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आध्यात्म

जो ‘तवायफ’ समाज की नजर में अशुद्ध है, वो दुर्गा पूजा के लिए इतनी पाक क्यों, जानें यहां

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नवरात्र के शुभ दिनों की शुरुआत हो चुकी है। यूँ तो हर देश में उत्सव और हर्षोल्लास का मौसम छाया हुआ है, पर पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा फेस्टिवल की तैयारियां ख़ासा देखने लायक है।

जहां एक तरफ यहाँ हर जगह पांडाल सजाए जाएंगे, वहीं दुर्गापूजा के दुर्गा माता की बड़ी बड़ी मूर्तियां भी स्‍थापित की जाएंगी।
लेकिन यहाँ माता दुर्गा की मूर्तियों को लेकर एक खास तरह की मान्यता है। जिसके  अनुसार मूर्तियों को बनाने के लिए तवायफ के घर बाहर या रेडलाइट एरिया से मिट्टी लाना जरुरी है।

मूर्ति बनाने वाले कलाकारों का कहना है कि भारत-पाक बॉर्डर में बने तनोट माता के मंदिर से पाकिस्‍तानी फौज डरती है।

परंपरा के मुताबिक रेडलाइट एरिया की मिट्टी को जब तक मूर्ति में इस्तेमाल नहीं किया जाता तब तक वह पूर्ण नहीं मानी जाती।

हालांकि पहले कारीगर या फिर मूर्ति बनवाने वाले सेक्स वर्कर्स के घरों से भिखारी बनकर मिट्टी मांग कर लाते थे, लेकिन बदलते समय के साथ ही इस मिट्टी का भी कारोबार शुरू हो गया।

मिट्टी का यह कारोबार पहले मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल में मनाया जाता था, लेकिन अब यह पूरे देश में मनाया जाने लगा है।

दरअसल ‘सोनागाछी’ पश्चिम बंगाल का सबसे बड़ा रेडलाइट एरिया है और अधिकतर जगह मूर्तियों में सोनागाछी की मिट्टी का इस्तेमाल होता है।

बता दें कि, दुर्गा पूजा में माँ की मूर्तियाँ सोनागाछी की मिट्टी के बिना नहीं बनती है मूर्ति दुर्गा पूजा में सिर्फ बंगाल में ही वेश्यालयों के की मिट्टी का इस्तेमाल नहीं किया जाता बल्कि संपूर्ण देश में वेश्यालय की मिट्टी का इस्तेमाल किया जा सकता है जिसकी कीमत 300 से 500 रुपए बोरी होती है वेश्यालय की मिट्टी से बनी मां दुर्गा की प्रतिमा की कीमत 5 हजार से लेकर 15 हजार तक होती है।

क्या आप जानते है कि ऐसी मान्यता क्यों है? दरअसल, इस मान्यता के पीछे लोगों के अपने-अपने विश्वास और राय जुडी है।

आइये बताते है आपको इस मान्यता के पीछे की वजह-

दरअसल, जब कोई व्यक्ति ऐसी जगह पर जाता है तो उसकी सारी अच्छाइयां बाहर रह जाती हैं। उसी बाहर की मिट्टी को मूर्ति में लगाया जाता है।

वहीँ कुछ लोग इसके पीछे की वजह नारी ‘शक्ति’ को मानते है लोगों का मानना है कि ऐसी औरते अगर कहीं गलत है तो उसके पीछे समाज और वक्त की खामियां रही होंगी। इसलिए उन्हें सम्मान देने के लिए ऐसा किया जाता है।

और सबसे मशहूर मान्यता के पीछे एक कहानी है जिसमें ऐसा माना जाता है कि एक वैश्‍या मां दुर्गा की परम भक्त थी और उस वेश्या को समाज के तिरस्कार से बचाने के लिए मां दुर्गा ने उस वेश्या को यह वरदान दिया था की उसके यहां की मिट्टी का इस्तेमाल जब तक उनकी प्रतिमा में नहीं किया जाएगा तब तक वह प्रतिमाएं अपूर्ण मानी जाएगी।

आध्यात्म

आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी

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नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।

पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है

रामनवमी का इतिहास-

महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।

नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।

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