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आध्यात्म

अगर बेरोजगार हैं तो कुंडली में होगा यह दोष, करें यह सरल उपाय

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अगर आपके रोजगार, कामकाज या नौकरी में दिक्कत आ रही है या फिर रोजगार के लिए किए गए प्रयास सफल नहीं हो रहे हैं तो ज्योतिष के अनुसार इसकी एक वजह यह हो सकती है कि आपकी कुंडली में सूर्य कमजोर हो।

सूर्य पिता, आत्मा समाज में मान, सम्मान,यश, कीर्ति, प्रसिद्धि, प्रतिष्ठा का कारक होता है। इसकी राशि है सिंह।

कुंडली में सूर्य के कमजोर होने पर पेट, आंख, हृदय वगैरह की बीमारी हो सकती है साथ ही कामकाज में बाधा भी आती रहती है। इसके दूसरे लक्षण है शरीर में बार—बार बलगम की समस्या होना, सामाजिक प्रतिष्ठा में हानि, मन में खिन्नता और असंतोष होना। इसके अलावा पिता से विवाद या वैचारिक मतभेद भी कमजोर सूर्य के प्रतीक हैं।

कुंडली में सूर्य का स्थान पिता का होता है। सूर्य पिता का प्रतीक है। सूर्य को प्रसन्न करने के लिए नियमित रूप से सूर्य मंत्र का पाठ कर सकते हैं और प्रातःकाल सूर्य को जल भी अर्पित करें  :

ऊं रं रवये नम:

ऊं घृणी सूर्याय नम:

इसके अलावा आप आदित्यहृदय स्त्रोत का भी पाठ कर सकते हैं। यह लंबी समय से चली आ रही बीमारी का भी नाश करता है, विशेषकर त्वचा संबंधी।

सूर्य को प्रसन्न करने का व्यवहारिक और सटीक उपाय

सरल उपाय है कि आप अपने पिता या पिता तुल्य लोगों का दिल से सम्मान करें

सूर्य को प्रसन्न करने के लिए ज्योतिषी प्राय: माणिक्य धारण करने का सुझाव देते हैं। यह एक मंहगा रत्न है इसे धारण कर पाना सबके लिए मुमकिन नहीं। इसलिए हम आपको ऐसा उपाय बता रहे हैं जिससे आप सूर्य के अशुभ प्रभाव से बच जाएंगे और आपका सूर्य भी उच्च हो जाएगा।

इसका सरल उपाय है कि आप अपने पिता या पिता तुल्य लोगों का दिल से सम्मान करें। उनकी सेवा करें, बेवजह उन्हें नाराज ना करें। यह उपाय इतना महत्वपूर्ण है कि इसके लिए आपको माणिक्य भी पहनने की आवश्यकता नहीं। इसके अलावा जो लोग माणिक्य पहनकर अपने पिता या पिता तुल्य लोगों का अनादर करते हैं उन्हें माणिक्य पहनने का भी लाभ नहीं मिलता।

असल में ग्रह नक्षत्रों से हमारी दुश्मनी नहीं है, वे हमारे स्वभाव में सुधार करने के लिए ही विभिन्न रूपों में हमारे जीवन को प्रभावित करते हैं। इसलिए हाथ में पत्थर धारण करने की जगह खुद में बदलाव लाएं, जो ग्रह जिसका प्रतीक है उसकी सेवा करें तो आपको अवश्य लाभ होगा।

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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