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नेशनल

पत्रकारों को न्याय की उम्मीद, मजीठिया वेज बोर्ड पर 19 को SC सुनाएगा फैसला

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– मीडिया मालिकों की नींद उड़ी, मीडियाकर्मियों में खुशी की लहर

नई दिल्ली। देश की शीर्ष अदालत 19 जून (सोमवार) को मजीठिया वेज बोर्ड को लेकर महत्वपूर्ण फैसला सुना सकती है। इस फैसले से प्रिंट मीडिया के हजारों पत्रकारों को न्याय मिलने की उम्मीद है।

देश में हर व्यक्ति के दुख-दर्द को सामने लाने वाले प्रिंट मीडिया के पत्रकार खुद कितना उत्पीडऩ का शिकार हैं, इसे मजीठिया वेज बोर्ड को लागू करने में बड़े मीडिया घरानों की आनाकानी से साफ देखा जा सकता है। हालांकि देश भर के प्रिंट मीडिया के कर्मियों के लिए न्याय का दिन आ गया है। वेज बोर्ड लागू करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट की तरफ से 19 जून को फैसला सुनाया जाएगा।

इस मामले में मीडिया मालिक सुप्रीम कोर्ट में दलील दी कि मजीठिया वेज बोर्ड से उनका धंधा तबाह हो जाएगा। कोर्ट में लंबी सुनवाई के बाद मालिकों के खिलाफ फैसला आया। कोर्ट ने निर्देश दिया था कि उन्हें हर हाल में अपने कर्मियों को मजीठिया वेज बोर्ड के हिसाब से लाभ देना ही पड़ेगा। आदेश के बावजूद जब मीडिया मालिकों ने तरह-तरह के बहाने बनाते हुए मजीठिया वेज बोर्ड का लाभ अपने कर्मियों को नहीं दिया तो सैकड़ों कर्मचारियों ने अपने-अपने संस्थानों के खिलाफ अवमानना याचिकाएं सुप्रीम कोर्ट में डालीं। उन्हीं याचिकाओं के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट सोमवार को फैसला सुना सकता है।

19 जून को अवमानना मामले में सुप्रीमकोर्ट के न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायाधीश नवीन सिन्हा की खंडपीठ फैसला सुनाएगी। देश भर के मीडियाकर्मियों के पक्ष में सुप्रीम कोर्ट में लड़ाई लड़ रहे एडवोकेट उमेश शर्मा ने भी मीडियाकर्मियों के पक्ष में फैसला आने की उम्मीद जताई है।

सुप्रीमकोर्ट के फैसले की तिथि की घोषणा होते ही देश भर के मीडियाकर्मियों में खुशी की लहर है वहीं अखबार मालिकों के खेमें में बेचैनी बढ़ गयी है। इस मामले की सुनवाई में मीडियाकर्मियों की तरफ से वरिष्ठ एडवोकेट कोलिन गोंसाल्विस, उमेश शर्मा, परमानंद पांडे और दिनेश तिवारी ने पक्ष रखा। अब सबकी नजरें 19 जून को सुप्रीमकोर्ट के ऐतिहासिक फैसले पर रहेंगी। इस फैसले की तिथि की जानकारी मिलते ही कई पत्रकारों ने दिल्ली के लिए कूच करने की तैयारी भी शुरू कर दी है।

नेशनल

सीएम बने रहेंगे केजरीवाल, कोर्ट ने पद से हटाने वाली याचिका की खारिज

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नई दिल्ली। दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को उनके पद से हटाने की मांग वाली जनहित याचिका हाई कोर्ट ने खारिज कर दी है। कोर्ट ने कहा कि ऐसी कोई संवैधानिक बाध्यता नहीं है कि अरविंद केजरीवाल अपने पद पर बने नहीं रह सकते हैं। हाई कोर्ट ने कहा कि ये कार्यपालिका से जुड़ा मामला है। दिल्ली के उपराज्यपाल इस मामले को देखेंगे और फिर वह राष्ट्रपति को इस भेजेंगे। इस मामले में कोर्ट की कोई भूमिका नहीं है।

केजरीवाल को सीएम पद से हटाने के लिए याचिका दिल्ली के रहने वाले सुरजीत सिंह यादव ने दी है, जो खुद किसान और सामाजिक कार्यकर्ता बताते हैं। सुरजीत सिंह यादव का कहना था कि वित्तीय घोटाले के आरोपी मुख्यमंत्री को सार्वजनिक पद पर बने रहने की अनुमति नहीं मिलनी चाहिए। याचिकाकर्ता सुरजीत ने अपनी याचिका में कहा था कि केजरीवाल के पद पर बने रहने से न केवल कानून की उचित प्रक्रिया में दिक्कत आएगी, बल्कि न्याय प्रक्रिया भी बाधित होगी और राज्य में कांस्टीट्यूशनल सिस्टम भी ध्वस्त हो जाएगा।

याचिका में कहा गया था कि सीएम ने गिरफ्तार होने के कारण एक तरह से मुख्यमंत्री के रूप में अपना पद खो दिया है, चूंकि वह हिरासत में भी हैं, इसलिए उन्होंने एक लोक सेवक होने के कर्तव्यों और जिम्मेदारियों को निभाने से खुद को अक्षम साबित कर लिया है, अब उन्हें इस मुख्यमंत्री पद पर नहीं बने रहना चाहिए।

 

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