आध्यात्म
जेकेपी ने हजारों विधवा महिलाओं को आदरभाव से कराया भोजन
वृंदावन (मथुरा)। जगद्गुरु कृपालु परिषत् (जेकेपी) की ओर से बीते कई सालों से निःस्वार्थ भाव से समाज सेवा के सराहनीय कार्य किए जा रहे हैं। इसी क्रम में श्यामा श्यामधाम में जेकपी की ओर से 10 नवम्बर यानी शुक्रवार को ब्रज क्षेत्र में रह रहीं विधवा महिलाओं की सेवा में विशाल भोज का भव्य आयोजन किया गया।
समारोह में लगभग 4 हजार विधवा महिलाओं को प्रसादस्वरूप भोजन कराया गया। इस अवसर पर लोगों को दान में ओढ़ने–बिछाने के कपड़े और दैनिक उपयोग की वस्तुओं का किट बैग आदि चीजें भी दी गईं।
जेकेपी की ओर से आयोजित विशाल भोज में पधारीं विधवा महिलाओं का विधि विधान से स्वागत किया गया। उन्हें द्वार से ससम्मान प्रेम मंदिर प्रांगण ले जाया गया।
भोजन से पूर्व आदरभाव से विधवा महिलाओं के चरणों को सुगंधित जल से धोया गया। इसके बाद सभी को विशाल मण्डप में आयोजित भोज के लिए ले जाया गया। वहां उन्होंने प्रसादस्वरूप भोजन ग्रहण किया।
मण्डप में नि:शक्तों और दिव्यांगों के लिए भी विशेष व्यवस्था की गई थी। ऐसी अतिथि महिलाओं को व्हील चेयर पर बैठाकर कार्यक्रम स्थल तक ले जाया गया। सभी महिलाओं का सम्मानपूर्वक भोजन करवाकर दैनिक उपयोग की अनेकानेक वस्तुएं दान-स्वरूप दी गईं। इनका विवरण निम्नवत है –
1.कम्बल 2. ओढ़ने व बिछाने के चादर 3. पीली शॉल 4. 4. होज़री ब्लाउज 5. पहनने के वस्त्र-लुंगी व कुर्ता 6. तौलिया 7. राधे नाम लिखित गमछा 8. नहाने व कपड़े धोने का साबुन 9. भोजन रखने का डिब्बा 10. डोलू 11. दैनिक उपयोगी वस्तुओं का किट बैग एवं 1 बड़ा बैग इत्यादि।
आध्यात्मिक और भौतिक कल्याण के लिए प्रयत्नशील है जेकेपी
वर्तमान समय में जगद्गुरु कृपालु परिषत् द्वारा निःस्वार्थ भाव से निरन्तर किये जा रहे समाज सेवा के अभूतपूर्व कार्यों से सम्पूर्ण विश्व आश्चर्यचकित है। जगद्गुरु कृपालु परिषत् की इस सेवा भावना के एकमात्र प्रेरक हैं-भक्तियोग रसावतार जगद्गुरु श्री कृपालु जी महाराज।
श्री महाराज जी ने न केवल दिव्य भगवदीय ज्ञान से सम्पूर्ण भूमण्डल को आलोकित किया, साथ ही अपने अकारण करुणा के स्वभाववश समाज के निर्धन एवं अभावग्रस्त लोगों की सेवा कर परोपकार शब्द को एक ऐसी परिभाषा प्रदान की है, जिसे संसार युगों-युगों तक याद रखेगा।
उनकी सुपुत्रियाँ जो जगद्गुरु कृपालु परिषत् की अध्यक्षायें हैं, अपने पिता के समाज-सेवा पथ पर अंकित पद-चिन्हों का अनुसरण कर रही हैं। वे सभी समाज के आध्यात्मिक व भौतिक कल्याण के लिए प्रयत्नशील हैं। उनके द्वारा अनेक प्रकार के समाज-सेवा के कार्य सम्पादित किये जा रहे हैं।
सम्पूर्ण कार्यक्रम जगद्गुरु कृपालु परिषत् की अध्यक्षाओं डॉ. विशाखा त्रिपाठी, डॉ. श्यामा त्रिपाठी एवं डॉ.कृष्णा त्रिपाठी के नेतृत्व सम्पन्न हुआ।
आध्यात्म
आज पूरा देश मना रहा रामनवमी, जानिए इसके पीछे की पूरी पौराणिक कहानी
नई दिल्ली। आज पूरे देश में रामनवमी का त्यौहार बड़ी धूम धाम से मनाया जा रहा है। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन भगवान राम का जन्म हुआ था। जो विष्णु का सातवां अवतार थे। रामनवमी का त्यौहार चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को मनाया जाता है। आइये जानते हैं इसके पीछे की पौराणिक कहानी।
पौराणिक कथाओं के मुताबिक भगवान राम ने भी मां दुर्गा की पूजा की थी, जिससे कि उन्हें युद्ध के समय विजय मिली थी। साथ ही माना जाता है इस दिन गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरित मानस की रचना का आरंभ किया। राम नवमी का व्रत जो भी करता है वह व्यक्ति पापों से मुक्त होता है और साथ ही उसे शुभ फल प्रदान होता है
रामनवमी का इतिहास-
महाकाव्य रामायण के अनुसार अयोध्या के राजा दशरथ की तीन पत्नियां थी। कौशल्या, सुमित्रा और कैकयी। शादी को काफी समय बीत जाने के बाद भी राजा दशरथ के घर किसी बालक की किलकारी नहीं गूंजी थी। इसके उपचार के लिए ऋषि वशिष्ट ने राजा दशरथ से पुत्र प्राप्ति के लिए कमेश्टी यज्ञ कराने के लिए कहा। जिसे सुनकर दशरथ खुश हो गए और उन्होंने महर्षि रुशया शरुंगा से यज्ञ करने की विन्नती की। महर्षि ने दशरथ की विन्नती स्वीकार कर ली। यज्ञ के दौरान महर्षि ने तीनों रानियों को प्रसाद के रूप में खाने के लिए खीर दी। इसके कुछ दिनों बाद ही तीनों रानियां गर्भवती हो गईं।
नौ माह बाद चैत्र मास में राजा दशरथ की बड़ी रानी कौशल्या ने भगवान राम को जन्म दिया, कैकयी ने भरत को और सुमित्रा ने दो जुड़वा बच्चे लक्ष्मण और शत्रुघन को जन्म दिया। भगवान विष्णु ने श्री राम के रूप में धरती पर जन्म इसलिए लिया ताकि वे दुष्ट प्राणियों का नरसंहार कर सके।
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