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मंदसौर का आंदोलन महज किसानों का था या कांग्रेस का षड्यंत्र : मदनलाल राठौर
मंदसौर जिले के चार विधानसभा क्षेत्रों मल्हारगढ, मंदसौर, सीतामउ और गरोठ के ग्रामीण क्षेत्रों के 50 गांवों सभी स्थानों पर किसान इस तथ्य से आक्रोशित हैं कि कुछ स्वार्थी राजनीतिक लोगों ने असामाजिक तत्वों को प्रायोजित करके किसानों के नाम पर काला धब्बा लगाने में कोई कोर-कसर शेष नहीं छोड़ी।
ट्रकों को जलाना, टोल जलाना और लूटना, दुकानों को जलाना, रेलवे पटरियों को उखाडना, रेलवे का अन्य नुकसान करना, पुलिस थाने में आग लगाने और मकानों में आग लगाने जैसी घिनौनी हरकतें की गईं। इससे करोड़ों रूपयों का नुकसान हुआ।
तथाकथित किसान आंदोलन के पीछे अनेक प्रश्न आते हैं कि पूरे आंदोलन का सूत्रधार नेता कौन था? यदि कोई नेता नहीं था तो स्थान-स्थान पर कांग्रेसी नेताओं के संकेत पर उनके द्वारा प्रायोजित असामाजिक तत्व इकठ्ठे कैसे हुए और उनका हिंसा व उत्पात मचाने के पीछे क्या मंतव्य था।
बिना आंख, कान और मुंह वाले आंदोलन को इसे किसान आंदोलन का नाम किस उद्देश्य से दिया गया। आंदोलन में क्यों कुछ उचित-अनुचित देखा नहीं गया। उत्तेजित करने वाले, संपत्ति नष्ट करने वाले और आग लगाने वाले वक्तव्य के पीछे क्या केवल किसान हित था या सामाजिक कटुता फैलाकर शासन को अराजक स्थिति में स्थापित करना इसका उद्देश्य था।
उच्च न्यायालय का स्पष्ट निर्णय है कि कोई भी आंदोलन हाईवे पर नहीं होगा, लेकिन इस आंदोलन में ट्रकों को जलाना, टोल जलाना और लूटना, दुकानों को जलाना, रेलवे पटरियों को उखाड़ना, रेलवे का अन्य नुकसान करना, पुलिस थाने में आग लगाना जैसे कुकृत्य किए गए।
इस आंदोलन में जनता की गाढ़ी कमाई के सरकारी संसाधन को निशाना बनया गया। किसी आंदोलन का स्थान जिला स्तर, अनुभाग स्तर, तहसील स्तर, नगर पंचायत स्तर या नगर पालिका स्तर पर होता है। कोई भी हाईवे किसी आंदोलन का स्थल नहीं होता है। यह गम्भीर प्रश्न है, तो जो प्रश्न पैदा होते हैं इन सभी बिन्दुओं की जांच की जाए तो आंदोलन को राजनीति का रंग देने वाले बहुत से चेहरों का नकाब उतर सकता है
जो प्रश्न पैदा होते हैं… आंदोलन के लिये विधि अनुरूप प्रशासन से अनुमति ली गई थी ? यदि एस.डी.एम. को मेमोरण्डम दिया गया था तो क्या प्रशासन से इसकी उपयुक्त अनुमति प्राप्त करने के पश्चात आंदोलन किया गया था ? अनुमति के आवेदन में या यदि अनुमति मिली हो तो उसमें आंदोलन का स्थान क्या दर्शित किया गया था ?
पिपल्यामंडी सम्मेलन का रहस्य क्या था
तथाकथित किसान आंदोलन के पूर्व पिपल्यामंडी के कृषि उपजमंडी समिती प्रांगण में एक सम्मेलन आयोजित हुआ था। इस सम्मेलन के संबोधनकर्ता कौन-कौन थे ? सम्मेलन में विचारार्थ विषय क्या थे ? क्या इस सम्मेलन की मंडी प्रशासन से अनुमति प्राप्त की गई थी ? यदि अनुमति थी तो वह किस आधार पर थी ? यदि अनुमति नहीं दी गई थी तो फिर सम्मेलन का आयोजन क्यों किया गया ?
