क 50 फीसदी से बढ़ाकर 100 फीसदी कर दिया। साथ ही, फरवरी और मार्च 2018 में चीनी उत्पादकों पर प्रतिगामी स्टॉक सीमा लगा दिया और चीनी निर्यात पर शुल्क घटाकर शून्य कर दिया।
सरकार का सबसे बड़ा फैसला इस साल मिलों के लिए 20 लाख टन चीनी निर्यात का न्यूनतम सांकेतिक अनिवार्य कोटा निर्धारित करना रहा है। इससे पहले 2015 में भी सरकार ने मिलों के लिए इसी तरह का 40 लाख टन चीनी निर्यात का अनिवार्य कोटा तय किया था।
इस्मा के महानिदेशक अविनाश वर्मा ने कहा, “हालांकि चीनी उद्योग का संकट ज्यादा गंभीर है, क्योंकि घरेलू बाजार में चीनी की कीमतों में इतनी गिरावट आ चुकी है कि मिलों को उत्पादन लागत भी नहीं मिल पा रही है। मगर सरकार का यह कदम स्वागत योग्य है और इससे मिलों और किसानों को राहत मिलेगी।”
उन्होंने इसे चीनी उद्योग को संकट से निकालने की दिशा में सकार की ओर उठाया गया पहला कदम बताया। उन्होंने कहा कि उद्योग संगठन के मुताबिक, मौजूदा पेराई सीजन में एफआरपी में 11 फीसदी की बढ़ोतरी की गई है।
केंद्र सरकार ने पिछले ही साल पेराई सत्र 2017-18 के लिए गन्ने की एफआरपी 230 रुपए से बढ़ाकर 255 रुपए प्रति कुंतल तय कर दिया। एफआरपी पर कुछ राज्यों सरकार ने राज्य समर्थित मूल्य (एसएपी) तय किया है।
चीनी उद्योगों ने सरकार की ओर से गन्ना उत्पादकों को 5.5 रुपए प्रति कुंतल की दर से अनुदान देने के फैसले की सराहना की। यह अनुदान किसानों को पूर्व की भांति गन्ने के लाभकारी मूल्य (एफआरपी) के हिस्से के रूप में प्रदान किया जाएगा। एफआरपी केंद्र की ओर से तय गन्ने का मूल्य है जिस पर चीनी मिलें किसानों से गन्ने की खरीद करती हैं।
निजी चीनी उद्योगों का संगठन इंडियन शुगर मिल्स एसोसिएशन (इस्मा) की ओर से जारी एक बयान में कहा गया है कि सरकार को गन्ने पर 5.5 रुपए प्रति कुंटल की दर से अनुदान देने में चालू पेराई सत्र-2017-18 (अक्टूबर-सितंबर) में कुल 1,550-1,600 करोड़ रुपए का भार वहन करना होगा।
सहकारी मिलों का संगठन नेशनल फेडरेशन ऑफ को-ऑपरेटिव शुगर फैक्टरीज लिमिटेड के प्रबंध निदेशक प्रकाश नाइकनवरे ने कहा कि इससे किसानों को भारी राहत मिलेगी, क्योंकि उन्हें गन्ने की कीमतों का बकाया मिल पाएगा। साथ ही, मिलों को भी राहत मिलेगी, क्योंकि यह एफआरपी का हिस्सा है। उन्होंने कहा कि मिलों को आठ रुपए प्रति किलोग्राम की राहत मिल पाएगी और चीनी निर्यात के भी अवसर खुलेंगे।
उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय बाजार में चीनी की कीमतें भारत की तुलना में करीबन 1,000 रुपए प्रति कुंतल कम होने के कारण भारत चीनी का निर्यात नहीं कर पा रहा है।
इनपुट आईएएनएस
नेशनल
दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!
सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ
लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।
26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।
इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।
इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।
इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान
असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।
दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।
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