आध्यात्म
जेकेपी ने भक्तिधाम–मनगढ़ में भव्यता से मनाया जगद्गुरुत्तम जयंती महोत्सव
मनगढ़। भक्तिधाम–मनगढ़ में शरत्पूर्णिमा को जगद्गुरुत्तम जयंती के रूप में अत्यंत भव्य तरीके से मनाया गया। गुरुवार को गुरुदेव का प्राकट्य महोत्सव मनाने के लिए देश–विदेश से लाखों श्रद्धालुओं ने भक्तिधाम– मनगढ़ पहुंचकर पूजा–अर्चना की। इस अवसर पर साधकों ने केक काटकर गुरुदेव का भावपूर्ण स्मरण भी किया।
भक्तिधाम में शरत्पूर्णिमा महोत्सव का विशेष महत्व है क्योंकि यह परम पवित्र बेला प्राकट्य दिवस है, ये उन महानतम विभूति का जिन्होंने अपने अलौकिक ज्ञान की गंगा से इस धरा-धाम का उद्धार कर विश्व में ज्ञान व भक्ति की अखंड ज्योति को प्रकाशित किया, जिन्हें सम्पूर्ण विश्व जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज के नाम से जानता है। अतः जगद्गुरु कृपालु परिषद् द्वारा शरत्पूर्णिमा को जगद्गुरुत्तम जयंती के रूप में मनाया जाता है।
जगद्गुरुत्तम जयंती अर्थात जो जगदगुरुओं में सर्वश्रेष्ठ है, उनका प्राकट्योत्सव। श्री महाराज जी से पूर्व चार जगतगुरु हुए, जगद्गुरु श्री शंकराचार्य, जगद्गुरु श्री निम्बाकाचार्य, जगद्गुरु श्री रामानुजाचार्य एवं जगतगुरु श्री माध्वाचार्य। श्री महाराज जी विश्व के पंचम मूल जगद्गुरु हैं।
अकारण करुणा-वरुणालय गुरुदेव के प्राकट्य महोत्सव मनाने के लिए देश–विदेश से लाखों की संख्या में श्रद्धालु भक्ति धाम मनगढ़ पहुंच गए थे। ‘कृपालु महाप्रभु की जय।‘ आदि जय-जयकारों से सम्पूर्ण साधना भवन गूंज उठा।
इस दिन प्रातःकालीन आरती एवं गुरु चरणों की वंदना एवं पूजन के साथ महोत्सव का प्रारम्भ हुआ। मध्य रात्रि तक अखंड संकीर्तन हुआ। तत्पश्चात अभिषेक और आरती का कार्यक्रम संपन्न हुआ। इस अवसर पर भक्ति समुदाय द्वारा अपने गुरुवर के प्राकट्योत्सव के उपलक्ष्य में केक भी काटा गया।
उधर, वृंदावन स्थित प्रेम मंदिर में भी जगद्गुरुत्तम जयंती महोत्सव अत्यंत भव्य रूप से मनाया गया। इस अवसर पर प्रेम मंदिर में प्रांगण में विशेष परिक्रमा हुई। इस अवसर पर हजारों दर्शनार्थियों को प्रसाद वितरित किया गया।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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