आध्यात्म
माला की बजाय इलेक्ट्रॉनिक मशीन से जपेंगे ‘रामनाम’
इलाहाबाद| उत्तर प्रदेश की प्रयाग नगरी इलाहाबाद में माघ मेले की तैयारियां जोरो पर हैं। यहां देशभर से साधु-संतों के आने का सिलसिला शुरू हो चुका है। संगम की रेत पर धुनी रमाये संत भी अब आधुनिकता के इस दौर में ‘रामनाम’ जपने के लिए माला की बजाय इलेक्ट्रॉनिक मशीन का प्रयोग करते नजर आएंगे। आधुनिक संतों का यह रूप देख यहां आने वाले लोग भी काफी आश्चर्यचकित हैं।
आमतौर पर यह देखा जाता है कि साधु-संत रामनाम का जाप करने के लिए रुद्राक्ष या किसी अन्य रत्न की बनी मालाओं का सहारा लेते हैं लेकिन संगम तट पर एक माह तक चलने वाले माघ मेले में अब इलेक्ट्रॉनिक मशीन के जरिए जाप किया जाएगा।
पांच जनवरी को पौष पूर्णिमा के स्नान के साथ ही मेले का आरंभ हो जाता है, लेकिन उससे पहले ही देशभर से साधु-संतों व श्रद्धालुओं के यहां आने का सिलसिला शुरू हो गया है।
संगम के तट पर ऐसे ही एक बाबा पहुंचे हुए हैं जो रामनाम का जाप माला की बजाय इलेक्ट्रॉनिक मशीन से करेंगे। अयोध्या के रहने वाले श्रीराम संतोष दास अपने साथ जाप करने की हाईटेक मशीन लेकर आए हैं। उनका शिविर तपस्वी नगर में लगा हुआ है।
संतोष दास एक माह तक खास तरीके से जाप करेंगे। वह पिछले 25 वर्षो से मेले में कल्पवास के लिए यहां आते रहे हैं, लेकिन पहली बार रामनाम का जाप करने के लिए अपने साथ इलेक्ट्रॉनिक मशीन लेकर आए हैं। मशीन के बारे में वह बताते हैं कि इसकी क्षमता एक बार में लगभग एक लाख बार जप करने की है। मंत्रों का जाप मशीन की गिनती के आधार पर किया जाएगा।
वह कहते हैं, “मशीन का परीक्षण कर लिया गया है। कल्पवास के दौरान अधिक से अधिक बार जप किया जाएगा। एक लाख बार जप पूरा होने के बाद यह मशीन ऑटोमेटिक तरीके से दोबारा शुरू हो जाएगी।”
संतोषदास ने कहा कि उन्होंने इस मशीन को पिछले महीने ही वृंदावन से मंगवाया है। एक बार इसे सेट करने के बाद यह एक लाख बार गिनती करेगी। गिनती पूरी होने के बाद वह खुद ही बंद हो जाएगी और दोबारा जप शुरू करने के लिए इसे फिर चालू करना पड़ेगा।
उल्लेखनीय है कि इलाहाबाद में माघ मेले का आयोजन हर वर्ष होता है। यह एक महीने तक चलता है। देशभर के विभिन्न राज्यों से साधु-संत यहां आकर एक महीने तक कल्पवास लेते हैं और संगम में सुबह शाम स्नान कर रहे हैं। आधुनिकता का आलम यह है कि अब संगम के तट पर भी हाईटेक सुविधाओं से लैस तरह-तरह के साधु-संत दिखाई दे रहे हैं।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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