Connect with us
https://www.aajkikhabar.com/wp-content/uploads/2020/12/Digital-Strip-Ad-1.jpg

नेशनल

विदाई के चंद घंटों बाद बेटी लौटी वापस घर, बोली- सोचा न था वो ऐसे होंगे

Published

on

Loading

मेरठ। कहते है ‘शादी दो बंधनों से भी कहीं ज्यादा दो दिलों का मेल है। ऐसे में शादी से पहले और शादी के बाद भी हर लड़की का यही खवाब होता है कि उसका होने वाला पति उसके पिता के जैसा हो पिता के जैसे पति का ख्वाब लड़की इसीलिए देखती है क्योंकि उसने बचपन से लेकर बड़े तक अपने पिता को एक पिता के तौर पर और अपनी मां के पति दोनों रूपों में देखा होता है।

लेकिन क्या हो अगर जब यही चंद खवाब लड़की के टूट जाए और उसके यही सपने महज एक खौफनाक सच बनकर सामने आए।

जी हां। ऐसा ही कुछ हुआ है मेरठ के सिविल लाइन थाना क्षेत्र का है। यहां 7 फेरे लेने के बाद दूल्हे ने 50 लाख की डिमांड रख दी। जब लड़की के परिजन मांग पूरी न कर सके तो दूल्हा और उसके परिवारवाले दुल्हन को होटल के कमरे में छोड़कर फरार हो गए। लड़की पक्ष ने करीब 15 लाख रुपए के जेवर और नकदी लेकर फरार होने का आरोप लगाते हुए केस दर्ज कराया है।

विदाई के 4 घंटे बाद ही दुल्हन को लौटना पड़ा घर,बोली-सोचा न था वो ऐसे होंगे

यहां रहने वाले बिजनेसमैन ने बताया, बेटी सोनम (बदला नाम) नोएडा की एक कंपनी में ऑपरेशन मैनेजर के पद पर तैनात है। उसकी शादी के लिए एक पत्रिका और उसकी वेबसाइट पर विज्ञापन दिया था।

विज्ञापन देखकर राजस्थान की रहने वाली रचना दर्शन ने अपने बेटे प्रतीत के लिए शादी की बात की। उन्होंने बताया – बेटा राजस्थान में अडानी पावर प्लांट में इंजीनियर है। शादी में 15 लाख रुपए खर्च करने की बात तय हुई।

28 मई 2017 को रोका की रस्म होने के बाद शादी की तारीख 11 नवंबर तय की गई। लेकिन रस्म के बाद से ही प्रतीत और उसके परिवार के लोग दहेज में और पैसे की मांग करने लगे।

इसके बाद हमने 20 लाख रुपए तक खर्च करने की बात कही। 11 नवंबर को मेरठ के होटल क्रोम में सगाई की रस्म पूरी की गई, जिसमें 5 लाख रुपए नकद, सोने की अंगूठी, चैन और अन्य कीमती सामान दिए गए।

विदाई के 4 घंटे बाद ही दुल्हन को लौटना पड़ा घर,बोली-सोचा न था वो ऐसे होंगे

उसी दिन शाम को प्लेनेट एस रिसॉर्ट में शादी सम्पन्न हुई। फेरों के दौरान भी सोने-चांदी के जेवर और नकदी दूल्हे और उसके परिवार के लोगों को दिए गए।

सोनम ने बताया, ”विदाई के बाद होटल पहुंचने पर सभी ने कहा- आराम कर लो। सभी नॉर्मल बर्ताव कर रहे थे। मुझे कहीं से भी यह नहीं लगा कि वो लोग ऐसे होंगे। उन्होंने मेरे लिए सॉफ्ट ड्र‍िंक मंगाई, जिसे पीने के बाद मैं सो गई। जब उठी तो कमरे में मैं अकेली थी और प्रतीत समेत सभी गायब थे।

फिलहाल, थाना प्रभारी ए. के. बघेल ने तहरीर के आधार पर केस दर्ज कर लिया है और आरोपियों के खिलाफ कार्रवाई भी शुरू कर दी है।

