कृपालु महाराज
मैं उनका हूँ, नहीं हूँ, इससे हमसे कोई मतलब नहीं
‘स एवाहमिति त्रिधा’ उनको ये फीलिंग हो रही है- मैं राम हूँ और राम को फीलिंग हो रही है- मैं राम दास हूँ। अन्यथा आप लोग सोचिये, शूर्पणखा के नाक कान काटने वाले मार्यादा पुरुषोत्तम राम, ऐसी गलती करेंगे। और ये हनुमान बगैरह का भी दिमाग खराब है। आखिर ये लोग इतने सारे हैं। एक को होश नहीं है। अगर एक भी होश में हो तो कह दे भई, आप लोग ऊपर क्यों बैठे हैं, नीचे बैठिये न। अरे! बहुत से साथी किसी के समझदार निकल आवें, तो बाकी लोगों को अकल दे देते हैं। ये समाधि की अवस्था है जो प्रेम में हो जाती है।
लेकिन दो भाव बचे जो हमें करने हैं- उनका मैं हूँ, वे मेरे हैं। इन दोनों पर ध्यान दीजिये। आप किसको अपनाना चाहते हैं। उनका मैं हूँ, वे मेरे हैं। जैसे एक हमने कह दिया हमरी ओर टुक हेरो री किशोरी राधे। (प्रेम रस मदिरा) और एक भाव में बता दिया ‘‘अपनी ओर टुक हेरो री किशोरी राधे। (प्रेम रस मदिरा) ये दो भाव हो गये, मैंने यहाँ दोनों भावों का निरूपण किया है। इस पद में ‘वे मेरे – मैं उनकी’।
तुम तो रहे सनातन हमरे, हौं हूँ रही तिहारी (प्रेम रस मदिरा)
तुम मेरे, मैं तरा। झगड़ा ही खत्म कर दिया। कोई कहे कि नहीं ये अच्छा है ‘मैं तेरा’, कोई कहे नहीं जी ‘तू मेरा’ तो दोनों को कह दिया गया बाबा कोई झगड़ा नहीं। लड़ाई झगड़ा मत करो दोनों ठीक हैं लेकिन एक बात हैं ‘वे मेरे हैं’ ये भाव सर्वश्रेष्ठï है। वे मेरे हैं, बस। मैं उनका हूँ, नहीं हूँ, इससे हमसे कोई मतलब नहीं। अरे हूँ तो हूँ ही अनादिकालीन नेच्यूरल नाता है और किसी का मैं हो ही नहीं सकता क्योंकि ‘चिन्मात्रं श्री हरेरंशम्’ –
वेद कहता है जब प्रत्येक जीव उनके अंश हैं
धाता माता पितामह:
आध्यात्म
जगद्गुरु कृपालु परिषद द्वारा वृन्दावन क्षेत्र में वास करने वाली विधवा व निराश्रित महिलाओं को दिए गए उपहार
वृन्दावन। जगद्गुरु कृपालु परिषद श्यामा श्याम धाम समिति के तत्वावधान में वृन्दावन में वास कर भजन कीर्तन करने वाली लगभग चार हजार विधवा व निराश्रित महिलाओं को उपहार प्रदान किए गए। इन उपहारों में उनके वस्त्र, शाल व अन्य जीवनोपयोगी वस्तुएं शामिल हैं।
बता दें कि जगद्गुरु कृपालु परिषद श्यामा श्याम धाम समिति के तत्वावधान में हर वर्ष ब्रह्मलीन जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की पुण्यतिथि के अवसर पर साधु भोज व निराश्रित महिलाओं को उपहार प्रदान किए जाते हैं।
इसी क्रम में पिछले दिनों भी वृन्दावन क्षेत्र के साधुओं को प्रेम मन्दिर में भोज के साथ साथ उपहार भी दिए गए। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में पधारे साधुओं को भोज के साथ साथ उपहार भी दिए गए थे।
साधू भोज कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जगद्गुरु कृपालु परिषद की चेयरपर्सन डॉ. विशाखा त्रिपाठी ने कहा कि इन धार्मिक आयोजनों का मार्ग निर्माण उनके पिता जगद्गुरु कृपालु जी महाराज ने किया था। आज उनकी बनाई हुई संस्था उनके पथ पर चलकर अपने दायित्वों का बाखूबी निर्वहन कर रही है।
इस अवसर जेकेपी श्यामाश्याम धाम समिति की अध्यक्षा डॉ श्यामा त्रिपाठी एवं अनुजा डॉ कृष्णा त्रिपाठी ने संयुक्त रूप से कहा कि बड़ी दीदी के दिशा निर्देशन में हमारी संस्था को ब्रजवासियों की सेवा से आंनद अनुभूति होती है, बृजवासी स्वयं भगवान के स्वरूप होते है, और इनकी सेवा करने से अन्तःकरण शुध्द होता है। बताया गया कि करीब पांच हजार साधुओं को 15 प्रकार की दैनिक वस्तुएं दक्षिणा के साथ प्रदान की गई।
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