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इरडा ने सुप्रीम कोर्ट के अधिकार को वीटो किया
चेन्नई | भारतीय बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण (इरडा) ने प्रतिभूति अपीली न्यायाधिकरण (सैट) द्वारा बीमा विपणन कंपनी (आईएमएफ) अधिनियम के तहतके लिए गए निर्णय के खिलाफ सुनवाई करने के सुप्रीम कोर्ट के अधिकार को वीटो कर दिया है। कानूनी विशेषज्ञों के मुताबिक, हाल ही में इरडा द्वारा अधिसूचित आईएमएफ के नियम, बीमा कानून के प्रावधानों के साथ मेल नहीं खाते।
इरडा बिक्रेताओं के लिए भुगतान स्तर निर्धारित करने हेतु अज्ञात क्षेत्र में भी प्रवेश कर रहा है, ताकि अन्य विनियमित संस्थाओं के कर्मचारियों की मांगों में वृद्धि हो सके। आईएमएफ के नियमानुसार, यदि किसी व्यक्ति का पंजीकरण या लाइसेंस के लिए दिया गया आवेदन बीमा नियामक द्वारा खारिज कर दिया जाता है तो वह सबसे पहले इरडा के अध्यक्ष को अपील कर सकता है और यदि फैसला उस व्यक्ति के पक्ष में नहीं हो तो वह सैट का दरवाजा खटखटा सकता है। यदि सैट का फैसला भी उसके पक्ष में नहीं होता है तो आवेदन खारिज होने के एक साल बाद आवेदक दोबारा आवेदन कर सकता है। इरडा इस आवेदन पर औचित्य के आधार पर विचार करेगा। सुप्रीम कोर्ट के वकील और बीमा/कंपनी/प्रतिस्पर्धा कानूनों के विशेषज्ञ डी. वरदराजन ने आईएएनएस को बताया, “यह बीमा अध्यादेश 2014 के जरिए बीमा कानून 1938 में संशोधित की गई नई धारा 110 के प्रावधानों के अनुरूप नहीं है।”
उन्होंने कहा कि नए प्रावधानों के तहत यह स्पष्ट रूप से बताया गया है कि सैट के आदेश से असंतुष्ट कोई भी व्यक्ति कानून के दायरे से बाहर के प्रश्नों पर सेबी अधिनियम की 15जेड धारा के तहत 60 दिनों के भीतर सुप्रीम कोर्ट में अपील कर सकता है। नियमों के अनुसार, आईएमएफ किसी भी समय अधिकतम दो जीवन बीमा कंपनियों, दो सामान्य बीमा कंपनियों और दो स्वास्थ्य बीमा कंपनियों का प्रतिनिधित्व कर सकता है। आईएमएफ बीमा करने वालों की गैर आधिकारिक गतिविधियों को भी संचालित कर सकता है, सर्वेक्षण कर सकता है और नुकसान का आंकलन कर सकता है और इरडा द्वारा स्वीकृत बीमा संबंधित अन्य गतिविधियों को देख सकता है।
आईएमएफ म्युचुअल फंड, पेंशन उत्पादों, बैंकिंग सेवाओं, बैंकों के वित्तीय उत्पादों, डाक विभाग द्वारा मुहैया कराए गए गैर बीमा उत्पादों और इरडा द्वारा स्वीकृत अन्य वित्तीय उत्पादों को भी बेच सकता है। आईएमएफ की न्यूनतम संपत्ति 10 लाख रुपये की होनी चाहिए और विदेशी पूंजी की सीमा 49 प्रतिशत तक होनी चाहिए। जीवन बीमा कंपनी के एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न जाहिर करने की शर्त पर बताया, “नियमानुसार, आईएमएफ देश के सिर्फ एक जिले में ही अपना संचालन कर सकता है और बीमा बिक्रेता (आईएसपी) भी उसी जिले से नियुक्त किए जाएंगे।” नियमानुसार, ‘बीमा विपणन कंपनी’ शब्द आईएमएफ के नाम का हिस्सा होना चाहिए।
नेशनल
जो राम को लाए है, वो ‘राम’ के भरोसे है
कमल भार्गव
एक बरसों पुराना मशहूर भजन है ‘तेरा राम जी करेंगे बेड़ा पार, उदासी मन काहे को करें ..’। इन दिनों चल रहे चुनावी माहौल में इस भजन को कई मायनों में सटीक माना जा सकता है। पहला भारतीय जनता पार्टी द्वारा बीती जनवरी में अयोध्या में भगवान राम की मूर्ति स्थापित कर एक मास्टर स्ट्रोक खेलना तो दूसरी तरफ पश्चिमी उत्तर प्रदेश खास तौर पर मेरठ में भगवान राम का किरदार रुपहले पर्दे पर निभाने वाले अरुण गोविल को मरेठ-हापुड़ लोक सभा सीट पर अपना उम्मीदवार बना कर माहौल को राममय करने की कवायद की है।
देखा गया है कि बीजेपी खास तौर पर मोदी-शाह के फैसले ज्यादातर चौंकाने वाले होते रहे है। एक बार फिर पार्टी के शीर्ष नेतृत्व ने मेरठ-हापुड़ लोक सभा सीट पर हैट्रीक लगाने वाले मौजूदा सांसद राजेन्द्र अग्रवाल का टिकट काट कर रुपहले पर्दे के ‘राम’ अक्का अरुण चन्द्रप्रकाश गोविल को अपना प्रत्याशी घोषित कर सभी को आश्चर्यचकित कर दिया था। काफी हद तक को महानगर कि जनता को यह समझ नहीं आ रहा कि पार्टी का ये फैसला सही है या गलत है। हर किसी के अपने-अपने तर्क है। शहर की जनता का मानना है कि जो मिजाज और लोगों को एक स्थानीय नेता समझ सकता है वो एक बाहरी समझ से परे हो सकता