आंदोलन के मुद्दे क्या थे
वर्तमान में मूल मुद्दा फसलों के उचित मूल्य से संबंधित था जिस पर सभी स्तरों पर चर्चा के माध्यम से समाधान निकाला जा सकता था। इस मुद्दे को गौण कर दिया गया और कांग्रेसी नेताओं द्वारा अन्य लोंगो को हायर करके मुद्दा विहीन उत्पात मचाया।
गांवों में बैठक नहीं
किसानों द्वारा यह प्रश्न किया जा रहा है कि तथाकथित किसान आंदोलन से पूर्व आंदोलन की भूमिका बनाने के लिये गांवों में किसानों की बैठकों का आयोजन नहीं किया गया। कोई पेम्पलेट या फोल्डर गांव में नहीं बांटें गये और न ही किसी भी प्रकार का एनाउंसमेन्ट करवाया गया जिससे प्रतीत होता हो कि कोई व्यवस्थित आंदोलन किया जा रहा हैं।
बंद कमरों में आंदोलन की व्यूह रचना
दूध का व्यवसाय करने वाले एवं सब्जी का व्यवसाय करने वाले ग्रामीणों की संख्या भी दोनों जिलों में हजारों में है जिनमें से किसी से भी कोई संपर्क नहीं किया गया और न ही इन्हें किसी बैठक की सूचना दी गई। ऐसी स्थिति में न तो कोई रूप-रेखा बन सकी और न ही कोई मर्यादा निश्चित हो सकी। इससे यही स्पष्ट होता है कि बंद कमरों में चोरी-चुपके षड्यंत्र रचा गया और असामाजिक तत्वों ने उत्पात मचा दिया, जो मर्यादा विहीन हो गया जिसके परिणामस्वरूप छ्ह निर्दोष किसानों को असमय अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा। किसान तो खुले आम घूम रहे थे। फिर मुँह पर कपड़ा बांधकर जो लोग मोटरसाईकिलों पर बैठकर आये थे वे कौन थे ? सीधा सा अर्थ है वे लोग षड्यन्त्रकारी थे। परत दर परत सवाल बहुत हैं, जिनके जबाव मिलने अभी बांकी हैं।
क्यों थे पूरे आंदोलन की व्यूह रचना करने वाले कांग्रेसी पर्दे के पीछे
कांग्रेस विपक्ष में है। कांग्रेस को तथाकथित किसान आंदोलन में खुलकर सामने आना था पर ऐसा नहीं हुआ। कांग्रेस पर्दे के पीछे क्यों रही ? यह एक सुनियोजित षड्यन्त्र था या महज किसान आंदोलन लेकिन कुछ तथ्य संकेत करते हैं- गांधी जी के सिद्धांतों को मानने वालों को खुलकर सामने आना था। शांतिपूर्ण आंदोलन करना था। उन्होंने ऐसा नहीं किया। मुंह पर कपडा बांधे असामाजिक तत्वों को आगे कर दिया जिन्होंनें तोड-फोड व आगजनी की ओर निर्दोष किसानों को आगे करके मौके से भाग गए।
- तत्कालीन मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह के समय दिनांक 12 जून 1998 को बैतूल जिले के मुलताई में हुए गोली कांड में 24 किसानों की हत्या हुई थी। उस घटना और इस घटना के संदर्भ में किसान कांग्रेस से पूछ रहे है कि कांग्रेस बतलाए कि उसका वास्तविक चरित्र क्या है ?
