कृपालु महाराज
अरे भई कम से कम न नीचे बैठो, तो बराबर तो बैठो
एक प्रेम की विशेष अवस्था है जहाँ दास अपने को स्वामी महसूस करता है और स्वामी अपने को दास महसूस करता है। आप लोगों ने सुना होगा रामायण तो पढ़ा होगा- ‘प्रभु तरू तर कपि डार पर’ भगवान् राघवेन्द्र सरकार वृक्ष के नीचे बैठे हैं और हनुमान वगैरह जितने महापुरुष हैं वो खोपड़ी पर पेड़ की डाल पर बैठे हैं। (ध्यान दीजिये) श्रीकृष्ण की बात छोड़ दीजिये, ये तो प्रेमावतार हैं। रामावतार तो मर्यादा का अवतार है। जहाँ भरत जी यह कहते हैं-
सिर बल चलौं धरम असमोरा। सब ते सेवक धर्म कठोर।।
ऐसे दास्य धर्म के महापुरुष हैं- ये लोग हनुमान वगैरह, ये कोई माधुर्य भाव के महापुरुष नहीं हैं अन्ड बन्ड व्यवहार करें, लेकिन कर रहे हैं और न तो राम को फील हो रहा है जरा डाँट दें क्या मदतमीजी है, ऊपर बैठे हो। अरे भई कम से कम न नीचे बैठो, तो बराबर तो बैठो। अब चूँकि बनवास के समय कोई सिंहासन तो था नहीं कि राम सिंहासन पर बैठेंगे ऊँचाई पर, अरे वह तो बनवास का मामला है, पेड़ के नीचे बैठे हैं, आप लोग भी बैठिये यहीं नहीं नीचे, ठीक है मजबूरी है दास औ स्वामी एक लेवल पर हैं, लेकिन ऐसा कैसे कि दास लोग ऊपर बैठे हैं खोपड़ी पर, डायरेक्ट खोपड़ी पर क्योंकि उसी पेड़ के नीचे राम बैठे हैं, लेकिन आप जानते हैं ऐसा हो गया। अचानक? ऐक्सिडन्टल? नहीं। हनुमान वगैरह को ऐसी फीलिंग हो ही नहीं कि मैं दास हूँ।
आध्यात्म
जगद्गुरु कृपालु परिषद द्वारा वृन्दावन क्षेत्र में वास करने वाली विधवा व निराश्रित महिलाओं को दिए गए उपहार
वृन्दावन। जगद्गुरु कृपालु परिषद श्यामा श्याम धाम समिति के तत्वावधान में वृन्दावन में वास कर भजन कीर्तन करने वाली लगभग चार हजार विधवा व निराश्रित महिलाओं को उपहार प्रदान किए गए। इन उपहारों में उनके वस्त्र, शाल व अन्य जीवनोपयोगी वस्तुएं शामिल हैं।
बता दें कि जगद्गुरु कृपालु परिषद श्यामा श्याम धाम समिति के तत्वावधान में हर वर्ष ब्रह्मलीन जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज की पुण्यतिथि के अवसर पर साधु भोज व निराश्रित महिलाओं को उपहार प्रदान किए जाते हैं।
इसी क्रम में पिछले दिनों भी वृन्दावन क्षेत्र के साधुओं को प्रेम मन्दिर में भोज के साथ साथ उपहार भी दिए गए। कार्यक्रम में बड़ी संख्या में पधारे साधुओं को भोज के साथ साथ उपहार भी दिए गए थे।
साधू भोज कार्यक्रम की अध्यक्षता करते हुए जगद्गुरु कृपालु परिषद की चेयरपर्सन डॉ. विशाखा त्रिपाठी ने कहा कि इन धार्मिक आयोजनों का मार्ग निर्माण उनके पिता जगद्गुरु कृपालु जी महाराज ने किया था। आज उनकी बनाई हुई संस्था उनके पथ पर चलकर अपने दायित्वों का बाखूबी निर्वहन कर रही है।
इस अवसर जेकेपी श्यामाश्याम धाम समिति की अध्यक्षा डॉ श्यामा त्रिपाठी एवं अनुजा डॉ कृष्णा त्रिपाठी ने संयुक्त रूप से कहा कि बड़ी दीदी के दिशा निर्देशन में हमारी संस्था को ब्रजवासियों की सेवा से आंनद अनुभूति होती है, बृजवासी स्वयं भगवान के स्वरूप होते है, और इनकी सेवा करने से अन्तःकरण शुध्द होता है। बताया गया कि करीब पांच हजार साधुओं को 15 प्रकार की दैनिक वस्तुएं दक्षिणा के साथ प्रदान की गई।
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