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मोदी राज में पंचायतों को मिलने वाली राशि चार गुना हुई : तोमर
केंद्रीय पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ग्राम विकास के लिए चिंतित और लालायित है, इसीलिए मोदी राज में पंचायतों के विकास के लिए चार गुना राशि मंजूर हुई है। इतना ही नहीं वर्ष 2022 तक मोदी के नेतृत्व में नए भारत का निर्माण होगा।
मध्य प्रदेश के मंडला जिले के रामनगर में राष्ट्रीय पंचायती राज दिवस ( #PanchayatiRajDay )का उद्घाटन और तीन दिवसीय आदि उत्सव के उद्घाटन समारोह में केंद्रीय पंचायत एवं ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि 13वें वित्त आयोग ने ढाई लाख पंचायतों को 60,000 करोड़ रुपए की राशि मंजूर हुई थी, जबकि मोदी के प्रधानमंत्री बनने के बाद 14वें वित्त आयोग में यह राशि बढ़कर 200,292 करोड़ रुपए की राशि मंजूर की गई।
PM Shri @narendramodi launches Rashtriya Gram Swaraj Abhiyan on National Panchayati Raj Day in Mandla, MP. pic.twitter.com/LOtN4zkZu5
— BJP (@BJP4India) April 24, 2018
जानिए पंचायत राज्य की व्यवस्था के बारे में…
एकाउंटेबिलिटी इनीशिएटिव की एक रिपोर्ट ‘भारत में ग्रामीण स्थानीय सरकार को वित्तीय हस्तांतरण का एक समसामयिक विश्लेषण’ के अनुसार, वर्ष 1992 में संविधान के 73वें और 74वें संशोधन के तहत सरकार की संरचना तीन स्तरों वाली हो गई- केंद्र सरकार, राज्य सरकार और स्थानीय सरकार।
स्थानीय सरकार भी दो हिस्सों में विभक्त है- शहरी और ग्रामीण। ग्रामीण स्थानीय सरकार भी तीन स्तरों में विभक्त है- ग्राम पंचायत, प्रखंड पंचायत और जिला पंचायत । 14वें वित्त आयोग में राज्य की शक्ति बढ़ाई गई और इसमें ग्रामीण और शहरी स्थानीय सरकार के लिए 2,87,436 करोड़ रुपए राज्यों को सुपुर्द करने का प्रावधान किया गया है। इसमें यह भी कहा गया है कि ग्रामीण स्थानीय सरकार को शहरी स्थानीय सरकार से अधिक राशि दी जाए।
ग्राम पंचायतों को अपने स्रोतों से 2011-12 में 3,118 करोड़ रुपए की आय हुई थी। ग्राम पंचायत अपनी कुल आय का 11 प्रतिशत हिस्सा अपने स्रोतों से खुद कमाते हैं। शेष 89 प्रतिशत उन्हें केंद्रीय कोषों, केंद्रीय वित्त आयोग कोषों, डिवोल्व्ड फंड और राज्य सरकार के अनुदानों से मिलता है। ग्राम पंचायतों की आय की आय जहां लगातार बढ़ी है, वहीं केंद्र से मिलने वाला हिस्सा घटा है। ग्राम पंचायतों को 2009-10 में केंद्र से करीब 70 प्रतिशत हिस्सा मिलता है, जो घटकर 61 प्रतिशत रह गया है।
इससे पहले प्रधानमंत्री मोदी ने रामनगर पहुंचकर रानी दुर्गावती और महात्मा गांधी के चित्र पर माल्यार्पण कर पंचायती दिवस कार्यक्रम की शुरुआत की।
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दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!
सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ
लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।
26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।
इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।
इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।
इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान
असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।
दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।
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