- विधायक करैरा श्रीमति शकुंतला खटीक, विधायक राऊ श्री जीतू पटवारी, जिला पंचायत उपाध्यक्ष श्री बी.पी. धाकड, पूर्व विधायक मनासा श्री विजयेन्द्र सिंह मालाहेडा, रतलाम जिले के कांग्रेस पदाधिकारी श्री गुर्जर जो कि वर्तमान में जेल में बंदी है, आदि कांग्रेसी नेताओं ने संपति नष्ट करने, आग लगाने व रेल्वे पटरी उखाडने जैसे उत्तेजित वक्तव्य दिए। अपने उत्पाती साथियों को आगे करके भोले-भाले किसानों को भ्रमित किया।
- क्या पूर्व सांसद सुश्री मीनाक्षी नटराजन ने बडवन क्षेत्र में बैठक ली थी ? यदि ली थी तो बैठक के विषय और मुद्दे क्या थे ? ये प्रश्न इसलिए महत्वपूर्ण हैं कि इस बैठक के दो दिन बाद ही यह कांड हो गया।
- घनश्याम धाकड के पिताजी का वक्तव्य है कि मेरा पुत्र कांग्रेस के लिए शहीद हो गया। उन्होंने यह नहीं कहा कि वह किसानों के लिए शहीद हुआ।
- मुख्यमंत्री जी से किसने चर्चा की– किसानों द्वारा यह प्रश्न किया जा रहा है कि तथाकथित किसान आंदोलन के पश्चात मुख्यमंत्री ने बार-बार आव्हान किया था कि उनसे मिलकर उनके समक्ष किसानों की मांगे रखी जाकर चर्चा के माध्यम से समाधान निकाला जायें परन्तु जिले के एक भी ऐसे व्यक्ति का नाम सामने नहीं आया जो मुख्यमंत्री जी से चर्चा के लिये मिला हो। इससे स्पष्ट है कि यह षड्यंत्र था और षड्यंत्रकारी आमने-सामने चर्चा के लिये क्यों आते ?
- जहर घोलकर सद्भाव समाप्त किया : षड्यंत्रकारियों की कोई छोटी-मोटी योजना नहीं थी। सब कुछ सुनियोजित था। इसमें व्यापारी से किसान को लड़वा दिया गया। किसान से किसान को लड़वा दिया गया। यही नहीं एक जाति के लोगों को दूसरी जाति के लोगों से लड़वा दिया गया। इससे अत्यधिक गहराई तक आपसी सद्भाव को ठेस पहुंची, जिसकी प्रतिपूर्ति होने में बहुत समय लगेगा।
- निर्दोष लोगों ने वेदना सही : षड्यंत्रकारियों की तोड- फोड, आगजनी का अंत गोली पर जाकर समाप्त हुआ। दिनांक 7 व 8 जून को मंदसौर, पिपल्यामंडी, मल्हारगढ, नारायणगढ, दलौदा क्षेत्र में कफ्र्यू रहा। मंदसौर जिले के इन पांच क्षेत्रों में ही यह आंदोलन सीमित था। जिले के अन्य क्षेत्रों में आंदोलन क्यों नही हुआ ? इस अवधि में निर्दोष नागरिकों ने वेदना सही। बच्चे दूध से वंचित हो गए। अस्वस्थ लोगों को चिकित्सा सहायता से वंचित होना पड़ा। गृहणियों को सब्जी व अन्य सामग्रियों के अभाव में गृहस्थी का संचालन करना पड़ा । कामकाजी लोग हाथ बांधकर घरों में बैठे रहे। कई निर्दोष नागरिको को लाठियों का सामना करना पड़ा। इस सभी के लिए कांग्रेस ही दोषी है।
- किसान मुख्यमंत्री के विरूद्ध नहीं – मैंने मंदसौर विधानसभा क्षेत्र में जमालपुरा, भरडावद, अचेरी, अचेरा, मिरजापुरा, भालोट, माध्याखेडी, बोरखेडी, बुच्चाखेडी, दाउदखेडी, राजाखेडी, बाल्याखेडी, सीतामऊ विधानसभा क्षेत्र के बोरखेडी रेडका, बर्डिया उंचा, संकरीयाखेडी, ढाबलामोहन, मोरखेडी गांवो का भ्रमण किया। मल्हारगढ विधानसभा क्षेत्र के गुर्जर बर्डिया, नेतावली, चिरमोलिया, लोध, लच्छाखेडी, रठाना, भठाना, राणा खेडा तुमलावदा, अफजलपुर, ईषाकपुर गांवो का भ्रमण किया। गरोठ विधानसभा क्षेत्र के बर्डिया अमरा, खडावदा, साठखेडा गांव का भ्रमण किया। इन सभी स्थानों पर आपसी चर्चा में किसानों ने कहा कि उनका मुख्यमंत्री जी से कोई विरोध नही है। फसलों के भाव कम अवश्य रहे हैं पर भावों का उतार चढाव हमने अनेकों बार देखा है। कई बार हमें लहसुन खाद की रोडी में डालनी पड़ी तो कई बार लहसुन की फसल ने हमें थैले भरकर रूपये दिए हैं।
