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मुफ्ती के बयान से सरकार, भाजपा का लेना-देना नहीं : राजनाथ

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नई दिल्ली | केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने सोमवार को कहा कि जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद के उस बयान से केंद्र सरकार और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का कोई लेना-देना नहीं है, जिसमें उन्होंने राज्य विधानसभा चुनाव शांतिपूर्ण संपन्न होने का श्रेय आतंकवादी गुटों और पाकिस्तान को दिया था। कांग्रेस और विपक्षी पार्टियों ने इस मुद्दे पर उचित प्रस्ताव की मांग को लेकर लोकसभा से बहिर्गमन कर दिया।

लोकसभा में प्रश्नकाल के बाद मुद्दे को उठाते हुए कांग्रेस सदस्य के. सी. वेणुगोपाल ने सईद के बयान की निंदा की। विपक्षी दलों ने भी मुद्दे पर प्रधानमंत्री से स्पष्टीरकरण मांगा। वेणुगोपाल ने कहा कि सईद ने कहा है कि उन्होंने मोदी को अपने विचारों से अवगत कराया था। मोदी रविवार को जम्मू एवं कश्मीर में पीपुल्स डेमोकेट्रिक पार्टी (पीडीपी) एवं भाजपा गठबंधन सरकार के शपथ समारोह में शामिल हुए थे। वेणुगोपाल ने कहा कि राज्य में शांतिपूर्ण चुनाव का श्रेय सुरक्षा बलों और राज्य की जनता को मिलना चाहिए। उन्होंने कहा, “हमें आशा है कि प्रधानमंत्री इस मुद्दे पर स्पष्टीकरण देंगे।” राजनाथ ने कहा, “केंद्र सरकार और भाजपा का इस बयान से कोई वास्ता नहीं है।” उन्होंने विपक्षी पार्टियों से कहा कि प्रधानमंत्री से बात करने के बाद ही वह सदन में आए हैं।

राजनाथ ने कहा, “मैं जो कुछ भी कह रहा हूं, वह सोच समझकर और प्रधानमंत्री की सहमति से कह रहा है।” उन्होंने कहा, “मैं शांतिपूर्ण चुनाव का श्रेय निर्वाचन आयोग, सशस्त्र बलों और अर्धसैनिक बलों को देना चाहता हूं।” मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री और जम्मू एवं कश्मीर के मुख्यमंत्री के बीच कोई गुप्त वार्ता और किसी भी विवादास्पद मुद्दे पर चर्चा नहीं हुई थी। सईद ने रविवार को बयान दिया था कि सीमा पार के लोगों की वजह से राज्य में विधानसभा चुनाव शांतिपूर्ण तरीके से संपन्न हो पाए। उन्होंने हुर्रियत और आतंकवादी गुटों को भी शांतिपूर्ण चुनाव का श्रेय देते हुए कहा कि उन्होंने बाधा पहुंचाई होती तो लोगों की बड़ी भागीदारी के साथ शांतिपूर्ण चुनाव संपन्न नहीं हो पाते। सईद के इस बयान ने देश की राजनीति में विवाद खड़ा कर दिया।

लोकसभा में कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि सरकार को जम्मू एवं कश्मीर के नए मुख्यमंत्री को उनके विवादास्पद बयान के लिए नोटिस भेजने का प्रस्ताव लाना चाहिए। उन्होंने कहा, “उन्हें पता चलेगा कि पूरा सदन उनके बयान के खिलाफ है। शांतिपूर्ण चुनाव राज्य की जनता और सरकार के अधिकारियों के कारण संपन्न हो पाए हैं, लेकिन उनका कहना है कि यह पाकिस्तान की वजह से है।” समाजवादी पार्टी (सपा) प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने भी इस मुद्दे पर प्रधानमंत्री से स्पष्टीकरण मांगा है, लेकिन राजनाथ का कहना है कि स्पष्टीकरण देने का सवाल ही नहीं उठता है।

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दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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