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बिहार में सियासत तेज, भाजपा विधायक दल की बैठक बुधवार को

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पटना। बिहार में जनता दल (यूनाइटेड) में जारी सत्ता संघर्ष के बीच भारतीय जनता पार्टी ने अपनी रणनीति तय करने के लिए बुधवार को पार्टी विधायक दल की बैठक बुलाई है। बैठक में मांझी सरकार को समर्थन देने के मामले पर भी विचार किया जाएगा।

बिहार विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष और भाजपा के वरिष्ठ नेता नंदकिशोर यादव ने मंगलवार को कहा कि भाजपा का रुख स्पष्ट है और सारे विकल्प खुले हुए हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा विधायक दल की बैठक बुधवार को बुलाई गई है। इस बैठक में 20 फरवरी की रणनीति पर विचार किया जाएगा। बिहार में राष्ट्रपति शासन की संभावना के विषय में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि भाजपा प्रदेश में राष्ट्रपति शासन का विरोध करती है। उन्होंने कहा कि भाजपा ने प्रदेश में राष्ट्रपति शासन की कभी मांग नहीं की है।

गौरतलब है कि भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने सोमवार को कहा था कि भाजपा सत्ता की दावेदार नहीं है और विपक्ष में बैठेगी। मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी दो दिन दिल्ली में बिताने के बाद मंगलवार सुबह पटना पहुंचे। मांझी ने मंगलवार को खगड़िया जाने का कार्यक्रम भी रद्द कर दिया है। सूत्रों के अनुसार मुख्यमंत्री आवास पर लगातार बैठकों का दौर जारी है, जिसमें आगे की रणनीति पर चर्चा चल रही है। उल्लेखनीय है कि राज्यपाल ने मांझी को 20 फरवरी को सदन में बहुमत साबित करने का निर्देश दिया है। उसी दिन से विधानसभा का बजट सत्र भी शुरू होने वाला है।

इस बीच, पटना उच्च न्यायालय ने सोमवार को एक याचिका पर सुनवाई करते हुए जीतन राम मांझी सरकार को नीतिगत फैसले लेने पर रोक लगा दी, जिसे मांझी के लिए करारा झटका माना जा रहा है। जद (यू) के प्रवक्ता नीरज कुमार ने शुक्रवार को पटना उच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए न्यायालय ने मांझी सरकार को नीतिगत फैसले लेने पर रोक लगा दी और केवल नियमित कार्य करने का निर्देश दिया है। इस मामले की अगली सुनवाई 19 फरवरी को होगी।

पूर्व मुख्यमंत्री नीतीश कुमार खेमा अभी भी 130 विधायकों के समर्थन का दावा कर रहा है। 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में वर्तमान समय में 10 सीटें रिक्त हैं और बहुमत साबित करने के लिए कुल 117 विधायकों की संख्या आवश्यक है। सदन के अंकगणित पर गौर करें तो 243 सदस्यीय बिहार विधानसभा में वर्तमान समय में जद (यू) के 111, भाजपा के 87, कांग्रेस के पांच, राष्ट्रीय जनता दल के 24, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) के एक तथा पांच निर्दलीय सदस्य हैं।

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दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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