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पंजाब के ‘खामोश’ मतदाता कर सकते हैं बड़ा उलटफेर
चंडीगढ़ | पंजाब विधानसभा चुनाव बहुत महत्वपूर्ण माना जा रहा है। इस चुनाव में वे मतदाता बड़ा उलटफेर कर सकते हैं, जो अभी तक अपना मन किसी पार्टी के पक्ष में नहीं बना पाए हैं।
पहली बार पंजाब में त्रिकोणीय मुकाबला होने जा रहा है। यहां शनिवार को 117 विधानसभा सीटों के लिए वोट डाले जाएंगे।
मुख्य मुकाबला सत्तारूढ़ शिरोमणि अकाली दल-भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) गठबंधन, कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (आप) के बीच है।
कांग्रेस और अकाली दल-भाजपा गठबंधन दोनों के लिए आम आदमी पार्टी निशाने पर है। पिछले एक साल में आम आदमी पार्टी ने पंजाब में मतदाताओं विशेष रूप से युवाओं और ग्रामीण मतदाताओं में खासी पैठ बना ली है।
अकाली दल के अध्यक्ष और निवर्तमान उपमुख्यमंत्री सुखबीर सिंह बादल कहते रहे हैं कि पार्टी 25 वर्षो तक राज करेगी। अकाली दल को सत्ता में आने के बाद से ही विरोधी लहर का सामना करना पड़ रहा है। पार्टी यहां भाजपा के साथ पिछले एक दशक (2007-2012 और 2012-2017) से सत्ता में है।
अकाली दल ने 94 सीटों पर, जबकि उनकी गठबंधन सहयोगी भाजपा ने 23 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं।
देशभर में पार्टी को पुनर्जीवित करने में जुटी कांग्रेस ने इस बार पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह पर दांव लगाया है, जो मौजूदा चुनाव में मुख्यमंत्री पद के चेहरा हैं।
अकाली दल, भाजपा और कांग्रेस को न सिर्फ अपना परंपरागत आधारा बनाए रखना है, बल्कि उन्हें आम आदमी पार्टी की चुनौती का भी सामना करना है।
पिछले कुछ सप्ताह में अकाली-भाजपा गठबंधन और कांग्रेस ने आम आदमी पार्टी और इसके नेतृत्व पर जबरदस्त हमले करते हुए इसे बाहरी करार दिया है।
यह भी आरोप लगाए गए हैं कि दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल पंजाब का मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं।
अकाली दल-भाजपा गठबंधन पंजाब के विकास को भुना रहे हैं। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ड्रग्स, भ्रष्टाचार, बेरोजगारी, बुनियादी ढांचे की कमी जैसे मुद्दों पर सत्तारूढ़ पार्टी को घेरे हुई हैं।
हाल ही में हुए सर्वेक्षणों में विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी को साफ बढ़त मिलती दिखाई गई है। इंडिया टूडे-एक्सिस पोल सर्वेक्षण में कांग्रेस को 60 से 65 सीटें मिलती दिखाई गई हैं, जबकि आम आदमी पार्टी 41 से 45 सीटों के साथ दूसरे और अकाली दल-भाजपा गठबंधन 11 से 15 सीटों के साथ तीसरे स्थान पर है।
आम आदमी पार्टी को कृषि समृद्ध मालवा क्षेत्र में बढ़त मिलते दिखाया गया है। इस संदर्भ में देखें तो 117 विधानसभा सीटों में से 69 आम आदमी पार्टी के खाते में जाती दिख रही है। यह वह क्षेत्र है, जिसे पारंपरिक रूप से अकालियों का गढ़ माना जाता रहा है। इसी क्षेत्र में कांग्रेस ने भी 2012 के चुनाव में जीत का परचम लहराया था।
2014 के संसदीय चुनाव से अस्तित्व में आई आम आदमी पार्टी ने पंजाब में 34 फीसदी मत हासिल किए हैं।
माझा (ब्यास नदी के उत्तर में) और दोआबा (ब्यास और सतलुज नदियों के बीच के क्षेत्र) में मुख्य राजनीतिक दलों के बीच कड़ा मुकाबला है।
मुख्य मुकाबला लांबी सीट पर है, जहां मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल और पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष अमरिंदर सिंह चुनाव लड़ रहे हैं। जलालाबाद में सुखबीर बादल और आम आदमी पार्टी के भगवंत मान और कांग्रेस के रवनीत सिंह बिट्ट के बीच कांटे की टक्कर है। पटियाला (शहरी) में अमरिंदर सिंह और अकाली दल से पूर्व सैन्य प्रमुख एवं पूर्व राज्यपाल जे.जे.सिंह मैदान में है, जबकि लहर सीट से पूर्व मुख्यमंत्री राजिंदर कौर बट्टल (कांग्रेस) और पंजाब के वित्तमंत्री परमिंदर सिंह ढींढसा (अकाली दल) आमने-सामने हैं।