नेशनल

पहले फेज के वोटर ने बिगाड़ा मोदी का मूड

Published

on

Loading

सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। लोकसभा चुनाव 2024 का पहला चरण बीत गया। सात चरण में हो रहे चुनावों का ये सबसे बड़ा और पोलिटिकल पार्टीज के लिए लिटमस टेस्ट वाला चरण था। उत्तर प्रदेश की 8 सीटें वो थी जिन पर 2019 में भाजपा का पसीना छूट गया था।

जिस दिन अयोध्या में मर्यादा पुरषोत्तम राम के भव्य राम मंदिर में प्रभु राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई और उसे देख जिस तरह का जन-ज्वार उठा उससे गदगद होकर प्रधानमंत्री पीएम मोदी ने भाजपा और सहयोगी दलों के लिए 18वीं लोकसभा के लिए टारगेट सेट कर दिया 400 सीटों का और नारा दे दिया ‘अबकी बार 400 पार’। दरअसल ये 400 का टारगेट मोदी ने यूं ही नहीं सेट कर दिया। इसके पीछे कहीं न कहीं बीजेपी का कान्फिडन्स और विपक्ष को मानसिक दवाब में घेरने की रणनीति नजर आती है।

शुरुआत में जिस तरह से इंडि गठबंधन बिखरा बिखरा दिखाई दे रहा था उसे देखकर बीजेपी का ये टारगेट कठिन भी नजर नहीं आ रहा था लेकिन जैसे जैसे कयामत की रात यानि मतदान की तारीख पास आती गई विपक्षियों को भी अपने अस्तित्व पर संकट नजर आने लगा और फिर मरता क्या न करता के मुहावरे पर अमल करते हुए सभी एक हो ही गए। दूसरी तरफ बीजेपी को 2014 और 2019 की तरह मोदी मैजिक और राम के नाम पर भरोसा था और उधर उसके वोटर के मन में अबकी बार 400 पार इतना गहरा बैठ गया था कि लगता है उसका वोटर भी घर में बैठ गया और जो मतदान प्रतिशत 2019 में करीब 69 प्रतिशत था वो करीब 60 प्रतिशत पर आकर टिक गया। यानि 9 फीसदी वोटर गर्मी में ac की हवा खा रहा था।

फिर क्या था इन्हीं 9 प्रतिशत मतदाताओं ने सत्तारूढ़ दल यानि मोदी के माथे पर चिंता की सिलवटें ला दी, लेकिन ऐसा नहीं है ये सिलवटें सिर्फ मोदी के माथे पर ही आईं हों ये लकीरें विपक्षी गठबंधन के नेताओं के माथे पर भी थीं और हो भी क्यूँ नहीं क्योंकि evm खुलने के पहले कोई नहीं जानता कि जो वोटर घर में बैठा था वो आखिर कौन था। क्या वो सरकार से नाराज वो व्यक्ति था जिसे विपक्ष मतदान केंद्र तक लाने में सफल नहीं हो पाया या फिर ये वो आदमी था जिसे ये लग रहा था मैं वोट दूँ या न दूँ क्या फरक पड़ता है आएगा तो मोदी ही।

दरअसल उदासीनता की वजह को भी जानना जरूरी है-

2014 में बदलाव की लहर थी जनता भ्रष्टाचार की कहानियाँ सुनकर ऊब चुकी थी
2014 में मोदी पूरे देश के सामने गुजरात मॉडल लेकर आ रहे थे जिसे सोशल मीडिया के धुरंधरों ने हर फोन तक बखूबी पहुंचाया
2014 में मोदी ने जिस तरह देश को अपनी सभाओं से मथ के रख दिया उसका भी जनता पर काफी असर पड़ा
2019 में पुलवामा कांड ने राष्ट्रवाद को जगाया और 2014 में 282 सीट वाली बीजेपी 303 के आँकड़े पर पहुँच गई
लेकिन 2024 में न तो 2014 जैसे एंटी इन्कमबंसी जैसी लहर है और न 2019 जैसा राष्ट्रवाद जैसा

Continue Reading

Trending