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पार्लियामेंट बोर्ड बैठक या फैमिली बोर्ड?

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समाजवादी पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक, किरनमय नंदा, आजम खान, फैमिली बोर्ड बैठक

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समाजवादी पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक, किरनमय नंदा, आजम खान, फैमिली बोर्ड बैठक

mulayam singh yadav family meeting

सपा पार्लियामेंट्री बोर्ड से नदारत दिखे कई महत्वपूर्ण सदस्य

राकेश यादव

लखनऊ। समाजवादी चिंतक एवं प्रदेश सरकार के कैबिनेट मंत्री बलराम यादव की पार्टी में भले ही वापसी हो गई हो लेकिन प्रदेश अध्यक्ष की इस कार्रवाई की दहशत का असर समाजवादी पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक में भी देखने का मिला। समाजवादी पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक में कई महत्वपूर्ण सदस्यों की गैर मौजूदगी को लेकर पार्टी नेताओं में तमाम तरह की अटकले लगाई जा रही हैं।

चर्चा है कि सपा के वरिष्ठ नेता के खिलाफ हुई कड़ी कार्रवाई की वजह से पार्लियामेंट्री बोर्ड के सक्रिय सदस्य किरनमय नंदा और आजम खान की बैठक में गैर हाजिर रहे। पार्टी के नेता भी इस गंभीर मसले पर टिप्पणी करने से बचते नजर आए। कई पार्टी नेताओं ने तो पार्लियामेंट्री बोर्ड की इस बैठक को फैमिली बोर्ड बैठक तक करार दिया।

बाहुबली विघायक मुख्तार अंसारी के कौमी एकता दल के समाजवादी पार्टी में हुए विलय को लेकर उपजे विवाद को सुलझाने के लिए सपा सुप्रिमों मुलायम सिंह यादव ने पार्लियामेंट्री बोर्ड की बैठक बुलाई।

शनिवार को राजधानी लखनऊ में समाजवादी पार्टी के प्रदेश मुख्यालय में बुलाई गई इस महत्वपूर्ण बैठक में पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव, राष्ट्रीय महासचिव रामगोपाल यादव, समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश के अध्यक्ष अखिलेश यादव, प्रदेश प्रभारी एवं मुख्य प्रवक्ता शिवपाल सिंह यादव समेत प्रदेश के बर्खास्त मंत्री बलराम यादव समेत अन्य कई मंत्रियों ने हिस्सा लिया।

पार्लियामेंट्री बोर्ड के सदस्य एवं पार्टी से नवनिर्वाचित राज्यसभा संसद सदस्य अमर सिंह, समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं प्रदेश के कैबिनेट मंत्री आजम खान, पश्चिम बंगाल के वरिष्ठ समाजवादी नेता और पार्लियामेंट्री बोर्ड के सदस्य किरणमय नंदा इस महत्वपूर्ण बैठक में शामिल नहीं हुए।

सूत्रों का कहना है कि समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता एवं मंत्री बलराम यादव पर अचानक हुई कार्रवाई से यह नेता काफी खफा थे। इस नाराजगी की वजह से ही इन नेताओं ने इस बैठक में आना मुनासिब नहीं समझा।

अटकलें लगाई जा रही थी कि पार्टी को मजबूती प्रदान करने के लिए प्रयास करने वाले नेता को जब बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है तो पार्टी किसी के खिलाफ भी कार्रवाई कर सकती है। सपा कार्यालय के बाहर मौजूद कई नेताओं ने तो इसे फैमिली बोर्ड की बैठक तक कह दिया।

उधर इस बाबत जब समाजवादी पार्टी के प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी का पक्ष जानने का प्रयास किया तो पता चला कि वह मुख्यमंत्री के साथ रोजा इफ्तार पार्टी में मौजूद हैं।

नेशनल

दूसरे चरण में धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह भेद पाएंगे मोदी!

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सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ

लखनऊ। राजस्थान में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पूर्व पीएम डॉ. मनमोहन सिंह के बयान का जिक्र करते हुए कहा कि अगर कांग्रेस केंद्र में सत्ता में आती है, तो वह लोगों की संपत्ति लेकर मुसलमानों को बांट देगी. इसके बाद ही विकास की रफ्तार पर चलने वाला चुनाव दूसरे चरण के पहले हिन्दू मुस्लिम के बीच बंट गया है। दरअसल मोदी का ये बयान यूं ही नहीं आया है, दूसरे चरण में जहां जहां मतदान होना है वहाँ की बहुतायत सीटों पर मुस्लिम मतदाता निर्णायक स्थिति में है… इसमें राहुल गांधी की वायनाड सीट भी है जहां मुस्लिम वोटर करीब 50 फीसदी है।

