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आध्यात्म

भगवान् के सदा असंख्य‍ अवतार होते रहते हैं

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भगवान्, असंख्य‍ अवतार, श्रीकृष्णक को ही परब्रह्म माना, शंकर, ब्रह्मज्ञान

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भगवान्, असंख्य‍ अवतार, श्रीकृष्णक को ही परब्रह्म माना, शंकर, ब्रह्मज्ञान

kripalu ji maharaj

अनेक वेद मंत्रों में श्रीकृष्‍ण को ही परब्रह्म माना है। शंकर ने भी अनेक स्‍थलों पर श्रीकृष्‍ण को भगवान् ही माना है। यहाँ तक कि जब भाष्‍य लिखने के पश्चात् ब्रह्मज्ञान नहीं मिल सका तो भगवान् की शरण गये। यथा-

नारायणकरुणामय शरणं करवाम तावकौ चरणौ।

इति षट् पदी मदीये वदनसरोजे सदावसतु ।।

(शंकर)

अस्‍तु ब्रह्म का दोनों ही स्‍वरूप सनातन है। यथा –

(द्वै वाव ब्रह्मणो रूपे मूर्तं चैवामूर्तं च।‘   (बृहदा. 2-3-1)

राधे राधे राधे राधे राधे राधे

कारन हरि अवतार को, कृपा अकारन जान।

अपर जिते कारन कहे, तिनहिँ गौण करि मान ।।56 ।।

भावार्थ- श्रीकृष्‍ण के अवतार के जितने भी कारण शास्‍त्रों में बताये गये हैं। वे सब ठीक ही हैं। किंतु प्रमुख कारण जीवों पर अकारण कृपा करना ही है।

व्‍याख्‍या- भगवान् के सदा असंख्‍य अवतार होते रहते हैं। अतः जन साधारण के मन में एक प्रश्‍न उत्‍पन्‍न होता रहता है, कि भगवान् तो संकल्‍प है। उसके संकल्‍प मात्र से ही सब कुछ हो सकता है। फिर दैत्‍यनाश, साधुरक्षा एवं धर्म संस्‍थापनादि कार्यों के लिये अवतार लेकर आने की क्‍या आवश्‍यकता है? दर्शन शस्‍त्र का एक नियम है। यथा-

प्रयोजनमुनद्दिश्‍य न मंदोऽपि प्रवर्तते। (दर्शनशास्‍त्र)

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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