आध्यात्म
तुलसी के हर काव्य में है मानवीय संवेदना की अभिव्यक्ति
भगवान शिव के आदेश पर अयोध्या जाकर काव्य रचना की
भक्तिधारा के महान कवि गोस्वामी तुलसीदास (30 जुलाई, जयंती विशेष)
हिंदी साहित्य के महान कवि संत तुलसीदास का जन्म संवत 1956 की श्रावण शुक्ल सप्तमी के दिन अभुक्तमूल नक्षत्र में हुआ था। इनके पिता का नाम आतमा रामदुबे व माता का नाम हुलसी था।
जन्म के समय तुलसीदास रोये नहीं थे अपितु उनके मुंह से राम शब्द निकला था। साथ ही उनके मुख में 32 दांत थे। ऐसे अदभुत बालक को देखकर माता- पिता बहुत चिंतित हो गए।
माता हुलसी अपने बालक को अनिष्ट की आशंका से दासी के साथ ससुराल भेज आई और स्वयं चल बसी। फिर पांच वर्ष की अवस्था तक दासी ने ही उनका पालन पोषण किया तथा उसी पांचवें वर्ष वह भी चल बसी। अब यह बालक पूरी तरह से अनाथ हो गया।
इस अनाथ बालक पर संतश्री नरहयान्नद जी की नजर पड़ी उन्होंने बालक का नाम रामबोला रखा और अयोध्या आकर उनकी शिक्षा दीक्षा की व्यवस्था की।
बालक बचपन से ही प्रखर बुद्धि का था। गुरुकुल में उनको हर पाठ बड़ी शीघ्रता से याद हो जाता था। नरहरि जी ने बालक को राममंत्र की दीक्षा दी और रामकथा सुनाई। हां से बालक रामबोला की दिशा बदल गई और वे काशी चले गए। वहां पर 15 वर्ष तक वेद वेदांग का अध्ययन किया।
कहा जाता है कि विवाह के पश्चात पत्नी के धिक्कारने के बाद वे प्रयाग वापस आ गए और गृहस्थ जीवन का त्याग करके साधुवेश धारण कर लिया।
फिर काशी में मानसरोवर के पास उन्हें काकभुशुंडि जी के दर्शन हुए और वे काशी में ही रामकथा कहने लगे। कहा जाता है कि वे एक प्रेत द्वारा रास्ता बताने पर चित्रकूट पहुंच गए।
एक दिन वे प्रदक्षिणा करने निकले थे जहां उन्हें भगवान श्रीराम के दर्शन हुए। संवत 1628 में भगवान शंकर ने उन्हें स्वप्न में आदेश दिया कि तुम अपनी भाषा में काव्य रचना करो।
तब वे नींद से जाग उठे और उनके समक्ष शिव और पार्वती प्रकट हो गए। शिव जी ने तुलसी से कहा कि तुम अयोध्या में जाकर रहो और हिंदी काव्य रचना करो। हमारा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है। इतना कहकर वे दोनों अंतध्र्यान हो गए।
तुलसी उनकी आज्ञा का पालन करके अयोध्या आ गए। संवत 1631 में तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना प्रारंभ की और दो वर्ष सात महीने 26 दिन में ग्रंथ की रचना पूरी कर ली। इसके कुछ समय बाद तुलसीदास अस्सी घाट पर रहने लग गए। तब तक रामचरितमानस की लोकप्रियता चारों ओर फैलने लग गई थी। अस्सीघाट पर उन्होंने विनयपत्रिका की रचना की।
हिंदी साहित्य में महाकवि तुलसीदास का युग सदा अमर रहेगा। वे भक्तकवि शिरोमणि थे। तुलसी ने लोकसंग्रह के लिए सगुण उपासना का मार्ग चुना।
रामभक्ति के निरूपण को अपने साहित्य का उद्देश्य बनाया। तुलसीदास का भक्तिमार्ग वेदशास्त्र पर आधारित है। कवि के रूप में उन्होंने अपने साहित्य में श्रवण, कीर्तन, स्मरण, पाद सेवन, अर्चन, वेदन, दास्य, साख्य और आत्मनिवेदन इन सभी पक्षों का प्रतिपादन बड़ी ही कुशलतापूर्वक किया है।
वस्तुत: तुलसीदास जी एक उच्चकोटि के कवि और भक्त थे तथा उनका हृदय भक्ति के पवित्रतम भावों से परिपूर्ण था। तुलसी का अपने साहित्य में भाषा और भावों पर पूर्ण अधिकर था।
