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झारखंड : पहले गैर-जनजातीय मुख्यमंत्री बनेंगे रघुबर दास
रांची| झारखंड में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के नवनिर्वाचित विधायकों ने शुक्रवार को रघुबर दास को विधायक दल का नेता चुन लिया। इस तरह वह राज्य के अगले मुख्यमंत्री होंगे। वह रविवार को प्रदेश के नए मुख्यमंत्री के रूप में शपथ लेंगे। वह पहले गैर-जनजातीय समुदाय के व्यक्ति हैं, जो राज्य के मुख्यमंत्री बनने जा रहे हैं। जमशेदपुर पूर्व से पांच बार विधायक रहे रघुबर दास (60) झारखंड के 10वें मुख्यमंत्री होंगे। वह रविवार सुबह 11 बजे पद की शपथ लेंगे। भाजपा ने कहा कि शपथ ग्रहण समारोह रांची के मोराबादी मैदान में आयोजित होगा। इसमें हजारों भाजपा एवं ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) कार्यकर्ताओं के शामिल होने की संभावना है।
भाजपा सूत्रों के मुताबिक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, पार्टी अध्यक्ष अमित शाह और भाजपा शासित कुछ राज्यों के मुख्यमंत्री समारोह में शामिल होंगे। विधायक दल का नेता चुने जाने के बाद रघुबर दास सहयोगी पार्टी आजसू के साथ राज्यपाल सैयद अहमद से राजभवन में अपराह्न चार बजे मिले और सरकार बनाने का दावा पेश किया। राज्यपाल ने उनके दावे को स्वीकार किया और सरकार गठन के लिए आमंत्रित किया। आजसू ने कहा कि वह सरकार में शामिल होगी। पार्टी अध्यक्ष सुदेश महतो ने कहा, “हमने साथ चुनाव लड़ा और अब गठबंधन सरकार बनाएंगे।” राज्य में जनजातीय आबादी हालांकि 27 फीसदी ही है, लेकिन अब तक यहां जनजातीय मुख्यमंत्री ही बनते रहे हैं। अब रघुबर दास इस परंपरा को तोड़ेंगे।
दास को अगस्त में भाजपा का राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बनाया गया था। वह इससे पहले दो बार प्रदेश भाजपा के अध्यक्ष रह चुके हैं। 2009 में शिबू सोरेन सरकार में वह उपमुख्यमंत्री बने थे। रघुबर दास ने संवाददाताओं से कहा, “राज्य का विकास उनकी प्राथमिकता है। समाज के सभी वर्गो का विकास प्राथमिकता है।” दास कानून से स्नातक हैं। उनके तीन भाई और तीन बहनें हैं। उनकी शादी रुकमणि देवी से हुई और उनके एक बेटा और एक बेटी है। वह 1995 में तत्कालीन बिहार विधानसभा के लिए जमशेदपुर चंपारण सीट से पहली बार विधायक बने। वर्ष 2000 में बिहार से झारखंड के विभाजन के बाद बाबूलाल मरांडी सरकार में वह श्रम मंत्री बने। वह अर्जुन मुंडा सरकार में भी मंत्री थे। इससे पहले भाजपा विधायकों ने केंद्रीय पर्यवेक्षकों जे.पी.नड्डा और विनय सहस्रबुद्धे की मौजूदगी में रांची स्थित पार्टी मुख्यालय में मुलाकात की और विधायक दल के नेता का चुनाव किया।
नीलकांत सिंह मुंडा ने रघुबर के नाम का प्रस्ताव रखा, जिसका भाजपा के दो विधायकों सी.पी.सिंह और सरयू राय ने समर्थन किया। भाजपा-आल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन (आजसू) गठबंधन को विधानसभा में स्पष्ट बहुमत मिला है। 37 सीटों के साथ भाजपा सबसे बड़ी पार्टी बन कर उभरी है, जबकि 81 सदस्यीय विधानसभा में आजसू को पांच सीटें मिली हैं। झारखंड में भाजपा को 37 सीटों पर जीत हासिल हुई, जबकि 2009 में यह संख्या सिर्फ 18 थी, जबकि राष्ट्रीय जनता दल (राजद) और जद (यू) का सूपड़ा साफ हो गया है, वहीं कांग्रेस को छह सीटों से संतोष करना पड़ा।
नेशनल
दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!
सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ
लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।
26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।
इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।
इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।
इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान
असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।
दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।
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