26 अप्रैल को लोकसभा चुनाव के दूसरे चरण का मतदान होना है। पहले चरण का मतदान 19 अप्रैल को हो चुका है जिसमें कम मतदान प्रतिशत ने सत्तारूढ़ बीजेपी के केन्द्रीय नेतृत्व को चिंता में डाल दिया है। दूसरे चरण में 88 लोकसभा सीटों पर वोटिंग हैं। केरल की सभी 20 लोकसभा सीटों पर इसी चरण में मतदान हो जाएगा। कर्नाटक की 14 और राजस्थान की 13 लोकसभा सीटों पर भी मतदान होगा।

इसके पहले कि मोदी के बयान के गूढ़ार्थ को समझा जाए एक बार दूसरे चरण की सीटों का गणित समझना जरूरी हो जाता है। इसमें सबसे ज्यादा जरूरी है केरल राज्य जहां पर चल रहे लव जिहाद के किस्से और धार्मिक ध्रुवीकरण के समीकरण का चक्रव्यूह आज तक बीजेपी नहीं भेद पाई है। केरल में हिन्दू आबादी करीब 54 फीसदी है तो मुस्लिम आबादी करीब 26 फीसदी तो ईसाई वहां 18 फीसदी हैं। जबकि सिख बौद्ध और जैन महज 1 फीसदी हैं। यही वो धार्मिक समीकरण का तिलिस्म हैं जिसे बीजेपी इस बार तोड़ने का प्रयास कर रही हैं।

इतना ही नहीं केरल में करीब 15 लोकसभा सीट ऐसी हैं मुस्लिम बहुतायत में हैं। वहीं वायनाड में तो मुस्लिम आबादी करीब 50 फीसदी है जहां से राहुल गांधी पिछले बार जीत कर सांसद चुने गए थे और इस बार भी वायनाड़ के रास्ते दिल्ली पहुंचना चाहते हैं। राज्यवार नजर डालें तो पिक्चर काफी हद तक साफ हो जाती है। आखिर शब्दों पर संयम रखने वाले मोदी ने चुनावी फिजा बदलने वाला ये बयान क्यों दिया? इसके लिए इन सीटों पर नजर डालिए।

इन सीटों पर दूसरे चरण में मतदान

असम: दर्रांग-उदालगुरी, डिफू, करीमगंज, सिलचर और नौगांव।
बिहार: किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया, भागलपुर और बांका।
छत्तीसगढ़: राजनांदगांव, महासमुंद और कांकेर।
जम्मू-कश्मीर: जम्मू लोकसभा ।
कर्नाटक: उडुपी-चिकमगलूर, हासन, दक्षिण कन्नड़, चित्रदुर्ग, तुमकुर, मांड्या, मैसूर, चामराजनगर, बेंगलुरु ग्रामीण, बेंगलुरु उत्तर, बेंगलुरु केंद्रीय, बेंगलुरु दक्षिण,चिकबल्लापुर और कोलार।
केरल: कासरगोड, कन्नूर, वडकरा, वायनाड, कोझिकोड, मलप्पुरम, पोन्नानी, पलक्कड़, अलाथुर, त्रिशूर, चलाकुडी, एर्णाकुलम, इडुक्की, कोट्टायम, अलाप्पुझा, मवेलिक्कारा, पथानमथिट्टा, कोल्लम, अट्टिंगल और तिरुअनंतपुरम।
मध्य प्रदेश: टीकमगढ़, दमोह, खजुराहो, सतना, रीवा और होशंगाबाद।
महाराष्ट्र: बुलढाणा, अकोला, अमरावती, वर्धा, यवतमाल- वाशिम, हिंगोली, नांदेड़ और परभणी।
राजस्थान: टोंक-सवाई माधोपुर, अजमेर, पाली, जोधपुर, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद, भीलवाड़ा, कोटा और झालावाड़-बारा।
त्रिपुरा: त्रिपुरा पूर्व।
उत्तर प्रदेश: अमरोहा, मेरठ, बागपत, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर, बुलंदशहर, अलीगढ़ और मथुरा।
पश्चिम बंगाल: दार्जिलिंग, रायगंज और बालूरघाट।

दरअसल देश की 543 लोकसभा सीटों में से 65 सीटें ऐसी हैं जहां मुस्लिम वोटर जीत और हार में बड़ी भूमिका निभाते हैं। ये वो सीटें हैं जहां मुस्लिम वोटरों की संख्या 30 फीसदी से लेकर 80 फीसदी तक है। वहीं, करीब 35-40 लोकसभा सीटें ऐसी हैं जहां इनकी मुस्लिम समुदाय के वोटरों की अच्छी खासी संख्या है। यानि करीब 100 लोकसभा सीट ऐसी हैं जहां अगर वोटों का ध्रुवीकरण हो गया तो भाजपा के लिए उसके लक्ष्य 400 के आंकड़े को हासिल करना आसान हो जाएगा। ऐसे में एक बार फिर ये साफ हो गया विपक्षी कितनी भी कोशिश कर लें वो चुनाव बीजेपी की पिच पर ही लड़ने को मजबूर हैं।

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