वे संस्कृत के प्रकांड पंडित थे। लोकहित की भावना से प्रेरित होकर उन्होंने जनभाषाओं को ही अपने साहित्य का माध्यम बनाया। उन्होंने ब्रज एवं अवधी दोनों भाषाओं में साहित्य की रचना की। जनता में प्रचलित सोहर बहूगीत चाचर बेली बसंत आदि रागों में भी रामकथा लिखी।
गोस्वामी जी के साहित्य में जीवन की सभी परिस्थितियों का वर्णन है। उन्होंने प्रत्येक काव्य में मानवीय संवेदना की अभिव्यक्ति की है। वे राम के अनन्य भक्त हैं।
उन्हें केवल राम पर ही विश्वास है। राम पर पूर्ण विश्वास करते हुए उन्होंने उनके उस मंगलकारी रूप को समाज के सामने प्रस्तुत किया है। जो संपूर्ण जीवन को विपरीत धाराओं और प्रवाहों के बीच संगति प्रदान कर उसे अग्रसर करने में सहायक है।
वास्तव में तुलसी प्रणीत रामचरित मानस भारतीय समाज को ही नहीं अपितु संपूर्ण विश्व को सत्यम शिवम सुंदरम से पूर्ण सर्वमंगल के लक्ष्य की ओर अग्रसर करने में समर्थ है।
तुलसीदास ने आदर्शवाद पर भी बहुत सारी बातें लिखी हैं। इस प्रकार तुलसी का साहित्य आज भी प्रासंगिक है व देश की जनता का मार्गदर्शन कर रहा है।
आध्यात्म
होलिका दहन पर भद्रा का साया, जानें शुभ मुहूर्त
नई दिल्ली। 24 मार्च यानी आज होलिका दहन मनाया जाएगा. होली के एक दिन पहले होलिका दहन होती है जिसमें लोग बढ़ चढ़कर भाग लेते हैं। इस दिन भद्रा का साया रहेगा. जबकि रंग वाली होली 25 मार्च को रंग-गुलाल उड़ेंगे। इस साल होली पर साल का पहला चंद्र ग्रहण भी लगने वाला है। आइए जानते हैं कि इस साल होलिका दहन पर भद्रा का साया कब से कब तक रहेगा और होलिका दहन का शुभ मुहूर्त क्या रहने वाला है.
होलिका दहन पर भद्रा कब से कब तक?
24 मार्च को होलिका दहन के दिन भद्रा का साया सुबह 9 बजकर 24 मिनट से लेकर रात 10 बजकर 27 मिनट तक रहेगा। इसलिए आप रात 10 बजकर 27 मिनट के बाद ही होलिका दहन कर पाएंगे।
हिंदू पंचांग के अनुसार, इस साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा तिथि 24 मार्च को सुबह 9 बजकर 54 मिनट से लेकर 25 मार्च को दोपहर 12 बजकर 29 मिनट तक रहेगी। ऐसे में होलिका दहन 24 मार्च को किया जाएगा. होलिका दहन का शुभ मुहूर्त 24 मार्च को रात 11.13 बजे से रात 12.27 बजे तक रहेगा।
होलिका दहन की पूजन विधि
होलिका दहन के दिन सुबह सूर्योदय से पहले उठें और स्नानादि के बाद साफ-सुथरे वस्त्र धारण करें। शाम के वक्त होलिका दहन के स्थान पर पूजा के लिए जाएं। यहां पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके बैठें. सबसे पहले होलिका को उपले से बनी माला अर्पित करें। अब रोली, अक्षत, फल, फूल, माला, हल्दी, मूंग, गुड़, गुलाल, रंग, सतनाजा, गेहूं की बालियां, गन्ना और चना आदि चढ़ाएं।
फिर होलिका पर एक कलावा बांधते हुए 5 या 7 बार परिक्रमा करें. होलिका माई को जल अर्पित करें और सुख-संपन्नता की प्रार्थना करें। शाम को होलिका दहन के समय अग्नि में जौ या अक्षत अर्पित करें. इसकी अग्नि में नई फसल को चढ़ाते हैं और भूनते हैं। भुने हुए अनाज को लोग घर लाने के बाद प्रसाद के रूप में बांटतें हैं। शास्त्रों में ऐसा करना बहुत ही शुभ माना गया है।
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