- प्रशासन की भारी चूक : इस संपूर्ण घटनाक्रम में यह भी विचारणीय है कि इसकी टोह प्रशासन क्यों नही ले पाया। प्रशासन अनभिज्ञ रहा यह आश्चर्यजनक है। मंदसौर, पिपल्यामंडी, नारायणगढ, मल्हारगढ, दलौदा क्षेत्रों में कई लोग मुंह पर कपडा बांधकर मोटर साईकलों पर भाग कर घटनाक्रम में सम्मिलित हो रहे थे। कुछ स्थानों पर प्रशासन मूकदर्शक बना रहा और कुछ स्थानों पर प्रशासन ने किसानों नागरिको को प्रताड़ित भी किया। प्रशासन का स्थानीय सूचना तंत्र कहाँ था ? इन्ही तथ्यों को देखते जिलाधीश व जिला पुलिस अधीक्षक को सस्पेन्ड किया गया। पूर्व में प्रदेश में ऐसे कई आंदोलनों में हुई हिंसा या अराजकता में कलेक्टर, एस.पी. सस्पेण्ड नहीं हुए। यह मध्यप्रदेश के इतिहास की पहली घटना है। अन्य अधिकारियों के स्थानांतरण हुए। अभी और स्थानांतरण होना परिलक्षित हो रहा है। मुख्यमंत्री जी ने वक्तव्य दिया है कि तत् समय हुई घटनाओं में स्मगलरों व अवैधकारोबारियों के सम्मिलित होने की सूचना भी है। जो म.प्र. की इतिहास की पहली घटना है। जिसने जो भूमिका अदा की वह किसानों ने स्वंय देखी है। यह न्यायिक जांच का विषय है जिस पर अभी मात्र इतना ही कहा जा सकता है। इस घटना की निष्पक्ष जांच हो। उपरोक्त सभी तथ्यों को मद्दे नजर रखते हुए उक्त घटना की न्यायिक जांच हो और दोषियों के विरूद्ध कठोर से कठोर कार्यवाही की जावें ताकि भविष्य में इस प्रकार की घटनाओं की पुनरावृत्ति न हों।
उपरोक्त आधारों पर कहा जा सकता है कि यह किसान आंदोलन की आड म%
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सीएम बने रहेंगे केजरीवाल, कोर्ट ने पद से हटाने वाली याचिका की खारिज
नई दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को उनके पद से हटाने की मांग वाली जनहित याचिका हाई कोर्ट ने खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा कि ऐसी कोई संवैधानिक बाध्यता नहीं है कि अरविंद केजरीवाल अपने पद पर बने नहीं रह सकते हैं। हाई कोर्ट ने कहा कि ये कार्यपालिका से जुड़ा मामला है। दिल्ली के उपराज्यपाल इस मामले को देखेंगे और फिर वह राष्ट्रपति को इस भेजेंगे। इस मामले में कोर्ट की कोई भूमिका नहीं है।
केजरीवाल को सीएम पद से हटाने के लिए याचिका दिल्ली के रहने वाले सुरजीत सिंह यादव ने दी है, जो खुद किसान और सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं। सुरजीत सिंह यादव का कहना था कि वित्तीय घोटाले के आरोपी मुख्यमंत्री को सार्वजनिक पद पर बने रहने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। याचिकाकर्ता सुरजीत ने अपनी याचिका में कहा था कि केजरीवाल के पद पर बने रहने से न केवल कानून की उचित प्रक्रिया में दिक्कत आएगी, बल्कि न्याय प्रक्रिया भी बाधित होगी और राज्य में कांस्टीट्यूशनल सिस्टम भी ध्वस्त हो जाएगा।
याचिका में कहा गया था कि सीएम ने गिरफ्तार होने के कारण एक तरह से मुख्यमंत्री के रूप में अपना पद खो दिया है, चूंकि वह हिरासत में भी हैं, इसलिए उन्होंने एक लोक सेवक होने के कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को निभाने से खुद को अक्षम साबित कर लिया है, अब उन्हें इस मुख्यमंत्री पद पर नहीं बने रहना चाहिए।
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