है। देखा जाए तो ये तर्क इस लिए भी लोगों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है, क्योंकि सन 1952 से लेकर अब तक के लगभग सोलह लोक सभा चुनावों में से दस बार बाहरी प्रत्याशी ने इस सीट का नेतृत्व किया है। इसमें वर्ष 1951, 1957, 1962 व 1971 के चुनाव में शाह नवाज खान सांसद के तौर पर शामिल है। इसी प्रकार छठी, सातवीं व आठवीं लोक सभा में एक बार फिर से कांग्रेस कि कद्दावर नेत्री महोसिना किदवई को प्रत्याशी बना गया था और उन्होंने बाहरी प्रत्याशी के तौर पर तीनों बार चुनाव में जीते हासिल की थी। वहीं सन 1999 में भी कांग्रेस ने अवतार सिंह भड़ाना को मैदान में उतारा था ओर वो इस सीट से सांसद चुने गए थे।
ऐसे में एक बार फिर मौजूदा रुलिंग पार्टी ने टीवी धारावाहिक रामायण के राम का किरदार निभाने वाले अरुण गोविल को मैदान में उतारा है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पहले चरण का चुनाव हो चुका है। अब सभी की निगाह दूसरे चरण पर है। भारतीय जनता पार्टी हर चुनाव में पश्चिमी उत्तर प्रदेश से ही अपनी चुनावी अगाज पिछले कई चुनावों में करती आ रही है। इस बार पीए मोदी ने नारा दिया है ‘अब की बार चार सौ पार’। कहा जा सकता है कि भाजपा इस क्षेत्र में कोई चांस लेना नहीं चाहती है और खास तौर पर पहले और दूसरे चरण में अपनी पार्टी के लिए बढ़त बनने की पूरी कोशिश कर रही है। काफी हद तक माना जा रहा है कि मजबूत दावेदारी और प्रत्याशियों के मान मनोवल के लिए मेरठ अकेले में प्रधानमंत्री मोदी एक बार तो मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ मात्र लगभग दो से तीन सप्ताह के अंतराल में तीन जन सभा तो एक सम्मेलन को समबोधित कर चुके है।
एक नजर राजनीतिक समीकरण पर डाले तो मेरठ समेत वेस्ट यूपी में किसान और गन्ना एक बड़ा मुद्दा रहा है, ऐसे में इस क्षेत्र को जाट लैंड के तौर पर भी माना जाता है। बाकी हर चुनाव में मतदान से पहले धर्म और जाति के नाम पर ध्रुवीकरण होना एक आम धारना है। 2024 के रण में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में एक राहत तो सत्ताधारी पार्टी के लिए कम से कम है और वो है आखिर में राष्ट्रीय लोक दल से गठबंधन होना। माना जा सकता है कि चौधरी चरण सिंह को भारत रत्न से नवाजा जाना और जंयत चौधरी का साथ कही ना कही किसान और जाटों को एक जुट करने में मददगार साबित होगी। पर एकाएक ठाकुरों का एकाएक बीजेपी से नाराजगी जताना और दूरी बनाना भी एक चिंता का विषय बना हुआ है।
लेकिन अब सवाल है दलित – मुस्लिम – हिन्दू वोट बैंक का। इस बार के चुनाव में बीजेपी और आरएलडी एक साथ है तो दूसरी तरफ समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का गठबंधन चुनावी मैदान में है, तो वही मायावती की बहुजन समाजवादी पार्टी अकेले ही मोर्चा सँभाले हुए है। इसे रणनीति कहा जाए जा फिर सोची समझी चाल कि मेरठ – हापुड सीट पर किसी भी पार्टी ने मुस्लिम प्रत्याशी को नहीं उतारा है। देखा जाए तो शायद ये ऐसा पहले मौका होगा। अब तक ये देखा गया है कि आखिर में चुनाव मेरठ और आसपास के शहरों में हिन्दू – मुसलिम के नाम ही होता रहा है। ऐसे में वोट धर्म – जात बिरादरी के नाम पर बिखरता नजर आ रहा है। माना जा सकता है कि मुस्लिम काफी हद तक समाजवादी पार्टी के तरफ जा सकता है तो दलित बहुजन समाजवादी पार्टी के अलावा अन्य दलों में बट सकता है। भगवा पार्टी को उम्मीद है कि उसके पक्ष में हर वर्ग जाति और समाज का वोटर है। ऐसे में ‘राम’ की एंट्री को बीजेपी अपना तुरप का इक्का मान रही है। पार्टी से जुड़े लोगों की माने तो ‘राम जी’ के आने से ना सिर्फ मेरठ में फर्क पड़ेगा बल्कि सम्पूर्ण पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राम लहर देखी जा सकेगी।
‘राम’ के सक्रिय राजनीति में आने से अब पीएम मोदी और सीएम से लेकर पार्टी का हर छोटा और बड़ा कार्यकर्ता इसे अपनी प्रतिष्ठा मान रहा है। देखा जाए तो हर स्तर पर राम यानी अरुण गोविल के लिए जन सभा और समर्पक, रोड शो की जा रही है। लेकिन ऐसे में स्थानीय की जगह बाहरी प्रत्याशी को मैदान में उतरना और ‘राम’ बाण का चलाना कितना सफल रहेगा ये तो वक्त ही बताएगा।
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