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आध्यात्म

मकर संक्रांति पर इन चीजों का करें दान, खत्म होंगी सभी बाधाएं

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सूर्य देव के महापर्व मकर संक्रांति पर दान-पुण्य और पवित्र नदी में स्नान करने की परंपरा है। इन दिन किए गए पूजा-पाठ से सभी दुखों से मुक्ति मिल सकती है। ज्योतिष के अनुसार इस संक्रांति पर राशि अनुसार दान करने से कुंडली के दोष दूर होते हैं और सभी बाधाएं खत्म हो जाती है। आइए जानते हैं संक्रांति पर राशि अनुसार किन चीजों का दान करना चाहिए-

मेष- इस राशि के लोग दर्पण, मच्छरदानी, तिल का दान करें।

मिथुन- इन लोगों को कंबल, तिल के लड्डू का दान करना चाहिए।

वृष- ये लोग ऊनी वस्त्र और अनाज का दान करें।

कर्क- इर्स राशि के लोग साबूदाना, शहद का दान करें।

सिंह- जिन लोगों की राशि सिंह है, वे चने की दाल, घी का दान करें।

तुला- ये लोग गुड़ तिल का तेल और चावल का दान करें।

कन्या- चादर और गर्म वस्त्रों का दान गरीबों को करें।

वृश्चिक- दूध, दही और तिल से बने व्यंजन का दान करें।

धनु- इस राशि के लोग गाय को घास खिलाएं और हल्दी का दान करें।

मकर- इस राशि के लोग उड़द की दाल, सरसों तेल और राई का दान करें।

कुंभ- जिनकी राशि कुंभ है, वे लोग काले तिल और तेल का दान करें।

मीन- मीन राशि वाले इस दिन गेहूं, गुड़ और कंबल का दान करें।

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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