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आध्यात्म

इस नवरात्र करें सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ, दूर होंगे सारे कष्ट

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हिंदू धर्म में शारदीय नवरात्रि का बहुत महत्व है। माना जाता है इस महीने से शुभता और ऊर्जा का आगमन होता है। ऐसे समय में मां काली की पूजा से घर में सुख-समृद्धि भी आती है।

नवरात्र के पहले दिन कलश स्थापना की जाती है। इसके बाद लगातार नौ दिनों तक मां की पूजा और उपवास किया जाता है। 10वें दिन कन्या पूजन के बाद व्रत को खोला जाता है। मां शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि,  महागौरी और सिद्धिदात्रि मां के नौ अलग-अलग रूप हैं।

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सिद्ध कुंजिका स्तोत्र –

दुर्गा सप्तशती में वर्णित सिद्ध कुंजिका स्तोत्र का पाठ परम कल्याणकारी है। इस स्तोत्र का पाठ मनुष्य के जीवन में आ रही समस्या और विघ्नों को दूर करने वाला है। मां दुर्गा के दुर्गा सप्तशती पाठ का जो मनुष्य विषम परिस्थितियों में वाचन करता है, उसके समस्त कष्टों का अंत होता है।

दुर्गा सप्तशती का पाठ करने में पूजा-विधान बहुत बड़ा होने के साथ-साथ समय भी अधिक लगता है।  इसलिए जो भक्त इस पाठ के लिए समय नहीं निकाल पाते हैं, उनके लिए सिद्ध कुंजिका स्त्रोत का पाठ भी सप्तशती पाठ के समान ही फल देने वाला होता है।

ऐसी मान्यता है, भगवान शंकर कहते हैं कि कुंजिका स्तोत्र का पाठ करने वाले को देवी कवच, अर्गला, कीलक, रहस्य, सूक्त, ध्यान, न्यास और यहां तक कि अर्चन भी जरूरी नहीं है। केवल कुंजिका के पाठ मात्र से दुर्गा पाठ का फल प्राप्त हो जाता है। इसके पाठ मात्र से मारण, मोहन, वशीकरण, स्तम्भन और उच्चाटन आदि उद्देश्यों की एक साथ पूर्ति हो जाती है।

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र करने की विधि –

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र पढ़ने से पहले प्रात:काल सूर्योदय से पूर्व उठकर स्नानादि दैनिक कार्यों से निवृत्त होकर अपने पूजा स्थान को साफ करके आसन पर बैठ जाए। अपने सामने लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाकर उस पर देवी दुर्गा की प्रतिमा या चित्र स्थापित करें। हाथ में अक्षत, पुष्प और जल लेकर संकल्प करें। मन ही मन देवी मां को अपनी इच्छा कहें। जितने पाठ एक साथ ( 1, 2, 3, 5, 7, 11) कर सकें, उसका संकल्प करें। अनुष्ठान के दौरान माला सामने रखें। कभी एक कभी दो कभी तीन न रखें। इस स्तोत्र के अनुष्ठान के दौरान हो सके तो जमीन पर शयन करें। ब्रह्मचर्य का पालन करें। प्रतिदिन फल का भोग लगाएं। लाल पुष्प देवी भगवती को अर्पित करें। नवरात्रि के प्रथम दिन से नवमी तक प्रतिदिन इसका पाठ किया जाता है।

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र के लाभ-

* जिन लोगों के पास हमेशा धन का अभाव रहता है। धन का लगातार नुकसान होता है। बेवजह के कार्यों में धन खर्च हो रहा हो, उन्हें कुंजिका स्तोत्र का पाठ करना चाहिए। इससे धन प्राप्ति के नए मार्ग खुलते हैं।

* शत्रुओं से छुटकारा पाने और मुकदमों में जीत के लिए यह स्तोत्र किसी चमत्कार की तरह काम करता है। नवरात्रि के बाद भी इसका नियमित पाठ किया जाए तो जीवन में कभी शत्रु बाधा नहीं डालते। कोर्ट-कचहरी के मामलों में जीत हासिल होती है।

* कुंजिका स्तोत्र के पूरे पाठ से जीवन के संपूर्ण रोगों का नाश होता हैं। इस स्तोत्र के पाठ से न केवल गंभीर से गंभीर रोगों से मुक्ति मिलती है, बल्कि रोगों पर होने वाले खर्च से भी मुक्ति मिलती है।

* यदि किसी व्यक्ति पर कर्ज चढ़ता जा रहा है। छोटी-छोटी जरूरतें पूरी करने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है, तो कुंजिका स्तोत्र का नियमित पाठ जल्द कर्ज मुक्ति करवाता है।

ध्यान रखने योग्य बातें-

सिद्ध कुंजिका स्तोत्र को करते समय इंसान को शरीर से ही नहीं मन से भी पवित्र होना जरूरी है। कभी भी दूसरों के बारे में गलत सोच से इस स्तोत्र को नहीं करना चाहिए। वरना इसका प्रभाव उल्टा पड़ता है। नवरात्र के समय में मांस, मदिरा का सेवन नहीं करना चाहिए।

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आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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