आध्यात्म
संकष्टी गणेश चतुर्थी व्रत आज, जानिए कैसे करें पूजन
माघ मास कृष्ण पक्ष की चतुर्थी यानी संकष्टी गणेश चतुर्थी का व्रत शुक्रवार को है। इस मौके पर विशेष रूप से भगवान श्रीगणेश की पूजा की जाएगी और चंद्रमा को अघ्र्य दिया जाएगा। चतुर्थी तिथि इस बार गुरुवार रात दो बजे से ही शुरू होगी। लेकिन इसका मान शुक्रवार सुबह से मान्य होगा।
संकष्टी चतुर्थी को तिल चतुर्थी, माघी चतुर्थी, माघ संकष्टी चतुर्थी, तिल चौथ या सकट चौथ के नाम से भी जाना जाता है। यूं तो पूरे साल में हर महीने चतुर्थी आती है लेकिन पूरे साल के दौरान माघ संकष्टी चतुर्थी सबसे बड़ी मानी जाती है। इस दिन भगवान गणेश की पूजा करने से सुख समृद्धि और सौभाग्य पाया जा सकता है। यह व्रत स्त्रियां अपने संतान की दीर्घायु और सफलता के लिए करती है। इस व्रत के प्रभाव से संतान को ऋद्धि व सिद्धि की प्राप्ति होती है, और उनके जीवन की सभी विघ्न बाधायें गणेश जी दूर कर देते हैं।
ऐसे करें पूजन
प्रात: काल नित्य क्रम से निवृत होकर षोड्शोपचार से गणपति की पूजा करें। इस श्लोक के साथ गणेशजी का वंदन करें…
ओम् गजाननं भूत गणादि सेवितं, कपित्थ जम्बू फल चारू भक्षणम्।
उमासुतं शोक विनाशकारकम्, नमामि विघ्नेश्वर पाद पंकजम्॥
व्रत में पूरे दिन मन में श्री गणेश जी के नाम का जप करें और सूर्यास्त के बाद स्नान कर के साफ वस्त्र पहन कर विधिपूर्वक गणेश जी का पूजन करें। इसके लिए एक कलश में जल भर कर रखें, धूप-दीप अर्पित करें, नैवेद्य के रूप में तिल और गुड़ के बने हुए लड्डू, ईख, शकरकंद, अमरूद, गुड़ और घी अर्पित करें। इसके बाद चंद्रमा को कलश से अर्घ्य अर्पित करके, धूप-दीप दिखायें और एकाग्रचित होकर सकट की कथा सुनें और सुनायें।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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