आध्यात्म
यहां दीपावली पर नहीं पूजी जाती मां लक्ष्मी…..
आज बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक ‘दीपावली’ का त्यौहार है। छोटी-छोटी बस्तियों से लेकर हर गली-कूचे की गलियां दीवाली के प्रकाश से गुलजार है।
आज के दिन हर घरों में खासतौर से मां लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा का प्रावधान होता है लेकिन क्या आपको पता है देश की एक ऐसी भी जगह है जहां दीपावली के दिन लोग मां लक्ष्मी की जगह मां काली की पूजा करने को ज्यादा शुभ मानते है।
जी हां। पश्चिम बंगाल और बंगाली समुदाय इस दिन मां काली की पूजा करते है ये लोग इस पूजा को दीपावली के दिन यानी अमावस्या की अर्धरात्रि में करते है।
यहाँ का ऐसा मानना है कि एक अमावस्या में मां दुर्गा का आगमन होता है. जिसे हम शारदीय नवरात्र के तौर पर जानते हैं इसलिए ठीक 15 दिन बाद दूसरी अमावस्या में मां काली की पूजा करने की प्रथा बंगाल में रहती है।
हालांकि बाकी जगह जैसे मां लक्ष्मी की पूजा बड़े ही धूम-धाम से की जाती है। इसकी जगह ये लोग सिर्फ मां लक्ष्मी की प्रतिमा अपने घरों में स्थापित कर देते है।
इस विधि से करते है काली मां की पूजा-
पूजा में माता को विशेष रूप से 108 गुड़हल के फूल, 108 बेलपत्र एवं माला, 108 मिट्टी के दीपक और 108 दुर्वा चढ़ाने की परंपरा है।
साथ ही मौसमी फल, मिठाई, खिचड़ी, खीर, तली हुई सब्जी तथा अन्य व्यंजनों का भी भोग माता को चढ़ाया जाता है।तड़के 4 बजे तक चलने वाली इस पूजा की विधि में होम-हवन व पुष्पांजलि का समावेश होता है। इस मौके पर अधिकांश महिला व पुरुष सुबह से उपवास रखकर रात्रि में माता को पुष्पांजलि अर्पित करते हैं।
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आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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