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मुख्य समाचार

31 जनवरी 2015 का राशिफल

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मेष- आज आप अपने व्‍यक्तिगत मसलों पर अधिक ध्‍यान नहीं दे पाएंगे। सफलता काफी बातों पर निर्भर करती है। सर्वप्रथम अपनी व अपने सहयोगियों की गलती याद रखें। आपको समय से अविश्‍वसनीय लोगों से किनारा कर लेना चाहिए भले ही व्‍यक्तिगत जीवन में व आपके मित्र ही क्‍यों न हों।

वृषभ- आज का दिन अपने लक्ष्‍य व अपनी योजनाओं में उचित फेरबदल के लिए अच्‍छा है। कार्यक्षेत्र में भी आप कोई नया पद सम्‍भाल सकते हैं। हर कार्य तुरन्‍त करने का प्रयास न करें। सर्वप्रथम वह करें जिसमें आपको अच्‍छा अनुभव है।

मिथुन- आपको हर क्षेत्र में सफलता मिल जाए यह आवश्‍यक नहीं है। समय व्‍यर्थ बर्बाद न करें। उपलब्‍ध साधनों से जितना हो सके लाभ लेने का प्रयास करें। जिस व्‍यक्ति पर आपको काफी भरोसा था वह व्‍यथ्‍कत आपको निराश कर सकता है।

कर्क- आपको इच्‍छानुसार परिणाम न प्राप्‍त होने से निराशा हो सकती है। अपने अनुसार आप सही करने का भरकस प्रयास करेंगे। आज आपका कोई प्रिय आपसे अप्रसन्‍न हो सकता है। धैर्यपूर्वक
परिस्थिति का सामना करें।

सिंह- भागीदारी वाले हर रिश्‍ते में आपको अच्‍छे व बुरे दोनों अनुभव होंगे। धैर्य रखें। कटु वचनों से बचें। अपनी सफलता पर खुश होने में व असफलता का दुख मनाने में जल्‍दबाजी न करें। कुछ निराश करने वाली बातों के साथ कुछ हर्षित करने वाली बातें भी होंगी।

कन्‍या– आज छोटे मोटे निर्णय आप ले सकते हैं परन्‍तु बड़े व महत्‍वपूर्ण निर्णय भविष्‍य के लिए टाल दें। भविष्‍य में यह निर्णय महत्‍वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। आप अपने आपको चिर परिचित
स्थिति में पाएंगे।

तुला- यदि आप महत्‍वपूर्ण कार्य स्‍वयं करें तो आपकी इच्‍छाएं पूर्ण हो सकती हैं। किसी की भी मध्‍यस्‍थता स्‍वकार न करें। आपमें स्‍वयं निर्णय लेने की व कार्य पूर्ण करने की काबलियत व क्षमता
दोनों हैं। अपने मित्रों व सहयोगियों पर पिछले अनुभव के आधार पर ही विश्‍वास करें।

वृ‍श्चिक- समस्‍या से बचना ज्‍यादा लाभप्रद नहीं होगा आपके लिए। स्‍वयं से यह कहना बंद करें कि आप से कोई विशेष कार्य नहीं होगा। आप यह सिर्फ आलस्‍य, असफलता का डर अथवा उचित परिणाम न पाने के डर से कर रहे हैं।

धनु- आपकी सफलता का मार्ग अतीत में घटित कुछ घटनाएं रोक सकती हैं। जितना अधिक ऋण वसमस्‍याएं होंगी उतना ही आप खुद को विवश महसूस करेंगे। आप स्‍वयं को परिस्थितियों में विवश पाएंगे।

मकर- आपकी सफलता काफी कुछ इस बात पर निर्भर करती है कि दूसरों के प्रति आप कितने सहयोगात्‍मक हैं। धन सम्‍बन्‍धी समस्‍याएं आपकी अपने प्रबंधक से मित्रवत व्‍यवहार की वजह से
सुलझ जायेगी। यदि आपको स्‍वतंत्र रूप से कार्य करना पसंद है तो अपनी प्राथमिकता के अनुसार कार्यों व खर्चों की सूची बना लें।

कुंभ- आप आसानी से बड़ी समस्‍याएं टाल सकते हैं व छोटी मोटी समस्‍याओं का हल निकाल सकते हैं। आप कौन सी तकनीक समस्‍या को सुलझाने में इस्‍तमाल करते हैं, सफलता इस बात पर निर्भीर करती है। जहां भी आवश्‍यकता होगी आपको स्‍वतः ही सहयोग मिल जाएंगा।

मीन- आपको कोई भी महत्‍वपूर्ण निर्णय काफी सावधानीपूर्वक लेना चाहिए। आपको अपने किसी विश्‍वसनीय मित्र का सहयोग लेना पड़ सकता है। दूसरों की गलतियों से सबक लेना चाहिए। गलत व्‍यक्ति अथवा वस्‍तु का चयन हानिकारक है।

नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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