नेशनल
विपक्ष ने शुरू की CJI को पद से हटाने की कवायद, महाभियोग का प्रस्ताव तैयार
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों द्वारा चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा की कार्यशैली पर सवाल उठाने के कुछ महीने बाद अब राजनीतिक दलों ने भी चीफ जस्टिस के खिलाफ मोर्चा खोलने का मन बना लिया है। सूत्रों के मुताबिक कांग्रेस ने चीफ जस्टिस मिश्रा के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव का एक ड्राफ्ट तैयार कर कई दलों के बीच बांटा है।
ड्राफ्ट पर राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी, तृणमूल कांग्रेस और वाम दलों समेत कई पार्टियों के नेताओं ने दस्तखत किए हैं। माना जा रहा है कि बजट सत्र के अंतिम दिनों में या फिर बाद में मुख्य न्यायाधीश पर महाभियोग प्रस्ताव लाया जा सकता है। चूंकि अभी सदन में केंद्र सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव लाने के लिए संघर्ष जारी है, इसलिए संभव है कि सीजेआई के खिलाफ महाभियोग बाद में लाया जाए। प्रस्ताव में बीते दिनों सुप्रीम कोर्ट के 4 जजों द्वारा प्रेस कांफ्रेंस कर सीजेआई के खिलाफ लगाए गए आरोपों के निस्तारण के लिए कोई कदम नहीं उठाने का हवाला दिया गया है।
एनसीपी के नेता डीपी त्रिपाठी ने बताया कि कई विपक्षी दलों ने इस प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए हैं। उन्होंने बताया कि एनसीपी और लेफ्ट पार्टियों ने इस प्रस्ताव पर अपनी मंजूरी भी दे दी है।
क्या है महाभियोग
संविधान में न्यायधीशों पर महाभियोग का उल्लेख अनुच्छेद 124(4) में मिलता है। इसके तहत सुप्रीमकोर्ट या हाईकोर्ट के किसी न्यायाधीश पर साबित कदाचार या अक्षमता के लिए महाभियोग का प्रस्ताव लाया जा सकता है। महाभियोग की कार्यवाही संसद के सदनों में ही चलती है। जिस सदन में यह प्रस्ताव रखा जाता है वह इसे जांच के लिए दूसरे सदन को भेज देता है। सदन में न्यायाधीशों पर लगे आरोपों की जांच होती है। इसके नतीजे बहुमत से पारित कर दूसरे सदन को फैसले के लिए भेज दिए जाते हैं। इस प्रस्ताव पर फिर मतदान होता है और दो तिहाई मतों से मंजूरी के बाद फैसला तय की जाती है। यह तय होता है कि अमुक न्यायाधीश पद पर बना रहेगा या उसे हटाया जाएगा।
उत्तर प्रदेश
जो हुकूमत जिंदगी की हिफ़ाज़त न कर पाये उसे सत्ता में बने रहने का कोई हक़ नहीं, मुख्तार की मौत पर बोले अखिलेश
लखनऊ। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव ने मुख्तार अंसारी की मौत पर सवाल उठाए हैं। साथ ही उन्होंने इस मामले पर योगी सरकार को भी जमकर घेरा है। उन्होंने मामले की सर्वोच्च न्यायालय के जज की निगरानी में जांच किए जाने की मांग की है। उन्होंने कहा कि यूपी इस समय सरकारी अराजकता के सबसे बुरे दौर में है। यह यूपी की कानून-व्यवस्था का शून्यकाल है।
सोशल मीडिया साइट एक्स पर अखिलेश ने लिखा कि हर हाल में और हर स्थान पर किसी के जीवन की रक्षा करना सरकार का सबसे पहला दायित्व और कर्तव्य होता है। सरकारों पर निम्नलिखित हालातों में से किसी भी हालात में, किसी बंधक या क़ैदी की मृत्यु होना, न्यायिक प्रक्रिया से लोगों का विश्वास उठा देगा।
अपनी पोस्ट में अखिलेश ने कई वजहें भी गिनाई।उन्होंने लिखा- थाने में बंद रहने के दौरान ,जेल के अंदर आपसी झगड़े में ,जेल के अंदर बीमार होने पर ,न्यायालय ले जाते समय ,अस्पताल ले जाते समय ,अस्पताल में इलाज के दौरान ,झूठी मुठभेड़ दिखाकर ,झूठी आत्महत्या दिखाकर ,किसी दुर्घटना में हताहत दिखाकर ऐसे सभी संदिग्ध मामलों में सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की निगरानी में जाँच होनी चाहिए। सरकार न्यायिक प्रक्रिया को दरकिनार कर जिस तरह दूसरे रास्ते अपनाती है वो पूरी तरह ग़ैर क़ानूनी हैं।
सपा प्रमुख ने कहा कि जो हुकूमत जिंदगी की हिफ़ाज़त न कर पाये उसे सत्ता में बने रहने का कोई हक़ नहीं। उप्र ‘सरकारी अराजकता’ के सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है। ये यूपी में ‘क़ानून-व्यवस्था का शून्यकाल है।
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