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आध्यात्म

नवरात्र 2020 : पूजा की इन विधियों को अपनाकर माँ को करें प्रसन्न, सभी मनोकामनाएं होंगी पूरी

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नवरात्र के पावन दिनों की शुरुआत हो चुकी है, जहां एकतरफ नवरात्र को लेकर भक्तों में अभी से उत्सव है तो वहीं दूसरी तरफ लोगों ने नवरात्र को लेकर पूजा-पाठ की विधियां जानना शुरू कर दिया है।

नवरात्र के दौरान मां के भक्त नौ दिनों तक माँ के नवों रूपों की पूजा-अर्चना करते हैं। माना जाता है कि मां अपने भक्तों द्वारा मांगी गई मनोकामनाएं पूरी करती हैं। नवरात्र के समय मां दुर्गा नौ दिनों के लिए धरती पर रहने के लिए आ जाती हैं। उन्हें प्रसन्न करने के लिए भक्त विशेष तरीके से पूजा करते हैं और मनोकामना मांगते हैं।

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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, मां दुर्गा की पूजा करने के लिए दिशा का विशेष रूप से ध्यान रखा जाना चाहिए।चूंकि हर देवी-देवताओं के कुछ खास दिशाएं होती हैं, इसलिए उसी दिशा में ही पूजा-अर्चना की जानी चाहिए, जो दिशा उनके लिए निर्धारित हो। पूजा के दौरान दिशामें छेड़छाड़ नहीं करनी चाहिए।

इसके साथ ही भक्तों को मां दुर्गा की पूजा दक्षिण दिशा में करनी चाहिए। ऐसा मानना है कि यदि मां की पूजा करते समय हमारा मुंह दक्षिण या पूर्व दिशा की ओर हो, तो यह फलदायी होता है।इसके अलावा मानसिक शांति भी मिलती है। नवरात्र में अपना मुख दक्षिण दिशा में करके मां दुर्गा की पूजा करने से मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

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आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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