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नागालैंड उपचुनाव में भारी मतदान
कोहिमा, 30 जुलाई (आईएएनएस)| नागालैंड के नार्दर्न अंगामी-1 सीट पर उपचुनाव के लिए मतदान शनिवार को शांतिपूर्वक संपन्न हो गया। क्षेत्र के कुल 16,235 मतदाताओं में से 78 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं ने मतदान किया।
निर्वाचन अधिकारी राजेश सौंदराराजन ने आईएएनएस को फोन पर बताया, मतदान का अंतिम आंकड़ा शाम चार बजे लिया गया था, जो 78.55 प्रतिशत था। हमें उम्मीद है कि यह 79 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा।
उन्होंने कहा कि कुल मिलाकर उपचुनाव शांतिपूर्वक संपन्न हो गया और मतदान के दौरान कोई बड़ी घटना नहीं घटी।
सौंदराराजन ने कहा कि 25 मतदान केंद्रों पर वीवीपैट मशीनों का इस्तेमाल किया गया।
दो मतदान केंद्रों -टी. खेल अपर और एल. खेल अपर2- पर वीवीपैट मशीनों में गड़बड़ी की खबरें आई थीं, लेकिन उन्हें ठीक कर लिया गया।
इस सीट पर नागा पीपुल्स फ्रंट(एनपीएफ) के अध्यक्ष शुरहोजेली लीजीत्सु का सीधा मुकाबला निर्दलीय उम्मीदवार केखरी योम से है। लीजीत्सु की सरकार को राज्यपाल पी.बी. आचार्य ने 19 जुलाई को तब बर्खास्त कर दिया था, जब वह विधानसभा में बहुमत साबित नहीं कर पाए थे।
इस सीट पर उपचुनाव की जरूरत इसलिए पड़ी, क्योंकि एनपीएफ के विधायक ख्रीहू लीजीत्सु ने 24 मई को इस्तीफा दे दिया था, ताकि इस सीट से चुनाव जीतकर उनके पिता शुरहोजेली लीजीत्सु विधानसभा में पहुंच सकें और मुख्यमंत्री पद पर बरकरार रहें।
लीजीत्सु (80) ने चुनावी राजनीति से संन्यास ले लिया था, लेकिन 22 फरवरी को उन्हें वापस लौटना पड़ा था, क्योंकि जनजातीय समूहों के हिंसक विरोध प्रदर्शन के बाद मुख्यमंत्री टी.आर. जेलियांग ने इस्तीफा दे दिया था और मुख्यमंत्री का पद लीजीत्सु को संभालना पड़ा था।
जेलियांग ने 19 जुलाई को दूसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली। उन्हें एनपीएफ के 36, भाजपा के चार और सात निर्दलीय विधायकों ने समर्थन दिया।
लीजीत्सु ने आईएएनएस से कहा, मैं मतदान पर कोई टिप्पणी नहीं करूंगा, क्योंकि एनपीएफ के बड़े नेता पार्टी के खिलाफ हो गए हैं। सिर्फ भगवान जानता है, क्या होगा। लीजीत्सु इसके पहले नागालैंड विधानसभा के लिए आठ बार निर्वाचित हो चुके हैं।
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पहले फेज के वोटर ने बिगाड़ा मोदी का मूड
सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ
लखनऊ। लोकसभा चुनाव 2024 का पहला चरण बीत गया। सात चरण में हो रहे चुनावों का ये सबसे बड़ा और पोलिटिकल पार्टीज के लिए लिटमस टेस्ट वाला चरण था। उत्तर प्रदेश की 8 सीटें वो थी जिन पर 2019 में भाजपा का पसीना छूट गया था।
जिस दिन अयोध्या में मर्यादा पुरषोत्तम राम के भव्य राम मंदिर में प्रभु राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई और उसे देख जिस तरह का जन-ज्वार उठा उससे गदगद होकर प्रधानमंत्री पीएम मोदी ने भाजपा और सहयोगी दलों के लिए 18वीं लोकसभा के लिए टारगेट सेट कर दिया 400 सीटों का और नारा दे दिया ‘अबकी बार 400 पार’। दरअसल ये 400 का टारगेट मोदी ने यूं ही नहीं सेट कर दिया। इसके पीछे कहीं न कहीं बीजेपी का कान्फिडन्स और विपक्ष को मानसिक दवाब में घेरने की रणनीति नजर आती है।
शुरुआत में जिस तरह से इंडि गठबंधन बिखरा बिखरा दिखाई दे रहा था उसे देखकर बीजेपी का ये टारगेट कठिन भी नजर नहीं आ रहा था लेकिन जैसे जैसे कयामत की रात यानि मतदान की तारीख पास आती गई विपक्षियों को भी अपने अस्तित्व पर संकट नजर आने लगा और फिर मरता क्या न करता के मुहावरे पर अमल करते हुए सभी एक हो ही गए। दूसरी तरफ बीजेपी को 2014 और 2019 की तरह मोदी मैजिक और राम के नाम पर भरोसा था और उधर उसके वोटर के मन में अबकी बार 400 पार इतना गहरा बैठ गया था कि लगता है उसका वोटर भी घर में बैठ गया और जो मतदान प्रतिशत 2019 में करीब 69 प्रतिशत था वो करीब 60 प्रतिशत पर आकर टिक गया। यानि 9 फीसदी वोटर गर्मी में ac की हवा खा रहा था।
फिर क्या था इन्हीं 9 प्रतिशत मतदाताओं ने सत्तारूढ़ दल यानि मोदी के माथे पर चिंता की सिलवटें ला दी, लेकिन ऐसा नहीं है ये सिलवटें सिर्फ मोदी के माथे पर ही आईं हों ये लकीरें विपक्षी गठबंधन के नेताओं के माथे पर भी थीं और हो भी क्यूँ नहीं क्योंकि evm खुलने के पहले कोई नहीं जानता कि जो वोटर घर में बैठा था वो आखिर कौन था। क्या वो सरकार से नाराज वो व्यक्ति था जिसे विपक्ष मतदान केंद्र तक लाने में सफल नहीं हो पाया या फिर ये वो आदमी था जिसे ये लग रहा था मैं वोट दूँ या न दूँ क्या फरक पड़ता है आएगा तो मोदी ही।
दरअसल उदासीनता की वजह को भी जानना जरूरी है-
2014 में बदलाव की लहर थी जनता भ्रष्टाचार की कहानियाँ सुनकर ऊब चुकी थी
2014 में मोदी पूरे देश के सामने गुजरात मॉडल लेकर आ रहे थे जिसे सोशल मीडिया के धुरंधरों ने हर फोन तक बखूबी पहुंचाया
2014 में मोदी ने जिस तरह देश को अपनी सभाओं से मथ के रख दिया उसका भी जनता पर काफी असर पड़ा
2019 में पुलवामा कांड ने राष्ट्रवाद को जगाया और 2014 में 282 सीट वाली बीजेपी 303 के आँकड़े पर पहुँच गई
लेकिन 2024 में न तो 2014 जैसे एंटी इन्कमबंसी जैसी लहर है और न 2019 जैसा राष्ट्रवाद जैसा
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