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उफ ये नेता! बोल रहे ऐसी घटिया जुबान

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punjab-assembly-elections-2017चंडीगढ़। ‘दुष्ट’, ‘कुटांगा’ (मारूंगा), ‘लुटेरे’, ‘टोपी वाला’ (आम आदमी पार्टी के लिए), ‘मीसाना’ (धोखेबाज) जैसे शब्द आजकल पंजाब की चुनावी हवा में तैरते महसूस किए जा रहे हैं।

राज्य में 4 फरवरी को होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए प्रचार के दौरान राजनीतिक नेता पार्टी लाइन के पार जाकर एक दूसरे के खिलाफ खुलेआम इस्तेमाल कर रहे हैं। शिरोमणि अकाली दल-भाजपा गठबंधन, विपक्षी कांग्रेस और नई आम आदमी पार्टी के प्रवेश के साथ पंजाब की प्राय: सभी 117 विधानसभा सीटों पर त्रिकोणात्मक संघर्ष हो रहा है और जैसे-जैसे चुनावी सरगर्मी तेज हो रही है, राजनीतिक नेता निम्न स्तर की चुनावी शब्दावली का इस्तेमाल कर रहे हैं।

साल 2007 से प्रदेश की सत्ता पर काबिज अकाली-भाजपा गठबंधन का इस चुनाव में बहुत कुछ दांव पर लगा हुआ है। निम्न स्तर की शब्दावली के इस्तेमाल के मामले में पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह सबसे आगे हैं। मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के खिलाफ मुक्तसर जिले में उनकी पारंपरिक सीट लंबी से चुनाव लड़ रहे अमरिंदर ने हाल ही में शपथ ली कि वह ‘दुष्ट’ बादल को लंबी में बुरी तरह पराजित करेंगे।

अमरिंदर ने अपनी एक राजनीतिक सभा में लोगों की तालियों की गडग़ड़ाहट के बीच कहा, “बाबे नूं लंबी बीच कुटांगा। (मैं बुजुर्ग व्यक्ति को लंबी में बुरी तरह पटखनी दूंगा)।” अमरिंदर (75) बोलने के दौरान देश के सबसे बुजुर्ग मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के लिए बहुत कम सम्मान दिखाते हैं।

अमरिंदर ने अपने भाषण के दौरान जो अन्य शब्द इस्तेमाल किए, उनमें बादल परिवार के लिए ‘लुटेरे’ और आम आदमी पार्टी के संयोजक तथा दिल्ली के मुख्यमंत्री के लिए ‘झूठा’, ‘टोपी वाला’ और ‘मीसाना’ थे। यह पहली बार नहीं है कि अमरिंदर इस तरह के शब्दों का इस्तेमाल कर रहे हैं। साल 2012 के विधानसभा चुनाव से पहले उन्होंने कांग्रेस के विद्रोही उम्मीदवारों को चेतावनी देते हुए कहा था कि अगर वे मुकाबला से नहीं हटेंगे तो कत्ल-ए-आम होगा।

कांग्रेस की नई खोज क्रिकेटर से राजनीतिक नेता बने नवजोत सिंह सिद्धू पंजाब चलाने के लिए बादल परिवार के खिलाफ सारी बंदूकें निकाल ली हैं। विगत 13 साल में शायद ही राज्य में दिखने वाला यह पंजाब का ‘रक्षक’ चुनाव से पहले मात्र पंद्रह दिनों में ‘पंजाब बचाने’ की उम्मीद कर रहे हैं। सिद्धू जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में थे, तब साल 2012 के विधानसभा चुनावों में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को ‘पप्पू’ और ‘अनर्थशास्त्री’ कहकर संबोधित किया था। सिद्धू अब उसी कांग्रेस का हिस्सा हैं।

पटियाला शहर सीट से अमरिंदर सिंह के खिलाफ चुनाव लड़ रहे पूर्व सेनाध्यक्ष और अरुणाचल के पूर्व राज्यपाल जे.जे. सिंह हाल में एक वीडियों में कैद किए गए हैं, जिसमें वह अकाली नेताओं को कमर के नीचे वार करने की सलाह दे रहे हैं। केंद्रीय मंत्री और सुखबीर बादल की पत्नी हरसिमरत कौर बादल भी अमरिंदर और सिद्धू के खिलाफ उनकी उम्र की लिहाज किए बिना आग उगल रही हैं। वह लोगों से कह रही हैं, “पंजाब हंसी मजाक के कार्यक्रम का मंच नहीं है जहां सिद्धू बड़े और झूठे वादे कर सकते हैं।”

सुखबीर बादल ने सिद्धू को कांग्रेस के ‘वेतनभोगी कर्मचारी’ के रूप में संबोधित किया। भाजपा छोडक़र सिद्धू के कांग्रेस में शामिल होने के बाद अकाली और भाजपा ‘अपनी मां बदलने के लिए’ उनकी निंदा कर रहे हैं। उधर, आम आदमी पार्टी के प्रदेश संयोजक गुरप्रीत सिंह मान ने बादल से अमीर बनने की तरकीबें मांगकर उनकी खिल्ली उड़ाई।

नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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