राधास्वामी, सच्चा सौदा, खंड बलन संप्रदाय और अन्य डेरों का भी पंजाब चुनाव में अच्छी खासी पैठ है। इनमें से प्रत्येक के लाखों अनुयायी हैं। डेरा सच्चा सौदा खुले तौर पर अकाली दल-भाजपा गठबंधन का समर्थन कर रही है, जिससे मालवा क्षेत्र में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के लिए मुकाबला कड़ा हो सकता है।
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने हाल के सप्ताह में राधास्वामी ब्यास डेरा और सच खंड बलान डेरा का दौरा कर समर्थन पाने की अपील की।
पंजाब में चार फरवीर को 1.98 करोड़ से अधिक मतदाता 1,145 उम्मीदवारों के भाग्य का फैसला करेंगे जिसमें 81 महिला उम्मीदवार और एक किन्नर है।
राज्य में बठिंडा जिले में हुए विस्फोट के बाद सुरक्षा व्यवस्था को लेकर चौकस इंतजाम किए गए हैं।
नेशनल
पहले फेज के वोटर ने बिगाड़ा मोदी का मूड
सच्चिदा नन्द द्विवेदी एडिटर-इन-चीफ
लखनऊ। लोकसभा चुनाव 2024 का पहला चरण बीत गया। सात चरण में हो रहे चुनावों का ये सबसे बड़ा और पोलिटिकल पार्टीज के लिए लिटमस टेस्ट वाला चरण था। उत्तर प्रदेश की 8 सीटें वो थी जिन पर 2019 में भाजपा का पसीना छूट गया था।
जिस दिन अयोध्या में मर्यादा पुरषोत्तम राम के भव्य राम मंदिर में प्रभु राम की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा हुई और उसे देख जिस तरह का जन-ज्वार उठा उससे गदगद होकर प्रधानमंत्री पीएम मोदी ने भाजपा और सहयोगी दलों के लिए 18वीं लोकसभा के लिए टारगेट सेट कर दिया 400 सीटों का और नारा दे दिया ‘अबकी बार 400 पार’। दरअसल ये 400 का टारगेट मोदी ने यूं ही नहीं सेट कर दिया। इसके पीछे कहीं न कहीं बीजेपी का कान्फिडन्स और विपक्ष को मानसिक दवाब में घेरने की रणनीति नजर आती है।
शुरुआत में जिस तरह से इंडि गठबंधन बिखरा बिखरा दिखाई दे रहा था उसे देखकर बीजेपी का ये टारगेट कठिन भी नजर नहीं आ रहा था लेकिन जैसे जैसे कयामत की रात यानि मतदान की तारीख पास आती गई विपक्षियों को भी अपने अस्तित्व पर संकट नजर आने लगा और फिर मरता क्या न करता के मुहावरे पर अमल करते हुए सभी एक हो ही गए। दूसरी तरफ बीजेपी को 2014 और 2019 की तरह मोदी मैजिक और राम के नाम पर भरोसा था और उधर उसके वोटर के मन में अबकी बार 400 पार इतना गहरा बैठ गया था कि लगता है उसका वोटर भी घर में बैठ गया और जो मतदान प्रतिशत 2019 में करीब 69 प्रतिशत था वो करीब 60 प्रतिशत पर आकर टिक गया। यानि 9 फीसदी वोटर गर्मी में ac की हवा खा रहा था।
फिर क्या था इन्हीं 9 प्रतिशत मतदाताओं ने सत्तारूढ़ दल यानि मोदी के माथे पर चिंता की सिलवटें ला दी, लेकिन ऐसा नहीं है ये सिलवटें सिर्फ मोदी के माथे पर ही आईं हों ये लकीरें विपक्षी गठबंधन के नेताओं के माथे पर भी थीं और हो भी क्यूँ नहीं क्योंकि evm खुलने के पहले कोई नहीं जानता कि जो वोटर घर में बैठा था वो आखिर कौन था। क्या वो सरकार से नाराज वो व्यक्ति था जिसे विपक्ष मतदान केंद्र तक लाने में सफल नहीं हो पाया या फिर ये वो आदमी था जिसे ये लग रहा था मैं वोट दूँ या न दूँ क्या फरक पड़ता है आएगा तो मोदी ही।
दरअसल उदासीनता की वजह को भी जानना जरूरी है-
2014 में बदलाव की लहर थी जनता भ्रष्टाचार की कहानियाँ सुनकर ऊब चुकी थी
2014 में मोदी पूरे देश के सामने गुजरात मॉडल लेकर आ रहे थे जिसे सोशल मीडिया के धुरंधरों ने हर फोन तक बखूबी पहुंचाया
2014 में मोदी ने जिस तरह देश को अपनी सभाओं से मथ के रख दिया उसका भी जनता पर काफी असर पड़ा
2019 में पुलवामा कांड ने राष्ट्रवाद को जगाया और 2014 में 282 सीट वाली बीजेपी 303 के आँकड़े पर पहुँच गई
लेकिन 2024 में न तो 2014 जैसे एंटी इन्कमबंसी जैसी लहर है और न 2019 जैसा राष्ट्रवाद जैसा
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