Connect with us
https://www.aajkikhabar.com/wp-content/uploads/2020/12/Digital-Strip-Ad-1.jpg

नेशनल

BHU के चीफ प्रॉक्टर ओएन सिंह ने दिया इस्तीफा, कमिश्नर की रिपोर्ट ने खोली पोल

Published

on

Loading

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) में शनिवार रात को छात्राओं के साथ हुई छेड़खानी के मामले में बीएचयू के चीफ प्रॉक्टर ओंकारनाथ सिंह ने मंगलवार देर रात इस्तीफा दे दिया। कुलपति ने उनका इस्तीफा स्वीकार भी कर लिया है।

इस बीच कुलपति ने इस बात से साफ तौर से इंकार किया है कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय (एमएचआरडी) ने बीएचयू मामले को लेकर उन्हें तलब किया था।

बीएचयू परिसर में भड़की हिंसा की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए चीफ प्रॉक्टर प्रो़ ओएन सिंह ने इस्तीफा दे दिया है। विश्वविद्यालय के प्रवक्ता डॉ़ राजेश सिंह ने बताया कि मंगलवार की देर रात कुलपति प्रो़ गिरीशचंद्र त्रिपाठी ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया।

इधर, कुलपति गिरीश चंद्र त्रिपाठी ने कहा कि मंगलवार को वह दिल्ली में बीएचयू कार्यकारिणी की बैठक में शामिल होने गए थे और सीधे बनारस लौट आए। लेकिन कुछ लोगों ने अफवाह फैला दी कि मंत्रालय ने उन्हें तलब किया था।

कुलपति ने कहा, एमएचआरडी मंत्रालय से रोजाना किसी ने किसी मुद्दे पर बात होती है। आज भी मैंने एमएचआरडी मंत्री प्रकाश जावड़ेकर से फोन पर बात की और बीएचयू में हुई घटना की पूरी जानकारी दी। यह भी बताया कि न्यायिक आयोग पूरे प्रकरण की जांच करेगा।

प्रो़ त्रिपाठी ने कहा कि मंत्री ने उन्हें घटना के बाद उपजे हालातों से निपटने के लिए कुछ महत्वपूर्ण सुझाव दिए हैं जिस पर अमल किया जा रहा है।

कुलपति ने कहा कि जो न्यायिक कमेटी गठित की गई है, उसकी जांच में सारे तथ्य सामने आ जाएंगे।

बता दें कि, 23-24 सितंबर की रात बीएचयू में छात्र-छात्राओं पर हुए लाठीचार्ज के लिए विश्वविद्यालय प्रशासन बाहरी ताकतों पर इल्जाम लगा रहा था। लेकिन वाराणसी कमिश्नर नितिन रमेश गोकर्ण की रिपोर्ट ने यूनिवर्सिटी के उन दावों की पोल खोल दी। जिसमें यूनिवर्सिटी प्रशासन को दोषी ठहरा रहा था।

कमिश्नर की रिपोर्ट के मुताबिक छात्राओं की मांगें जायज थीं। कोई प्रशासनिक अधिकारी अगर मौके पर पहुंचता तो हिंसा नहीं होती। रिपोर्ट में लाठीचार्ज के लिए प्रॉक्टोरियल बोर्ड के सुरक्षाकर्मियों को भी जिम्मेदार ठहराया गया है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

Published

on

Loading

सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

Continue Reading

Trending